एक नया आर्थिक युद्ध
आज जब ईरान और इज़राइल के बीच तनाव जारी है और डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर धमकी भरे बयानों के साथ चर्चा में हैं, वहीं वैश्विक राजनीति में एक और बड़ा मोड़ आ रहा है – अमेरिकी डॉलर की वैश्विक पकड़ को चुनौती मिल रही है। यह चुनौती ब्रिक्स देशों और भारत जैसे उभरते देशों की तरफ से आ रही है जो अब वैश्विक व्यापार में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को खत्म करना चाहते हैं।
अमेरिका हर झगड़े में कूदता क्यों है?
आपने अक्सर देखा होगा – अफगानिस्तान हो, इराक हो या हाल ही में ईरान–इज़राइल, अमेरिका हर विवाद में कूद पड़ता है। क्यों?
- सिर्फ मानवाधिकार? नहीं।
- लोकतंत्र की रक्षा? नहीं।
- असल वजह है – डॉलर की ताकत और वैश्विक नियंत्रण।
अमेरिका हर उस देश को टारगेट करता है जो डॉलर के विकल्प पर काम करता है – उदाहरण: इराक, लीबिया, वेनेजुएला।
ब्रिक्स करेंसी: डॉलर का विकल्प?
ब्रिक्स में शामिल देश:
- ब्राज़ील
- रूस
- भारत
- चीन
- दक्षिण अफ्रीका
- साथ ही शामिल होने वाले देश: ईरान, यूएई, मिस्र, इथियोपिया
क्या है ब्रिक्स करेंसी का प्लान?
- एक साझा करेंसी जो डॉलर के विकल्प के रूप में काम करेगी
- वैल्यू निर्धारण:
- 40% गोल्ड रिजर्व पर आधारित
- 60% सदस्य देशों की करेंसी वैल्यू के आधार पर
भारत की भूमिका:
- भारत ने 2022 में घोषणा की कि वह अब कई देशों से रुपये में ट्रेड करेगा
- यह डॉलर को सीधी चुनौती थी, जिससे अमेरिका बुरी तरह से चिढ़ गया
क्यों गोल्ड बन रहा है हथियार?
- 2017 के बाद से भारत गोल्ड स्टॉक करने में आगे रहा है
- 2024 तक भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गोल्ड खरीदार बन चुका है
- आरबीआई ने रिकॉर्ड गोल्ड रिज़र्व जमा किया है
- ब्रिक्स करेंसी के लिए यह सोना बेहद अहम है
टॉप 8 गोल्ड रिज़र्व वाले देश:
देश | गोल्ड (टन में) |
---|---|
अमेरिका | 8133 |
जर्मनी | 3351 |
इटली | 2451 |
फ्रांस | 2436 |
रूस | 2335 |
चीन | 2264 |
जापान | 845 |
भारत | 840 |
डॉलर को क्यों है इतना डर?
- 96% ग्लोबल ट्रेड डॉलर में होता है
- डॉलर की जगह कोई और करेंसी आई तो अमेरिका का आर्थिक मॉडल ही ध्वस्त हो जाएगा
- डॉलर का रुतबा खत्म = अमेरिका की दादागिरी खत्म
इतिहास गवाह है: जिसने डॉलर को चुनौती दी, वो मारा गया
1. कर्नल गद्दाफी (लीबिया)
- गोल्ड दीनार नामक करेंसी की योजना
- डॉलर को हटाकर ट्रेड शुरू करने की कोशिश
- नतीजा: अमेरिका ने NATO के जरिए हमला करवाया, गद्दाफी की हत्या
2. सद्दाम हुसैन (इराक)
- यूरो में तेल बेचने की योजना
- डॉलर से दूरी बनाने की कोशिश
- अमेरिका ने हमला किया, झूठे आरोप लगाए और फांसी दे दी
3. वेनेजुएला
- अमेरिका समर्थक सरकार हारी
- डॉलर से ट्रेड पर रोक, आर्थिक प्रतिबंध
- देश में भुखमरी, मुद्रास्फीति चरम पर
भारत और ब्रिक्स: क्या दोबारा हो सकता है इतिहास?
भारत की वर्तमान रणनीति:
- रूपए में ट्रेड
- गोल्ड रिज़र्व का बढ़ता स्टॉक
- ब्रिक्स करेंसी के समर्थन से अमेरिकी सिस्टम को सीधी चुनौती
भारतीय रुपये का स्वर्णिम अतीत
क्या आपको पता है?
1947 से 1966 तक भारतीय रूपया यूएई, ओमान, कतर, बहरीन और कुवैत जैसे देशों में चलता था।
- भारत का रूपया उनकी अधिकारिक करेंसी हुआ करता था
- RBI ने अलग सीरीज निकाली थी – Z1 (पिंक करेंसी)
- हज करेंसी – विशेषत: सऊदी अरब जाने वाले यात्रियों के लिए
क्यों बंद हुआ?
- 1962: चीन से युद्ध
- 1965: पाकिस्तान से युद्ध
- 1966: भयंकर सूखा
- रूपए की वैल्यू गिर गई – $1 = ₹7.5
- गल्फ देशों ने अपनी करेंसी शुरू कर दी
अगर वो ना हुआ होता तो?
कल्पना कीजिए, अगर भारतीय करेंसी गल्फ में आज भी चल रही होती और फिर इन देशों में तेल का भंडार निकलता…
- क्या आज डॉलर की जगह भारतीय रुपया वैश्विक करेंसी नहीं होता?
- कुवैत दीनार की कीमत ₹280, बहरीन दीनार ₹225, ओमानी रियाल ₹220+
- और हम ₹1 = $3 जैसी स्थिति में हो सकते थे
ब्रिक्स का आज और कल
- ब्रिक्स देशों की दुनिया की 45% आबादी
- 37% ग्लोबल GDP
- अगर इन देशों में ब्रिक्स करेंसी से ट्रेड शुरू हुआ तो डॉलर की ताकत को सीधी चुनौती
निष्कर्ष: क्या अमेरिका का वर्चस्व खत्म हो सकता है?
बिलकुल संभव है।
जिस दिन:
- ब्रिक्स करेंसी पूरी तरह लागू हो जाए
- भारत समेत सदस्य देश डॉलर की जगह अपनी करेंसी में व्यापार करें
- गोल्ड आधारित ट्रांजैक्शन दुनिया भर में फैलें
उस दिन अमेरिकी डॉलर और उसकी दादागिरी अतीत की बात बन जाएगी।
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