By: Vija iny Nandan
नई दिल्ली: 26/11 मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड्स में से एक तहव्वुर हुसैन राणा को अमेरिका से भारत लाना देश की एक बड़ी कूटनीतिक सफलता मानी जा रही है। लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार अमेरिकी अदालत और सरकार ने राणा को भारत को सौंपने की मंजूरी दी और अब वह एनआईए की 18 दिन की हिरासत में है। यह विकास न केवल भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करता है, बल्कि पाकिस्तान की सेना और आतंकी संगठनों की मिलीभगत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उजागर करने का भी एक महत्वपूर्ण अवसर है।

राणा की गिरफ्तारी: साजिश का परत-दर-परत खुलासा
तहव्वुर राणा, जो एक कनाडाई नागरिक और पाकिस्तानी मूल का व्यक्ति है, पर आरोप है कि उसने लश्कर-ए-तैयबा और हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी जैसे आतंकी संगठनों के साथ मिलकर भारत में कई जगहों की रेकी की और मुंबई हमले की साजिश में सक्रिय भूमिका निभाई।
एनआईए के अनुसार, राणा और डेविड कोलमैन हेडली ने एक कथित इमीग्रेशन कंसल्टेंसी कंपनी के नाम पर भारत के कई शहरों का दौरा किया और संभावित टारगेट्स की जानकारी जुटाई। इस दौरान उन्होंने दिल्ली, जयपुर, पुणे, मुंबई, गोवा जैसे शहरों की रेकी की थी।
NIA की पूछताछ में सामने आ सकते हैं बड़े नाम
एनआईए को उम्मीद है कि तहव्वुर राणा की गिरफ्तारी से मुंबई हमले की बड़ी साजिश का पर्दाफाश होगा। खासतौर पर पाकिस्तान की आईएसआई, लश्कर-ए-तैयबा और वहां की राजनीतिक और सैन्य व्यवस्था की संलिप्तता उजागर हो सकती है।
राणा से पूछताछ के जरिए हाफिज सईद, ज़की-उर-रहमान लखवी, साजिद मीर, मेजर इकबाल जैसे प्रमुख नामों की भूमिका को कानूनी रूप से और पुख्ता किया जा सकता है।
पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ेंगी
भारत में राणा की मौजूदगी और उसके संभावित बयान से पाकिस्तान की वैश्विक छवि पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। पाकिस्तान पहले से ही एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में रहा है और उस पर आतंकवाद को समर्थन देने के आरोप लंबे समय से लगते आए हैं।
अगर तहव्वुर राणा जांच में यह स्वीकार करता है कि पाकिस्तान की एजेंसियों और सेना ने सीधे या परोक्ष रूप से 26/11 जैसे हमलों की योजना बनाई और समर्थन दिया, तो यह एक ऐतिहासिक सबूत बन सकता है, जिससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर और अलग-थलग किया जा सकता है।
भारत की कूटनीतिक और कानूनी जीत
राणा को भारत लाना सिर्फ कानून का सवाल नहीं था, यह एक जटिल कूटनीतिक लड़ाई भी थी। अमेरिका अपने नागरिकों या स्थायी निवासियों को आसानी से प्रत्यर्पित नहीं करता, खासकर जब उन्होंने अमेरिकी अदालत में डील की हो। लेकिन भारत सरकार की निरंतर कोशिशों, मजबूत सबूतों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के चलते यह मुमकिन हो सका।
यह कदम भारत की आतंक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति और दुनिया भर में आतंक के खिलाफ एक निर्णायक नेतृत्व की छवि को भी मजबूत करता है।
अब आगे क्या?
- एनआईए अब राणा से विस्तृत पूछताछ करेगी — क्या पाकिस्तान की ISI इसमें शामिल थी?
- क्या हेडली की गवाही और राणा के बयान मिलकर 26/11 की साजिश के वैश्विक नेटवर्क को उजागर करेंगे?
- क्या भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को बेनकाब कर पाएगा?
- और सबसे बड़ा सवाल – क्या कभी डेविड हेडली को भी भारत लाया जा सकेगा?
तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण केवल एक व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं है, यह एक संप्रभु राष्ट्र द्वारा आतंक के खिलाफ अपनी लड़ाई में हासिल की गई बड़ी नैतिक, कानूनी और कूटनीतिक जीत है। अब जब जांच की अगली कड़ी शुरू हो चुकी है, दुनिया एक बार फिर मुंबई हमलों की सच्चाई से रूबरू हो सकती है और पाकिस्तान को इसका जवाब देना होगा।