By: लोकेश्वर सिन्हा
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद ज़िले से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जिसने पूरे इलाके को हिलाकर रख दिया है। अंधविश्वास और लापरवाही ने एक ही परिवार की तीन नन्ही बच्चियों की जान ले ली। मैनपुर विकासखंड के धनोरा गांव में चार दिनों के भीतर तीन बच्चियों की मौत ने प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को भी चौंका दिया है।
बीमारी थी सामान्य, पर इलाज की जगह झाड़-फूंक शुरू कराई गई
परिवार में पिछले कुछ दिनों से तीनों बच्चियों को सर्दी और खांसी की शिकायत थी। स्थिति सामान्य थी, लेकिन परिजनों ने उन्हें अस्पताल ले जाने के बजाय झाड़-फूंक, ओझाई और टोटके कराना शुरू कर दिया। धीरे–धीरे बच्चियों की हालत गंभीर होती गई और एक-एक कर तीनों मासूमों ने दम तोड़ दिया।

चार दिनों में तीन मौतें, पूरा गांव सदमे में
- पहली बच्ची की मौत — 13 जनवरी
- दूसरी बच्ची की मौत — 16 जनवरी सुबह
- तीसरी बच्ची की मौत — 16 जनवरी शाम

चार दिनों में एक ही घर से तीन अर्थियों ने पूरे गांव को स्तब्ध कर दिया। स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव पहुंची, लेकिन परिजन गायब थे, तीन मौतों की खबर मिलते ही अमलीपदर अस्पताल की मेडिकल टीम और स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव पहुंची। लेकिन जांच के दौरान नई समस्या सामने आई, बच्चियों के माता-पिता गांव में मौजूद ही नहीं थे। परिजन अचानक गांव छोड़कर चले गए। इससे शक और गहरा गया है कि बच्चियों को समय पर इलाज न देने की वास्तविक वजह क्या थी। जांच जारी है, स्वास्थ्य विभाग अब मृत बच्चियों के माता-पिता और रिश्तेदारों का पता लगा रहा है, ताकि यह पता लगाया जा सके, बच्चियों को वास्तव में कौन-सी बीमारी थी? क्या सही समय पर मेडिकल ट्रीटमेंट मिलने पर उनकी जान बच सकती थी? झाड़-फूंक ने उनकी हालत कितनी बिगाड़ी? रायपुर से भी विशेष टीम इस मामले की जांच कर रही है। यह सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, अंधविश्वास के खतरनाक परिणामों की सीख भी है।
धनोरा गांव की यह घटना बताती है कि आज भी ग्रामीण इलाकों में अंधविश्वास बच्चों की जिंदगी के लिए कितना बड़ा खतरा बन सकता है। अगर तीनों बच्चियों का समय पर इलाज हो जाता, तो शायद वे आज ज़िंदा होतीं।





