ईस्ट इंडिया कंपनी की कहानी: जब भारत को एक कंपनी ने बनाया था गुलाम
भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का इतिहास जितना चौंकाने वाला है, उससे कहीं ज्यादा हैरान करने वाली है ईस्ट इंडिया कंपनी की कहानी। एक मामूली व्यापारिक संगठन से शुरू होकर यह कंपनी इतने ताकतवर साम्राज्य में बदल गई जिसने भारत जैसे विशाल और समृद्ध देश को गुलाम बना डाला। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि यह ताकतवर कंपनी बर्बाद हो गई और आज उसके मालिक खुद एक भारतीय हैं? आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक सफर की पूरी कहानी।
एक मामूली कंपनी से साम्राज्य तक: शुरुआत कैसे हुई?
- सन् 1600 में स्थापना: 31 दिसंबर 1600 को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने व्यापार के विशेषाधिकार के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की।
- उद्देश्य: मसालों, रेशम और कपास के व्यापार के लिए भारत और पूर्वी एशिया तक पहुंच बनाना।
- पहला कदम भारत में: 1608 में कंपनी के कैप्टन विलियम हॉकिंस ने सूरत में पहला कदम रखा।
मुगलों की रजामंदी और ब्रिटिश चालाकी
- जहांगीर से अनुमति: मुगल बादशाह जहांगीर से अनुमति लेने के लिए थॉमस रो को भारत भेजा गया। कीमती तोहफों और राजनीतिक कूटनीति से कंपनी ने व्यापार की इजाजत ले ली।
- सांठगांठ की शुरुआत: पुर्तगाली और डच व्यापारियों से मुकाबला करने के लिए ब्रिटेन ने कंपनी को युद्ध और कॉलोनी बनाने की छूट दी।
व्यापार से सत्ता तक का सफर
- लूट से मुनाफा: कंपनी ने पुर्तगाल का एक जहाज लूटकर 900 टन मसाले से जबरदस्त मुनाफा कमाया।
- प्लासी की लड़ाई (1757): सिराज-उद-दौला को मीर जाफर की गद्दारी के जरिए हराकर बंगाल पर कब्जा जमाया।
- 260000 सैनिकों की सेना: कंपनी की निजी सेना ब्रिटेन की सरकारी सेना से भी बड़ी हो गई।
टैक्स कलेक्टर बनी कंपनी
- 1765: दीवानी हक: रॉबर्ट क्लाइव ने मुगल सम्राट शाह आलम से बंगाल, बिहार और उड़ीसा की टैक्स वसूली का अधिकार ले लिया।
- बिजनेस मॉडल बदला: अब कंपनी केवल व्यापारी नहीं, बल्कि एक शासक बन गई। टैक्स वसूली और प्रशासन इसके प्रमुख काम बन गए।
भारतीय रियासतों को एक-एक कर निगला
- साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाई गई:
- टीपू सुल्तान और मराठा साम्राज्य से युद्ध करके उन्हें हराया।
- रणजीत सिंह के बाद पंजाब पर कब्जा किया।
- डलहौजी की ‘Doctrine of Lapse’ नीति से झांसी, नागपुर और अन्य राज्यों को मिला लिया गया।
1857 की क्रांति: बर्बादी की शुरुआत
- कारतूस विवाद बना चिंगारी: गाय और सूअर की चर्बी से बने कारतूसों ने धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाई, जिससे भारतीय सिपाहियों में असंतोष भड़क उठा।
- मंगल पांडे की शहादत: इस विद्रोह की चिंगारी फैली और झांसी, दिल्ली, बिहार समेत कई क्षेत्रों में बगावत हुई।
- रानी लक्ष्मीबाई, बहादुर शाह जफर, नाना साहेब जैसे नेताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत
- ब्रिटिश संसद का हस्तक्षेप:
- 1813 में अन्य कंपनियों को भारत में व्यापार की अनुमति दी गई।
- 1833 में कंपनी से व्यापार का अधिकार छीन लिया गया।
- 1858: शासन महारानी को सौंपा गया:
- 1857 की क्रांति के बाद ब्रिटिश सरकार ने कंपनी को पूरी तरह खत्म कर दिया।
- भारत पर सीधा शासन शुरू हुआ।
- 1874 में कंपनी आधिकारिक रूप से भंग कर दी गई।
आज की ईस्ट इंडिया कंपनी: अब एक भारतीय के अधीन
- भारतीय बिजनेसमैन संजीव मेहता ने 2010 में इस कंपनी को खरीद लिया।
- खरीद मूल्य: 15 मिलियन डॉलर (लगभग ₹100 करोड़)।
- वर्तमान कार्य: अब यह एक ई-कॉमर्स ब्रांड है जो चाय, कॉफी, चॉकलेट जैसी प्रीमियम वस्तुएं बेचती है।
निष्कर्ष: इतिहास का पहिया घूम गया
एक समय था जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत को अपने आर्थिक हितों के लिए गुलाम बना लिया था। लेकिन आज वही कंपनी एक भारतीय के अधीन है। यह कहानी सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि एक सबक है — कैसे एक व्यापारिक संगठन भी अगर सत्ता की भूख में पड़ जाए तो एक देश की किस्मत बदल सकता है।
FAQs: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
Q. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर शासन कब शुरू किया?
A. प्लासी की लड़ाई के बाद 1757 से कंपनी ने भारत पर नियंत्रण स्थापित करना शुरू किया।
Q. ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत कब हुआ?
A. 1874 में कंपनी को पूरी तरह भंग कर दिया गया।
Q. क्या ईस्ट इंडिया कंपनी अब भी अस्तित्व में है?
A. हां, लेकिन अब यह एक प्राइवेट ई-कॉमर्स ब्रांड है, जिसके मालिक भारतीय व्यवसायी संजीव मेहता हैं।