BY: Yoganand Shrivastva
बेंगलुरु। कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु के कोडिगेहल्ली इलाके में एक दर्दनाक घटना सामने आई है, जहां घर के बाहर टहलने निकले 70 वर्षीय बुजुर्ग सीतप्पा पर आवारा कुत्तों के झुंड ने जानलेवा हमला कर दिया। गंभीर रूप से घायल बुजुर्ग को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया।
परिजनों ने बताया कि सीतप्पा आधी रात के समय नींद न आने के कारण टहलने के लिए निकले थे। उसी दौरान अचानक कम से कम आठ कुत्तों ने उन पर हमला कर दिया। हमले में उनके हाथ, पैर और चेहरे पर गंभीर घाव हो गए और शरीर के कई हिस्से बुरी तरह जख्मी हो गए। चीख-पुकार सुनकर परिवार के सदस्य दौड़कर बाहर आए और उन्हें लहूलुहान हालत में पाया। आनन-फानन में उन्हें नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
पुलिस जांच में जुटी
कोडिगेहल्ली थाने की पुलिस ने इस घटना को लेकर मामला दर्ज कर लिया है। फिलहाल ‘अप्राकृतिक मृत्यु’ (UDR) के तहत केस दर्ज करते हुए पुलिस घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच कर रही है। साथ ही स्थानीय लोगों से पूछताछ भी की जा रही है ताकि घटना के समय की वास्तविक स्थिति सामने आ सके।
यह पहली घटना नहीं
बेंगलुरु या देश के अन्य हिस्सों में यह कोई पहली घटना नहीं है। कुछ ही सप्ताह पहले कर्नाटक के ओल्ड हुबली के शिमला नगर में एक तीन साल की मासूम बच्ची पर भी आवारा कुत्तों ने हमला कर दिया था। बच्ची जब एक दुकान की ओर जा रही थी, तभी कुत्तों ने उसे घेर लिया। सीसीटीवी फुटेज में देखा गया कि कुत्तों का झुंड उसे खींचते और जगह-जगह काटते नजर आया। उस हमले में बच्ची बुरी तरह घायल हुई थी और उसे गंभीर हालत में केआईएमएस अस्पताल में भर्ती कराया गया।
राष्ट्रीय चिंता बनता संकट
यह समस्या केवल कर्नाटक तक सीमित नहीं है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी इसी तरह का मामला सामने आया था, जहां पूठ कलां इलाके में एक छह साल की बच्ची की मौत रेबीज के कारण हो गई। बच्ची को आवारा कुत्ते ने काट लिया था। इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्वत: संज्ञान लिया और दिल्ली नगर निगम को कार्रवाई के निर्देश दिए।
कोर्ट ने यह भी कहा था कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में कुत्तों के काटने की घटनाएं दर्ज होती हैं, जो बच्चों और बुजुर्गों के लिए गंभीर खतरा हैं।
सवालों के घेरे में स्थानीय प्रशासन
इन घटनाओं के बाद नगर निगमों और स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं। क्या सड़कों पर घूमते इन आवारा कुत्तों पर नियंत्रण के लिए पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं? क्या पहले से मिली शिकायतों और चेतावनियों को अनदेखा किया जा रहा है?
जनता की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एजेंसियों को अब ठोस और दीर्घकालिक समाधान पर काम करना होगा, ताकि ऐसी दर्दनाक घटनाएं दोहराई न जाएं।