आज, 13 मार्च 2025 को होलिका दहन किया जाएगा। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। परंपराओं के अनुसार, होलिका दहन सूरज डूबने के बाद किया जाता है, लेकिन इस बार भद्रा काल के कारण होलिका जलाने का शुभ मुहूर्त रात 11:30 बजे से 12:30 बजे तक रहेगा।
क्या है होलिका दहन का महत्व?
होलिका दहन का सबसे प्रसिद्ध संदर्भ प्रहलाद और होलिका की कथा से जुड़ा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भक्त प्रहलाद के पिता हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु के विरोधी थे और उन्होंने अपने पुत्र को भी विष्णु भक्ति छोड़ने को कहा। जब प्रहलाद नहीं माना, तो हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से उसे आग में जलाने को कहा।
होलिका को यह वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी, इसलिए वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद सुरक्षित बच गया। तभी से इस दिन बुराई के अंत और सच्ची आस्था की जीत का पर्व मनाया जाता है।
भद्रा काल में होली जलाना अशुभ क्यों?
हिंदू पंचांग के अनुसार, भद्रा काल में शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है। इस बार शाम को भद्रा का अशुभ समय रहेगा, इसलिए होलिका दहन का मुहूर्त रात 11:30 से 12:30 बजे तक रहेगा। इस समय दहन करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
होलिका दहन से जुड़ी अन्य पौराणिक कथाएं
- राजा रघु की कथा
एक मान्यता के अनुसार, अयोध्या के राजा रघु ने अपने राज्य में बुरी शक्तियों का अंत करने के लिए होलिका दहन की परंपरा शुरू की थी। उनका मानना था कि इससे नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती हैं और प्रजा पर कोई संकट नहीं आता।
- भगवान कृष्ण और पूतना की कहानी
एक और कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध किया था, जो उन्हें विष देकर मारना चाहती थी। पूतना के वध को भी बुराई के अंत के रूप में देखा जाता है और इसे होली पर्व से जोड़ा जाता है।
- शिव-पार्वती और कामदेव की कथा
होलिका दहन से जुड़ी एक अन्य कथा भगवान शिव और कामदेव की भी है। शिव जी जब तपस्या कर रहे थे, तब देवी पार्वती से विवाह कराने के लिए देवताओं ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने भेजा। जब कामदेव ने यह प्रयास किया, तो शिवजी ने अपने तीसरे नेत्र से उसे भस्म कर दिया। बाद में, देवी रति के अनुरोध पर शिव ने कामदेव को पुनः जीवित किया।
इसलिए, इस दिन कामदेव की भी पूजा की जाती है, खासकर उन दंपतियों द्वारा जो संतान सुख की इच्छा रखते हैं।
कैसे करें होलिका दहन की पूजा?
सबसे पहले होलिका की लकड़ियां और उपले (गोबर के कंडे) इकट्ठे करें।
पूजा के दौरान हल्दी, रोली, चावल, गंगाजल और नारियल चढ़ाएं।
होलिका के चारों ओर पांच या सात बार परिक्रमा करें।
होलिका दहन के बाद उसकी राख को माथे पर लगाना शुभ माना जाता है।