23 फरवरी 2025 को दुबई इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाला चैंपियंस ट्रॉफी मुकाबला क्रिकेट की दुनिया का सबसे बड़ा तमाशा होने जा रहा है। इस हाई-वोल्टेज मैच की टिकटों की माँग आसमान छू रही है, लेकिन जितनी तेज़ी से ये टिकटें आधिकारिक बिक्री में खत्म हुईं, उतनी ही तेज़ी से इन्हें काले बाज़ार में ऊँचे दामों पर बेचा जा रहा है। मूल कीमत से कई गुना ज्यादा कीमत पर बिक रही इन टिकटों के पीछे की कहानी एक गहरी साजिश और मोटे मुनाफे का खेल छुपा है। आइए, इस कालाबाज़ारी की अंदरूनी दुनिया में झाँकें और जानें कि कौन हैं वो लोग, जो इस मौके को सोने की खान में बदल रहे हैं।
टिकटों की बिक्री: मिनटों में खत्म, घंटों में काला बाज़ार
जब 3 फरवरी को भारत-पाकिस्तान मैच की टिकटें आधिकारिक तौर पर बिक्री के लिए खुलीं, तो लाखों फैंस ऑनलाइन कतार में लग गए। सामान्य टिकट की कीमत 125 दिरहम (लगभग 2,965 रुपये) से शुरू होकर प्रीमियम टिकटों के लिए 5,000 दिरहम (लगभग 1,18,638 रुपये) तक थी। लेकिन कुछ ही मिनटों में सारी टिकटें बिक गईं। दुबई में रहने वाले एक फैन, अहमद खान, बताते हैं, “मैंने जैसे ही बुकिंग शुरू की, मेरे सामने 1,40,000 लोग कतार में थे। 56 मिनट बाद जब मेरी बारी आई, तो सब खत्म हो चुका था।”
लेकिन जो टिकटें आधिकारिक वेबसाइट पर खत्म हुईं, वो कुछ ही घंटों बाद फेसबुक मार्केटप्लेस, व्हाट्सऐप ग्रुप्स, और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर नज़र आने लगीं। सामान्य टिकटें, जो 125 दिरहम की थीं, अब 3,500 दिरहम (लगभग 83,000 रुपये) तक में बिक रही हैं। प्रीमियम टिकटों की कीमत तो 10,000 दिरहम (लगभग 2,37,276 रुपये) से भी ऊपर जा चुकी है। कुछ रीसेलर्स तो पूरे पैकेज—भारत के सभी ग्रुप मैचों की टिकटें—6,000 दिरहम में बेच रहे हैं। यह साफ है कि कालाबाज़ारी का यह खेल सुनियोजित और संगठित है।
कौन हैं काले बाज़ार के खिलाड़ी?
इस कालाबाज़ारी के पीछे कई तरह के लोग शामिल हैं। पहला समूह है तकनीकी विशेषज्ञों का, जो बॉट्स और ऑटोमेटेड सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके आधिकारिक बिक्री शुरू होते ही सैकड़ों टिकटें खरीद लेते हैं। दुबई के एक आईटी प्रोफेशनल, जो गुमनाम रहना चाहते थे, बताते हैं, “ये बॉट्स सेकंडों में टिकटें बुक कर लेते हैं। फिर इन्हें ऊँचे दामों पर बेच दिया जाता है। यह एक बड़ा नेटवर्क है, जिसमें कई लोग शामिल हैं।”
दूसरा समूह है स्थानीय रीसेलर्स का, जो यूएई में रहते हैं और भारत-पाकिस्तान मैच की माँग को अच्छी तरह समझते हैं। शारजाह में रहने वाले एक रीसेलर, जिसने अपना नाम जाहिर नहीं किया, कहता है, “मुझे पिछले हफ्ते से 50 से ज़्यादा कॉल्स आ चुके हैं। लोग मोलभाव करते हैं, लेकिन 3,000 दिरहम में भी टिकट लेने को तैयार हैं। जितना करीब मैच आएगा, कीमत उतनी ही बढ़ेगी।” ये रीसेलर अक्सर सोशल मीडिया और व्हाट्सऐप के ज़रिए अपने ग्राहकों तक पहुँचते हैं, और नकद लेनदेन को तरजीह देते हैं ताकि कोई सबूत न बचे।
तीसरा समूह है बड़े ऑपरेटर्स का, जो टिकटों को थोक में खरीदते हैं और फिर इन्हें छोटे रीसेलर्स को सप्लाई करते हैं। कुछ सूत्रों का दावा है कि इसमें कुछ ट्रैवल एजेंसियाँ और टिकटिंग कंपनियाँ भी शामिल हो सकती हैं, जो अपने कनेक्शंस का इस्तेमाल करके टिकटों का स्टॉक जमा करती हैं। ये लोग मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा अपने पास रखते हैं और बाकी को नीचे की चेन में बाँटते हैं।
मोटा मुनाफा: आँकड़ों का खेल
इस कालाबाज़ारी से होने वाला मुनाफा चौंका देने वाला है। अगर एक सामान्य टिकट 125 दिरहम में खरीदी गई और 3,500 दिरहम में बेची गई, तो प्रति टिकट का मुनाफा 3,375 दिरहम (लगभग 80,000 रुपये) है। मान लीजिए एक रीसेलर ने 50 टिकटें खरीदीं और बेचीं, तो उसका कुल मुनाफा 1,68,750 दिरहम (लगभग 40 लाख रुपये) हो सकता है। प्रीमियम टिकटों पर यह मुनाफा और भी ज़्यादा है। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत-पाकिस्तान मैच की टिकटें काले बाज़ार में 4 से 5 लाख रुपये तक पहुँच गई हैं।
दुबई में एक क्रिकेट फैन क्लब के सदस्य, सुहैल मलिक, कहते हैं, “यह मुनाफा सिर्फ पैसों का खेल नहीं, बल्कि फैंस की भावनाओं का शोषण है। जो लोग सालों से इस मैच का इंतज़ार कर रहे हैं, उनके पास अब काले बाज़ार के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा।” यह सही है—25,000 सीटों वाले स्टेडियम की टिकटें लाखों फैंस की माँग को पूरा नहीं कर सकतीं, और इसी कमी का फायदा कालाबाज़ारी करने वाले उठा रहे हैं।
कैसे काम करता है यह नेटवर्क?
