BY: Yoganand Shrivastva
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ IAS अधिकारी नियाज खान एक बार फिर अपने बेबाक विचारों को लेकर सुर्खियों में हैं। इस बार उन्होंने बकरीद पर्व से पहले पशु बलि के विरोध में आवाज़ उठाई है और लोगों से शाकाहारी जीवनशैली अपनाने की अपील की है। उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर बहस को जन्म दे दिया है।
विश्व पर्यावरण दिवस पर आया बयान
IAS नियाज खान ने 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर अपनी राय साझा करते हुए कहा:
“पशुओं का खून बहाना किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है।”
“प्रकृति के सभी प्राणी — पेड़, पौधे, जानवर — हमारी रक्षा के पात्र हैं।”
उन्होंने आगे लिखा कि ईश्वर (अल्लाह) केवल बलि से ही नहीं, बल्कि जीवों के प्रति करुणा और प्रेम से भी प्रसन्न होता है। खान ने यह भी साफ किया कि उनकी बातों का मकसद किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।
“मैं किसी धर्म के विरोध में नहीं” – IAS नियाज खान
IAS खान ने स्पष्ट किया, “मैं किसी परंपरा या धर्म के विरुद्ध नहीं हूं। हमारा देश लोकतांत्रिक है और हर व्यक्ति को अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने का अधिकार है।”
उन्होंने यह भी बताया कि वह व्यक्तिगत रूप से शाकाहारी हैं, और इसी अनुभव से प्रेरित होकर शाकाहार को बढ़ावा देना चाहते हैं।
सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं
नियाज खान की यह टिप्पणी बकरीद जैसे धार्मिक अवसर से ठीक पहले आई है, जिससे सोशल मीडिया पर हलचल मच गई है।
- कुछ यूजर्स ने उनके विचारों को समर्थन दिया है और उन्हें पर्यावरण एवं पशु अधिकारों के पक्षधर बताया है।
- वहीं, कई अन्य ने इसे धार्मिक परंपराओं में अनावश्यक हस्तक्षेप माना है, खासकर तब जब बयान एक मुस्लिम IAS अधिकारी की ओर से आया हो।
IAS नियाज खान: एक परिचय
- नियाज खान, 2015 बैच के IAS अधिकारी हैं।
- मूल रूप से छत्तीसगढ़ से हैं लेकिन कार्यरत मध्य प्रदेश कैडर में हैं।
- उन्होंने राज्य प्रशासनिक सेवा से अपने करियर की शुरुआत की थी।
- खान अपने साहित्यिक लेखन के लिए भी प्रसिद्ध हैं। उन्होंने ‘ब्राह्मण द ग्रेट’ और ‘वॉर ऑफ कलियुग’ जैसे उपन्यासों की रचना की है।
वे पहले भी गौहत्या, धार्मिक उग्रवाद, और सामाजिक कुरीतियों पर टिप्पणी कर चुके हैं, जिससे वे कई बार चर्चा और विवाद का हिस्सा बने हैं।
क्या यह बयान विवाद को जन्म देगा?
IAS नियाज खान की यह टिप्पणी बकरीद से ठीक पहले सामने आई है, जिस कारण यह मुद्दा और अधिक संवेदनशील बन गया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में प्रशासन, राजनीतिक हलकों और धार्मिक संगठनों की ओर से इस पर क्या प्रतिक्रिया आती है।
हालांकि फिलहाल तक इस पर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है