BY: MOHIT JAIN
शारदीय नवरात्र 2025 अब अपने अंतिम चरण में है। इस वर्ष, 30 सितंबर को महाअष्टमी और 1 अक्टूबर को नवमी का पर्व मनाया जाएगा। ये दो दिन भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इसी दौरान कन्या पूजन, माता के दर्शनों और विभिन्न अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है।
शहरों के माता मंदिरों में इस अवसर पर श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगेंगी। माता का विशेष रूप से मनोहारी शृंगार किया जाएगा, जो भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव का केंद्र होगा।
अष्टमी और नवमी तिथि का समय

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार:
- अष्टमी तिथि: 29 सितंबर शाम 04:32 से 30 सितंबर शाम 06:06 तक
- नवमी तिथि: 30 सितंबर शाम 06:06 से 1 अक्टूबर शाम 07:01 तक
इस समय के दौरान, विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठानों का आयोजन किया जाएगा।
शारदीय नवरात्रि हिंदू धर्म का एक अत्यंत पावन पर्व है, जो माता दुर्गा की उपासना को समर्पित है। यह पर्व नौ दिनों तक चलता है और प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप की पूजा होती है। इस दौरान भक्तजन व्रत, अनुष्ठान, हवन और साधना के माध्यम से माता की कृपा प्राप्त करते हैं।
नवरात्रि के सभी दिन महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अष्टमी और नवमी का अपना विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है।
अष्टमी (दुर्गाष्टमी) का महत्व
नवरात्रि की अष्टमी तिथि को महाष्टमी या दुर्गाष्टमी कहा जाता है। यह दिन माता दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी को समर्पित होता है। अष्टमी के दिन व्रत, उपवास, दुर्गा सप्तशती पाठ, हवन और कन्या पूजन का विशेष महत्व है।
कन्या पूजन के दौरान 2 से 9 वर्ष की आयु की कन्याओं को देवी का रूप मानकर आमंत्रित किया जाता है। उनका पूजन कर स्वादिष्ट भोजन, उपहार और दक्षिणा दी जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इन कन्याओं में माता दुर्गा स्वयं विराजमान होती हैं। इस पूजन से विशेष पुण्य और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
नवमी (महनवमी) का महत्व
नवमी तिथि नवरात्रि का अंतिम और अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। नवमी को भी कन्या पूजन और हवन का विशेष विधान है। यह दिन साधनाओं की पूर्णता का प्रतीक माना जाता है।
नवमी का योग कभी-कभी राम नवमी से भी जुड़ जाता है, जिससे इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
कन्या पूजन: आयु अनुसार देवी शक्तियों का प्रतीक

नवरात्रि की अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन विशेष रूप से किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इन मासूम कन्याओं में देवी दुर्गा की शक्तियाँ निवास करती हैं। आयु अनुसार उनका महत्व इस प्रकार है:
- 2 वर्ष – कुमारिका
- 3 वर्ष – त्रिमूर्ति
- 4 वर्ष – कल्याणी
- 5 वर्ष – रोहिणी
- 6 वर्ष – कालिका
- 7 वर्ष – चंडिका
- 8 वर्ष – शाम्भवी
- 9 वर्ष – दुर्गा
इन कन्याओं का विधिवत पूजन, चरण वंदन, भोजन और वस्त्र-उपहार प्रदान करना माता दुर्गा को अत्यंत प्रिय होता है। इससे भक्तजन को विशेष रूप से संतान सुख, समृद्धि, सौभाग्य और शत्रु नाश का आशीर्वाद मिलता है।
दुर्गाष्टमी व्रत और पूजा (उदयातिथि अनुसार):
- तारीख: 30 सितंबर 2025, मंगलवार
- ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः 4:37 – 5:25 बजे
- अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:47 – 12:35 बजे
- कन्या पूजन शुभ मुहूर्त: प्रातः 10:40 – 12:10 बजे
शारदीय नवरात्रि के अष्टमी और नवमी दिन माता दुर्गा की पूजा का सर्वोच्च समय होते हैं। इस अवसर पर व्रत, हवन और कन्या पूजन से जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख की प्राप्ति होती है। 2025 में इन पवित्र तिथियों का पालन कर भक्त अपने जीवन में माता दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं।