बृजेश सिंह की कहानी: जहां रसोइया भी जीत जाता है चुनाव, बिना एक भी विरोधी के

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इतना ताकतवर है बृजेश सिंह कि रसोइया भी चुनाव जीता

पूर्वांचल की धरती ने कई बड़े नाम देखे हैं, लेकिन जब ‘बृजेश सिंह’ का नाम आता है, तो गांव से शहर तक हर कोई जानता है। कभी गैंगवार का पर्याय रहे बृजेश सिंह आज सत्ता का हिस्सा हैं। इस लेख में जानिए कि कैसे एक पढ़ने-लिखने वाला नौजवान पूर्वांचल का सबसे ताकतवर डॉन बना, फिर राजनीति में कदम रखकर एमएलसी की कुर्सी तक पहुंच गया।

Contents
राजनीति और सत्ता में पकड़बचपन से पढ़ाई में तेज, फिर आया मोड़पिता की हत्या और बदले की आगगैंगवार की शुरुआत और गिरफ्तारीमुख्तार अंसारी से दुश्मनीगाजीपुर में मुख्तार के गुरु की हत्यामुंबई भागने और अंडरवर्ल्ड से संपर्कदाऊद से दोस्ती, फिर दुश्मनीराजनीतिक संरक्षण और नया अध्यायगिरफ्तारियां और सत्ता की वापसीराजनीति में एंट्री: एक सोची-समझी रणनीतिकृष्णानंद राय की भूमिकाराजनीति में पहला बड़ा झटका: कृष्णानंद राय की हत्यागिरफ्तारी और फिर से राजनीतिक पुनर्जन्मएमएलसी सीट पर कब्ज़ा: परिवार के साथ सत्ता की ओरनिर्विरोध जीत का मामलाआज का बृजेश सिंह: डॉन नहीं, पावरफुल पॉलिटिशियनबृजेश सिंह की छवि: अपराधी या जनप्रतिनिधि?दोहरी पहचान:“हिंदू डॉन” या “देशभक्त डॉन”राजनीतिक भविष्य: खतरे और संभावनाएंनिष्कर्ष: एक नई पहचान की तलाश

राजनीति और सत्ता में पकड़

  • वाराणसी के एमएलसी सीट पर पिछले चार बार से बृजेश सिंह का परिवार काबिज रहा है।
  • पहले दो बार बड़े भाई उदय भान सिंह, फिर पत्नी अनपूर्णा सिंह, और 2016 में खुद बृजेश सिंह एमएलसी बने।
  • बृजेश सिंह का रुतबा इतना है कि जब उसने अपने रसोइए को ग्राम प्रधान का टिकट दिलवाया, तो वह निर्विरोध चुनाव जीत गया।

बचपन से पढ़ाई में तेज, फिर आया मोड़

  • बृजेश सिंह का जन्म वाराणसी में हुआ, पिता रविंद्र कुमार सिंह रसूखदार व्यक्ति थे।
  • 1984 में इंटर की परीक्षा में अच्छे नंबर लाकर राज्यभर में नाम कमाया।
  • यूपी कॉलेज से बीएससी में दाखिला लेकर अच्छे नंबरों से ग्रेजुएट हुआ।

पिता की हत्या और बदले की आग

  • 27 अगस्त 1984 को पिता की हत्या कर दी गई, आरोप हरिहर सिंह और पांचू सिंह पर लगे।
  • एक साल बाद, 27 मई 1985 को बृजेश ने हरिहर सिंह को मौत के घाट उतार दिया।
  • यहीं से अपराध की दुनिया में उसका पहला कदम पड़ा, और उस पर पहला केस दर्ज हुआ।

गैंगवार की शुरुआत और गिरफ्तारी

  • 9 अप्रैल 1986 को बृजेश ने अपने पिता के अन्य हत्यारों को भी मार गिराया।
  • पहली बार पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया, लेकिन जेल में वह और मजबूत हो गया।
  • यहीं उसकी मुलाकात हुई त्रिभुवन सिंह से, जिसके साथ मिलकर शराब, रेशम, और कोयले के धंधे में उतरे।

मुख्तार अंसारी से दुश्मनी

  • 90 के दशक में बृजेश की टक्कर हुई पूर्वांचल के बाहुबली मुख्तार अंसारी से।
  • दुश्मनी इतनी बढ़ी कि सतीश सिंह (बृजेश का चचेरा भाई) की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई।
  • बृजेश ने बदला लिया, लेकिन इस गैंगवार में कई जानें गईं – जिनमें ‘अजय खलनायक’ और त्रिभुवन सिंह का भाई भी शामिल था।

गाजीपुर में मुख्तार के गुरु की हत्या

  • गैंग ने गाजीपुर अस्पताल में भर्ती मुख्तार के गुरु साधु सिंह को ढूंढ़कर मार गिराया।
  • इसके बाद मुख्तार ने राजनीतिक और कानूनी तरीकों से बृजेश के लिए मुश्किलें खड़ी कर दीं।

मुंबई भागने और अंडरवर्ल्ड से संपर्क

  • पुलिस और गैंग दोनों से बचने के लिए बृजेश मुंबई भाग गया।
  • वहां मुलाकात हुई दाऊद इब्राहिम के करीबी सुभाष ठाकुर से।
  • 12 फरवरी 1992 को बृजेश ने डॉक्टर बनकर जेजे अस्पताल में चार गैंगस्टर्स को मार गिराया – यह उसकी सबसे चर्चित वारदातों में एक बनी।

दाऊद से दोस्ती, फिर दुश्मनी

  • दाऊद ने उसके दिमाग का लोहा माना, लेकिन 1993 मुंबई ब्लास्ट के बाद दोनों में दुश्मनी हो गई।
  • बृजेश ने ब्लास्ट को देशद्रोह माना और दाऊद से दूरी बना ली – यहीं से उसे ‘देशभक्त डॉन’ या ‘हिंदू डॉन’ कहा जाने लगा।

