बिहार: विधानसभा चुनाव के नतीजों में एनडीए ने धमाकेदार जीत दर्ज की है। पूरा प्रदेश भगवा रंग में रंगा दिख रहा है। रुझानों और नतीजों में एनडीए को 200 से अधिक सीटें मिलती नजर आईं, जबकि महागठबंधन का लगभग सफाया हो गया। आरजेडी मात्र 25 सीटों तक सीमित हो गई। इसी बीच कांग्रेस की स्थिति और भी खराब रही और वह आठवें नंबर की पार्टी बनकर रह गई। पार्टी को सिर्फ एक सीट—किशनगंज—पर बढ़त मिली है।
इसी राजनीतिक माहौल के बीच कांग्रेस नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर का बयान सामने आया है। उन्होंने स्वीकार किया कि पार्टी को बिहार में करारी हार मिली है और इस हार की वजहों की गहराई से जांच की जानी चाहिए।
थरूर ने क्यों जताई नाराजगी?
शशि थरूर ने कहा कि उन्हें बिहार चुनाव प्रचार के लिए बुलाया ही नहीं गया था। उनका कहना था कि जब वे खुद चुनाव प्रचार का हिस्सा नहीं थे, तो व्यक्तिगत अनुभव साझा करना संभव नहीं। उन्होंने बताया कि पार्टी अब इस हार की पूरी समीक्षा करेगी ताकि वास्तविक कारण सामने आ सकें।
हार के लिए किसे माना जिम्मेदार?
थरूर ने सीधा किसी नेता पर आरोप नहीं लगाया, लेकिन इशारों में कहा कि कांग्रेस गठबंधन की “मुख्य पार्टी” नहीं थी, इसलिए आरजेडी को भी अपने कमजोर प्रदर्शन पर आत्मचिंतन करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जनता का रुझान, पार्टी संगठन की स्थानीय क्षमता, संदेश पहुंचाने की मजबूती—सब चीज़ों का महत्व होता है और इन सभी बिंदुओं पर गंभीर विश्लेषण जरूरी है।
थरूर ने पार्टी को क्या सलाह दी?
उन्होंने कहा कि चुनाव परिणाम यह संकेत देते हैं कि कांग्रेस को अपने संगठन, संदेश और नेतृत्व रणनीति पर दोबारा ध्यान देने की जरूरत है। थरूर के अनुसार चुनाव कई तत्वों पर निर्भर करते हैं और अब समय है कि पार्टी हर पहलू का गहराई से मूल्यांकन करे।
कांग्रेस के भीतर बढ़ी खींचतान
इस बीच, पार्टी के वरिष्ठ नेता एम. एम. हसन ने थरूर की आलोचना की। हाल ही में थरूर ने एक लेख में वंशवाद की राजनीति को भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा बताया था, जिसे लेकर हसन ने कड़ा रुख दिखाया। उनका कहना था कि थरूर स्वयं नेहरू-गांधी परिवार के समर्थन से राजनीति में आगे आए हैं और जो सम्मान व पद उन्हें मिले, वे उसी परिवार की वजह से मिले।





