रियो ओलंपिक 2016 में ऐतिहासिक पदक लाने से चूकने वाली भारतीय महिला जिम्नास्ट दीपा कर्माकर ने खेल से संन्यास लेने की घोषणा कर दी। त्रिपुरा के अगरतला की रहने वाली दीपा ने छह साल की उम्र में इस खेल को खेलना शुरू किया था, लेकिन उनके लिए यह सफर आसान नहीं रहा। बहुत से लोग दीपा को 2016 रियो ओलंपिक में प्रभावशाली प्रदर्शन के लिए जानते हैं, लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि सपाट पैर के कारण कोच उन्हें रिजेक्ट कर दिया था।
कोच ने दीपा को सपाट पैर होने के कारण इस खेल को न खेलने की सलाह दी थी, लेकिन दीपा के पिता जिद पकड़ ली कि वह अपनी बेटी को जिम्नास्ट ही बनाएंगे। दरअसल, जिम्नास्टिक जैसे फुर्ती के खेल में सपाट पैर को अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि इसकी वजह से जंप मारने में दिक्कत आती है। उनके पिता खुद भी भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के कोच थे, इसलिए उन्होंने बेटी को भी खिलाड़ी बनाने का ही सपना देखा। दीपा जब छह साल की थी तब ही उनके पिता उन्हें जिम्नास्टिक सिखाने के लिए एक कोच के पास ले गए।
दीपा ने भी पिता की इच्छा पूरी करने के लिए छोटी उम्र से ही कड़ी मेहनत शुरू कर दी, जिसके बादौलत दीपा ने 2008 में जलपाईगुड़ी में जूनियर नेशनल्स जीतकर सुर्खियां बटोरी। यहीं से उनका करियर शुरू हुआ और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दीपा को पहचान 2014 में मिली, जब उन्होंने ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया, वो इस टूर्नामेंट में पदक जीतने वाली पहली महिला जिम्नास्ट बनीं।
पदक से चूकने के बाद दीपा ने किया था प्रभावित
दीपा रियो ओलंपिक 2016 में सिर्फ 0.15 अंक से कांस्य पदक जीतने से चूक गईं थी और चौथे स्थान पर रही थीं। दीपा भले ही पदक नहीं ला सकी थीं, लेकिन उनका यह प्रदर्शन भी ऐतिहासिक रहा था। दीपा की उपलब्धि इसलिए बड़ी थी क्योंकि 1960 के दशक के बाद भारत के किसी खिलाड़ी ने ओलंपिक में जिम्नास्टिक में शिरकत की थी। दीपा प्रोडूनोवा वॉल्ट में शिरकत करती थीं जिसे काफी मुश्किल माना जाता है। दीपा जिम्नास्टिक इतिहास में प्रोडूनोवा वॉल्ट करने वाली पांच महिला जिम्ननास्ट में से एक हैं।