राजनीतिक संरक्षण और नया अध्याय

  • बाद में बृजेश ने बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय से नजदीकी बनाई।
  • लेकिन मुख्तार की गैंग ने कृष्णानंद राय की भी हत्या कर दी।
  • इसके बाद बृजेश यूपी छोड़कर फरार हो गया, और मुख्तार अंसारी ने पूर्वांचल पर एकछत्र कब्जा कर लिया।

गिरफ्तारियां और सत्ता की वापसी

  • 2005 में मुख्तार अंसारी को गिरफ्तार किया गया।
  • 2008 में बृजेश सिंह को भी उड़ीसा से गिरफ्तार किया गया।
  • इसके बावजूद, बृजेश की राजनीति में पकड़ बनी रही, और आज भी वह पूर्वांचल की राजनीति में एक ताकतवर नाम है।

राजनीति में एंट्री: एक सोची-समझी रणनीति

जेल में रहते हुए ही बृजेश सिंह ने यह समझ लिया था कि सिर्फ बंदूक की ताकत से बदलाव नहीं लाया जा सकता — सत्ता का हिस्सा बनना ज़रूरी है। यही सोच उसे राजनीति की ओर ले गई।
1990 के दशक के अंत तक बृजेश सिंह धीरे-धीरे राजनीतिक गलियारों में अपनी पकड़ मजबूत करने लगा।

कृष्णानंद राय की भूमिका

  • बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय बृजेश सिंह के करीबी बन चुके थे।
  • बृजेश को राजनीतिक संरक्षण मिला, और इसके पीछे रणनीति थी कि पूर्वांचल में अपराध से राजनीति की ओर संक्रमण संभव हो सके।

राजनीति में पहला बड़ा झटका: कृष्णानंद राय की हत्या

  • 2005 में मुख्तार अंसारी की गैंग ने कृष्णानंद राय की हत्या कर दी।
  • यह पूर्वांचल की राजनीति में एक बड़ा भूचाल था, जिससे बृजेश सिंह को गहरा झटका लगा।
  • इसके बाद उसने उत्तर प्रदेश छोड़ दिया और अंडरग्राउंड हो गया।

गिरफ्तारी और फिर से राजनीतिक पुनर्जन्म

  • 2008 में उड़ीसा से गिरफ्तारी के बाद, ऐसा लगा कि बृजेश सिंह की कहानी खत्म हो जाएगी।
  • लेकिन असल में, यह नई शुरुआत थी।
  • जेल से निकलने के बाद, उसने फिर से राजनीति में कदम रखा — इस बार और भी संगठित रणनीति के साथ।

एमएलसी सीट पर कब्ज़ा: परिवार के साथ सत्ता की ओर

  • बृजेश सिंह का परिवार अब सत्ता का हिस्सा बन चुका था:
    • दो बार बड़े भाई उदय भान सिंह एमएलसी बने।
    • फिर पत्नी अनपूर्णा सिंह ने सीट संभाली।
    • मार्च 2016 में खुद बृजेश सिंह ने वाराणसी से एमएलसी जीतकर विधानसभा में एंट्री ली।

निर्विरोध जीत का मामला

  • अपने रसूख का इस्तेमाल कर बृजेश ने अपने रसोइये को प्रधान पद का उम्मीदवार बनाया।
  • किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उसके खिलाफ खड़ा हो, और रसोइया निर्विरोध जीत गया।

आज का बृजेश सिंह: डॉन नहीं, पावरफुल पॉलिटिशियन

आज बृजेश सिंह को पूर्वांचल में राजनीति का पावर सेंटर माना जाता है।
वह न सिर्फ अपने क्षेत्र की राजनीति को प्रभावित करता है, बल्कि स्थानीय प्रशासन, ठेकेदारी, और नीतिगत फैसलों में भी उसकी भूमिका अहम मानी जाती है।


बृजेश सिंह की छवि: अपराधी या जनप्रतिनिधि?

दोहरी पहचान:

  • अपराध की दुनिया का पुराना खिलाड़ी, लेकिन अब लोकतांत्रिक तरीके से जनप्रतिनिधि।
  • जनता के बीच उसकी छवि ‘स्थानीय हितैषी’ की बन गई है, खासतौर पर उन इलाकों में जहां सरकार की पहुंच कमजोर रही है।

“हिंदू डॉन” या “देशभक्त डॉन”

  • कुछ समर्थक उसे “हिंदू डॉन” कहते हैं — क्योंकि उसने दाऊद और मुस्लिम डॉनों के खिलाफ मोर्चा खोला।
  • कुछ लोग उसे “देशभक्त” मानते हैं, क्योंकि उसने 1993 ब्लास्ट के बाद दाऊद से नाता तोड़ दिया था।

राजनीतिक भविष्य: खतरे और संभावनाएं

  • अगर बृजेश सिंह अपने आपराधिक इतिहास को पीछे छोड़कर पारदर्शी राजनीति करता है, तो वह पूर्वांचल का असली ‘किंगमेकर’ बन सकता है।
  • लेकिन उसकी पुरानी दुश्मनियाँ, कोर्ट केस और विवादित छवि उसका भविष्य भी खतरे में डाल सकती है।

निष्कर्ष: एक नई पहचान की तलाश

बृजेश सिंह की कहानी ये दर्शाती है कि भारत की राजनीति में आज भी बाहुबल और लोकप्रियता का मेल काम करता है।
जहां एक ओर अपराध से जुड़ी छवि है, वहीं दूसरी ओर वह विकास, प्रभाव और नेतृत्व का चेहरा भी बन चुका है।

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