रिपोर्ट- प्रयास कैवर्त
Chhattisgarh Police: मरवाही गौरेला-पेंड्रा-मरवाही; आमतौर पर डर और सख्ती की पहचान मानी जाने वाली खाकी वर्दी यानि पुलिस जब संवेदनशीलता और भरोसे का रूप ले ले, तो समाज के लिए एक मिसाल बन जाती है। ऐसा ही एक मानवीय दृश्य मरवाही थाना परिसर में देखने को मिला, जहां पुलिस ने कानून के साथ-साथ इंसानियत की भी मिसाल पेश की है। मरवाही थाना क्षेत्र के धूम्माटोला बहरीझोरकी निवासी 21 वर्षीय संजय सिंह और मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के बेलिया छोट गांव की 20 वर्षीय मीरा सिंह एक-दूसरे से प्रेम करते थे और विवाह करना चाहते थे। लेकिन परिजनों की असहमति उनके प्यार के रास्ते में दीवार बनकर खड़ी थी। समाज और परिवार के डर से घिरे इस प्रेमी जोड़े ने आखिरकार कानून से उम्मीद लगाई और मरवाही थाना प्रभारी सनीप रात्रे से सुरक्षा व मदद की गुहार लगाई।

Chhattisgarh Police: परिवार के विरोध के बीच थाने पहुँचा प्रेमी जोड़ा
दोनों के बालिग होने और उनके फैसले की गंभीरता को समझते हुए थाना प्रभारी सनीप रात्रे ने संवेदनशीलता दिखाई। उन्होंने दोनों पक्षों के परिजनों को थाने बुलाकर शांतिपूर्वक बातचीत की, कानूनी और सामाजिक पहलुओं को समझाया और प्रेमी जोड़े के भविष्य को प्राथमिकता दी। पुलिस की इस पहल का असर यह हुआ कि जहां पहले विरोध था, वहीं बाद में सहमति और आशीर्वाद नजर आया। परिजनों की सहमति मिलने के बाद थाना परिसर स्थित शिव मंदिर में विवाह की व्यवस्था की गई। मंदिर में शहनाई की गूंज और मंत्रोच्चार के बीच मीरा और संजय ने सात फेरे लिए। थाना प्रभारी स्वयं इस विवाह के साक्षी बने।

Chhattisgarh Police: थाना प्रभारी की पहल से परिजनों की बदली सोच
इस भावुक पल में जब माता-पिता ने बच्चों को आशीर्वाद दिया, तो माहौल में भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा। प्रेमी जोड़े ने पुलिस प्रशासन का आभार जताते हुए कहा कि आज उन्हें न सिर्फ जीवनसाथी मिला, बल्कि समाज और कानून पर भरोसा भी और मजबूत हुआ।
मरवाही थाना परिसर में हुआ यह विवाह साबित करता है कि पुलिस केवल कानून लागू करने वाली संस्था नहीं, बल्कि जरूरत पड़ने पर टूटते रिश्तों को जोड़ने वाली उम्मीद भी बन सकती है।
Chhattisgarh Police: विरोध क्यों, माता-पिता बच्चों की पसंद को समाज की कसौटी पर तौलते हैं
लव मैरिज को लेकर परिजनों की असहमति भारतीय समाज में आज भी एक आम स्थिति है। इसके पीछे कई गहरे सामाजिक, सांस्कृतिक और मानसिक कारण जुड़े होते हैं। सबसे बड़ा कारण परंपरागत सोच है, जहां विवाह को सिर्फ दो व्यक्तियों का नहीं बल्कि दो परिवारों और सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ा निर्णय माना जाता है। ऐसे में माता-पिता अपने बच्चों की पसंद को समाज की कसौटी पर तौलते हैं।
जाति और वर्ग व्यवस्था भी असहमति की बड़ी वजह है। कई परिवार आज भी जाति, गोत्र और सामाजिक स्तर को विवाह का आधार मानते हैं। उन्हें डर रहता है कि अलग जाति या क्षेत्र में विवाह करने से सामाजिक बहिष्कार या ताने झेलने पड़ सकते हैं।
इसके अलावा सामाजिक बदनामी का भय भी अहम भूमिका निभाता है। पड़ोसी, रिश्तेदार और समाज “क्या कहेगा” यह सोच परिजनों को बच्चों की खुशी से ज्यादा प्रभावित करती है। कई बार यह डर इतना हावी हो जाता है कि माता-पिता संवाद के बजाय विरोध का रास्ता चुन लेते हैं। सुरक्षा और भविष्य की चिंता भी एक कारण है। माता-पिता को आशंका रहती है कि भावनाओं में लिया गया फैसला भविष्य में गलत साबित हो सकता है और इसका खामियाजा संतान को भुगतना पड़ेगा। हालांकि बदलते समय के साथ सोच में बदलाव आ रहा है, लेकिन लव मैरिज को स्वीकार करने के लिए अभी भी समाज को संवाद, विश्वास और समझदारी की दिशा में लंबा सफर तय करना बाकी है।





