गरबा पंडालों में अशोभनीयता और प्रवेश पर जताई आपत्ति
by: vijay nandan
छतरपुर: बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र शास्त्री ने नवरात्रि के दौरान गरबा और डांडिया आयोजनों पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि गरबा भारतीय संस्कृति और देवी उपासना का हिस्सा है, लेकिन आजकल इसमें बढ़ती फूहड़ता और अशोभनीय पोशाकें परंपरा का अपमान कर रही हैं।
धीरेंद्र शास्त्री का कहना है कि गरबा पंडालों में केवल वे युवक-युवतियां ही प्रवेश करें, जो पूरी और शालीन पोशाक में हों। उन्होंने साफ कहा कि सिर्फ रील या फोटो खिंचवाने के लिए, गलत दृष्टिकोण से या अशोभनीय कपड़ों में गरबा खेलने से माता की उपासना का पुण्य नहीं मिलता।

गरबा पंडालों में अनुशासन की मांग
धीरेंद्र शास्त्री ने जोर दिया कि गरबा और डांडिया के आयोजनों में भारतीय परंपरा और मां दुर्गा की महिमा का सम्मान होना चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यह आयोजन केवल मनोरंजन और दिखावे तक सीमित हो गए, तो सनातन संस्कृति की आत्मा को ठेस पहुंचेगी।
पहले भी दिया था विवादित सुझाव
इससे पहले भी शास्त्री ने अपील की थी कि गरबा पंडालों में गैर-हिंदुओं का प्रवेश रोका जाए और गेट पर प्रवेश करने वालों पर गौमूत्र का छिड़काव किया जाए। उनके इस बयान के बाद कई जगह पंडालों में बैनर लगाए गए थे।
“दूसरे धर्म के आयोजनों में नहीं जाते तो वे भी हमारे त्योहारों में न आएं”
उन्होंने कहा, “जब हम दूसरे मजहब के आयोजनों में शामिल नहीं होते, तो उन्हें भी हमारे धार्मिक उत्सवों में नहीं आना चाहिए।” शास्त्री का मानना है कि हिंदुओं को सबसे बड़ा खतरा बाहरी लोगों से नहीं, बल्कि दोगले हिंदुओं से है, जो स्वयं अपने धर्म और परंपराओं का मजाक उड़ाते हैं।
सनातन धर्मावलंबियों की विडंबना
धीरेंद्र शास्त्री ने अफसोस जताया कि नवरात्रि में नौ दिन तक “दुर्गा-दुर्गा” करने वाले ही दशहरे के बाद मांस और शराब का सेवन करते हैं। उनके अनुसार, यही सनातन धर्म की सबसे बड़ी विडंबना है और इसी वजह से धर्म की पवित्रता प्रभावित होती है।
धीरेंद्र शास्त्री का यह बयान सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है। समर्थक इसे संस्कृति की रक्षा के लिए सही ठहरा रहे हैं, तो विरोधी इसे समाज में भेदभाव फैलाने वाला मान रहे हैं।