आजकल भारत में ChatGPT और AI टूल्स का क्रेज तेजी से बढ़ रहा है। बच्चे से लेकर युवा तक हर कोई पढ़ाई, प्रोजेक्ट और निबंध लिखने के लिए AI का इस्तेमाल कर रहा है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह सुविधा आपके बच्चों के दिमाग पर क्या असर डाल रही है? एक नई रिसर्च बताती है कि AI का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल बच्चों और युवाओं की सोचने-समझने की क्षमता पर बुरा असर डाल सकता है।
भारत में सबसे ज्यादा ChatGPT यूजर
- एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में भारत ChatGPT यूजर्स के मामले में टॉप पर है।
- देश में करीब 10 करोड़ लोग ChatGPT का इस्तेमाल कर रहे हैं।
- खासतौर पर युवा और छात्र हर सवाल का जवाब पाने के लिए AI टूल्स पर निर्भर होते जा रहे हैं।
बच्चों के लिए ChatGPT बना ‘जादू की छड़ी’
- बच्चे स्कूल का होमवर्क करने से लेकर निबंध और प्रोजेक्ट तैयार करने तक में AI का इस्तेमाल कर रहे हैं।
- इससे भले ही काम जल्दी पूरा हो रहा है, लेकिन इसके पीछे की मेहनत और बौद्धिक विकास धीरे-धीरे कम हो रहा है।
MIT की रिसर्च में बड़ा खुलासा
अमेरिका की मशहूर MIT यूनिवर्सिटी की स्टडी ने AI टूल्स के नुकसान पर बड़ा खुलासा किया है। जानिए इस स्टडी के नतीजे:
रिसर्च कैसे की गई?
- 18 से 39 वर्ष के 54 लोगों को तीन ग्रुप में बांटा गया:
- पहला ग्रुप – बिना किसी डिजिटल मदद के निबंध लिखा।
- दूसरा ग्रुप – ChatGPT की मदद से निबंध तैयार किया।
- तीसरा ग्रुप – Google सर्च की मदद से निबंध लिखा।
- चार महीने तक इन सभी की दिमागी गतिविधियों पर नजर रखी गई।
चौंकाने वाले नतीजे
- जो लोग ChatGPT का इस्तेमाल कर रहे थे, उनका काम तो जल्दी हो रहा था, लेकिन उनके दिमाग में न्यूनतम गतिविधि देखी गई।
- ये लोग ज्यादातर ChatGPT का जवाब कॉपी-पेस्ट कर रहे थे, खुद से सोचने और तर्क करने की क्षमता कमजोर पड़ रही थी।
- इसके उलट, जिन्होंने बिना किसी डिजिटल टूल के खुद से निबंध लिखा, उनके दिमाग की सक्रियता सबसे ज्यादा पाई गई।
- Google सर्च करने वाले ग्रुप के नतीजे ChatGPT वाले ग्रुप से बेहतर लेकिन बिना टूल वाले ग्रुप से कमजोर थे।
ज्यादा AI इस्तेमाल से बच्चों पर बुरा असर
MIT की स्टडी के मुताबिक, जरूरत से ज्यादा AI इस्तेमाल से:
✔ बच्चों की रचनात्मकता प्रभावित होती है।
✔ क्रिटिकल थिंकिंग और तार्किक क्षमता कमजोर पड़ती है।
✔ याददाश्त पर नकारात्मक असर पड़ता है।
✔ बौद्धिक विकास में बाधा आती है।
नई टेक्नोलॉजी खतरा नहीं, लेकिन संतुलन जरूरी
हर नई टेक्नोलॉजी पर बहस होना आम बात है। इतिहास में भी जब:
- टाइपराइटर आया तो कहा गया लोग लिखना भूल जाएंगे।
- कैलकुलेटर आया तो गिनती कमजोर पड़ने की बात हुई।
- कंप्यूटर और इंटरनेट के आने पर नौकरियों पर खतरा बताया गया।
इसी तरह आज AI और ChatGPT पर भी सवाल उठ रहे हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि टेक्नोलॉजी खुद में खतरनाक नहीं होती, जब तक उसका सही और संतुलित इस्तेमाल किया जाए।
AI को मालिक नहीं, सहायक बनाएं
- AI का इस्तेमाल करें, लेकिन उस पर पूरी तरह निर्भर न रहें।
- बच्चों को सिर्फ जवाब नहीं, सोचने और समझने की ट्रेनिंग दें।
- स्कूल और घर पर बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वे खुद से सवालों के जवाब ढूंढें।
AI और सोशल मीडिया – बच्चों के लिए दोहरी चुनौती
आज के बच्चों के सामने दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं:
- AI टूल्स का बढ़ता इस्तेमाल
- सोशल मीडिया की लत
इन दोनों पर कंट्रोल के लिए:
- अभिभावकों को सजग रहना होगा।
- स्कूलों को बच्चों में सोचने-समझने की क्षमता बढ़ाने पर फोकस करना होगा।
- जरूरत पड़ी तो देश में इन पर नियंत्रण के लिए कानून भी लाए जाने चाहिए।
निष्कर्ष: AI मददगार है, विकल्प नहीं
ChatGPT या कोई भी AI टूल आपके काम को आसान बना सकता है, लेकिन यह आपके दिमाग और सोचने की क्षमता का विकल्प नहीं हो सकता। बच्चों को तेज बनाने के चक्कर में उनके सोचने की आदत छीनना खतरनाक साबित हो सकता है। सही संतुलन के साथ AI का इस्तेमाल करें और बच्चों में खुद से सोचने-समझने की आदत विकसित करें।