राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्षों की यात्रा वास्तव में राष्ट्र जागरण की ध्येय यात्रा है। वर्ष 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर के मोहिते बाड़ा में रोपा गया राष्ट्र साधना का छोटा सा बीज आज एक विशाल वटवृक्ष बन चुका है। राष्ट्र प्रथम के एकनिष्ठ़ भाव के साथ किए जा रहे सतत और अनथक प्रयासों से संघ की पहचान आज विश्व के सबसे बड़े संगठन के रूप में बनी है। राष्ट्र, संस्कृति, धर्म एवं समाज के हित में सर्वस्व अर्पण कर देने वाले स्वयंसेवक भारत के पुनरुत्थान की साधना में निरंतर लगे हुए हैं। संघ शताब्दी वर्ष चरैवेति-चरैवेति के मंत्र के साथ बढ़ रहे वैचारिक अधिष्ठान का एक सोपान है।
संघ के आद्य सरसंघचालक परम पूजनीय डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उद्देश्य भारत को स्वाधीन बनाने के साथ ही स्व-बोध की चेतना से युक्त एक संगठित समाज का निर्माण करना था। माँ भारती को परम वैभव पर आसीन करने की 100 वर्षों की यह यात्रा सरल नहीं रही। अनेक कठिनाइयों, विरोधों और बाधाओं को ही मार्ग बनाते हुए संघ ने भारत माता की सेवा में व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का कार्य सतत जारी रखा है।
स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्रता के पश्चात संघ ने समाज को देश की सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ने का कार्य किया। स्वतंत्रता के पश्चात् भी जब देश में औपनिवेशिक मानसिकता से प्रेरित और गुलाम पीढ़ी तैयार करने वाली मैकाले शिक्षा पद्धति जारी रखी गई तब संघ प्रेरणा से 1952 में ‘विद्या भारती’ की स्थापना की गई, जो शिक्षा एवं संस्कार देने वाला आज विश्व का सबसे बड़ा अशासकीय शैक्षणिक संगठन है। युवाओं को राष्ट्रीय विचारों से जोड़ने के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, श्रमिकों के हित में कार्य करने भारतीय मजदूर संघ, किसानों के लिए भारतीय किसान संघ, सेवा कार्यों के लिए सेवा भारती और संस्कार भारती आदि अनेक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से स्वयंसेवकों द्वारा स्थापित किए गए जो आज भी समाज में सक्रियता से कार्य कर रहे हैं। 1936 में स्थापित राष्ट्र सेविका समिति के साथ मिलकर संगठन ने महिलाओं की भूमिका को भी समान महत्व दिया है। आज विचार परिवार के प्रत्येक संगठन में महिला नेतृत्व की सशक्त उपस्थिति इसी दृष्टिकोण का परिणाम है।
स्वतंत्रता के पश्चात् जब भारतीय राजनीति अपने मूल और दिशा से भटकने लगी, देश की संप्रभुता के लिए ही संकट उत्पन्न हो गया, तब पं. दीनदयाल उपाध्याय एवं डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की। भारतीय जनसंघ आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी के रूप में विकसित हुआ। भारतीय जनता पार्टी वर्तमान में विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन है। इसे एक ऐसे संगठन के रूप में भी समाज का सम्मान प्राप्त होता है, जिसने अपने गठन के समय से चले आ रहे लगभग सभी प्रमुख संकल्पों को पूर्ण करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 की समाप्ति, अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण और भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाना इसी विचारधारा के ऐतिहासिक कार्य हैं।