कालाबाज़ारी का यह नेटवर्क बेहद संगठित है। सबसे पहले, टिकटें खरीदने के लिए बॉट्स और फर्ज़ी अकाउंट्स का इस्तेमाल होता है। इसके बाद, ये टिकटें सोशल मीडिया या निजी चैट ग्रुप्स में विज्ञापन के ज़रिए बेची जाती हैं। लेनदेन अक्सर नकद या क्रिप्टोकरेंसी में होता है, ताकि ट्रेस करना मुश्किल हो। कुछ रीसेलर तो दुबई के मॉल्स और कैफे में मिलने को कहते हैं, जहाँ वे टिकटें हाथों-हाथ देते हैं।
एक और तरीका है “बंडल डील्स”—यानी कई मैचों की टिकटें एक साथ बेचना। उदाहरण के लिए, भारत बनाम बांग्लादेश, भारत बनाम पाकिस्तान, और भारत बनाम न्यूज़ीलैंड की टिकटें एक पैकेज में बेची जा रही हैं। इससे रीसेलर्स को ज़्यादा मुनाफा होता है, क्योंकि फैंस पूरे टूर्नामेंट का रोमांच लेना चाहते हैं।
फैंस की मजबूरी और नाराज़गी
यह कालाबाज़ारी फैंस के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। अबु धाबी में रहने वाले भारतीय प्रवासी, राहुल मेहता, कहते हैं, “मैंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर टिकट लेने की योजना बनाई थी, लेकिन अब 80,000 रुपये खर्च करने की हिम्मत नहीं है। यह बहुत नाइंसाफी है।” इसी तरह, कराची से दुबई आने की तैयारी कर रहे एक पाकिस्तानी फैन, ज़ैनाब खान, कहती हैं, “हमारे लिए यह मैच भावनाओं का सवाल है, लेकिन अब यह सिर्फ अमीरों का खेल बन गया है।”
आईसीसी ने कालाबाज़ारी रोकने के लिए कुछ कदम उठाए हैं, जैसे टिकट खरीदने की सीमा चार प्रति व्यक्ति तक रखना और पासपोर्ट नंबर के साथ रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करना। लेकिन ये उपाय बॉट्स और संगठित नेटवर्क को रोकने में नाकाफी साबित हुए हैं।
दुबई में टिकटों की कालाबाज़ारी की यह अंदरूनी कहानी एक कड़वी सच्चाई को उजागर करती है—क्रिकेट का जुनून अब कुछ लोगों के लिए मोटे मुनाफे का ज़रिया बन गया है। तकनीकी चालाकी, स्थानीय रीसेलर्स, और बड़े ऑपरेटर्स का यह गठजोड़ फैंस की मजबूरी का फायदा उठा रहा है। 23 फरवरी को जब भारत और पाकिस्तान मैदान पर उतरेंगे, तो स्टेडियम में बैठे कुछ लोग वो होंगे, जिन्होंने अपनी जेब ढीली की होगी, और कुछ वो, जिन्होंने दूसरों की जेब से लाखों कमाए होंगे। यह काला बाज़ार सिर्फ टिकटों का खेल नहीं, बल्कि भावनाओं और सपनों की नीलामी है। सवाल यह है—क्या इस जंग में असली जीत फैंस की होगी, या कालाबाज़ारियों की? जवाब शायद मैच के दिन ही मिले। तब तक, यह खेल मैदान से बाहर भी उतना ही रोमांचक बना रहेगा।
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