संघ की सौ वर्ष की यात्रा कठिन चुनौतियों से भरी रही है। संघ अपने आरंभिक काल से ही अपनों के ही विरोध, आक्रमण, उपहास और अपमान सहकर भी इस अनवत यात्रा में आगे बढ़ा है। महात्मा गांधी की हत्या के मिथ्या आरोप, दो बार लगाए गए प्रतिबंध, आपातकाल की असहनीय यातनाएं और तमाम विरोधों के पश्चात भी संघ अपने संकल्पों पर दृढ़ रहा। इस साधना की यज्ञ वेदी में असंख्य स्वयंसेवक समिधा बन कर होम भी हुए हैं। स्वयंसेवकों की तपस्या और प्रचारकों के समर्पण ने संगठन को उस स्थिति तक पहुंचाया, जहां आज विश्वभर में लोग संघ को निकट से जानना और उससे जुड़ना चाहते हैं।
भारत के गौरवशाली स्वर्णिम इतिहास, संस्कृति, ज्ञान-परंपरा के संघरूपी वटवृक्ष की जड़ें गहरे तक समायी हुई हैं। संघ की शाखाएं संगठन का सबसे प्रबल पक्ष हैं। समाज में यह वाक्य प्रचलन में भी आ चुका है कि यदि संघ को समझना है तो शाखा में जाकर भलीभांति समझा जा सकता है। संघ की शाखाएं व्यक्ति निर्माण की नर्सरी भी कही जाती हैं। शाखा के माध्यम से स्वयंसेवकों का शारीरिक, मानसिक और चारित्रिक विकास होता है। खेल, गीत, अनुशासन और बौद्धिक कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें नेतृत्व, अनुशासन, बंधुत्व और कर्तव्यनिष्ठा की प्रेरणा मिलती है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं के माध्यमम से समाज का ऐसा संगठन तैयार हुआ है कि देश में कहीं भी प्राकृतिक आपदाओं, मानवीय संकटों और विदेशी आक्रमणों, हर परिस्थिति में संघ के स्वयंसेवक सबसे पहले सेवा कार्य के लिए उपस्थित रहते हैं। गुजरात के भुज में आए भूकंप से लेकर हाल की भीषण बाढ़ की घटनाओं और कोरोना महामारी के दौरान भोजन, परिवहन, दवाइयों से लेकर पीड़ितों के अंतिम संस्कार तक की सेवाओं में स्वयंसेवकों ने निःस्वार्थ भाव से अपना योगदान दिया। इससे पूर्व स्वतंत्रता संग्राम, गोवा मुक्ति आंदोलन, कश्मीर के भारत में विलय, चीन के आक्रमण जैसे ऐतिहासिक घटनाक्रमों में भी संघ की भूमिका उल्लेखनीय रही।
शताब्दी वर्ष संघ की संकल्प यात्रा को और अधिक गति देने का अवसर है। संगठन ‘पंच परिवर्तन’ के माध्यम से स्वदेशी, पर्यावरण संरक्षण, नागरिक कर्तव्यों, सामाजिक समरसता और परिवार प्रबोधन जैसे विषयों को जन-जन तक पहुंचाने में सक्रिय है। शताब्दी वर्ष के इस महत्वपूर्ण एवं स्मरणीय अवसर पर संघ किसी भव्य आयोजन की बजाय प्रत्येक भारतीय नागरिक तक पहुंचकर उसे अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों का बोध कराने का कार्य कर रहा है।
संघ का कार्यकर्ता होना जीवन को राष्ट्र सेवा की दिशा में लगा देने की प्रक्रिया है। शाखा का संस्कार व्यक्ति में मातृभूमि के प्रति ऐसा असीम प्रेम जगा देता है कि वह निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित हो जाता है। स्वयंसेवक के लिए “भारत माता की जय” ही उसका परम ध्येय बन जाता है।
2026 में जब संघ का शताब्दी वर्ष पूर्ण होगा, तब लक्ष्य यही रहेगा कि प्रत्येक भारतीय को राष्ट्र यज्ञ में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है, ताकि भारत फिर से विश्वगुरु के रूप में विश्व का मार्गदर्शन कर सके। इस लक्ष्य के साधक होने के नाते हम सब भी इस राष्ट्र यज्ञ में अपनी-अपनी कर्तव्यों रूपी समिधा आहूत करें।
‘पूर्ण विजय संकल्प हमारा
अनथक अविरत साधना।
निषिदिन प्रतिपल चलती आयी
राष्ट्रधर्म आराधना।’

आज जब भारत नए आत्मविश्वास और स्वाभिमान के साथ विश्व मंच पर स्वाभिमान और स्व-बोध के गौरव के साथ खड़ा है, तब संघ की यह सौ वर्षीय यात्रा केवल एक संगठन की कथा नहीं, बल्कि उस विचार की गौरव गाथा है जिसने राष्ट्र को आत्मबोध, संगठन और संस्कृति की शक्ति से जोड़ा। इस अवसर पर प्रत्येक स्वयंसेवक और नागरिक को यह संकल्प लेना चाहिए कि वह भारत माता को परम वैभव पर आसीन करने में अपना योगदान देंगे। सभी स्वयंसेवकों और देशवासियों को संघ शताब्दी वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।