उत्तराखंड के पवित्र शहर हरिद्वार में एक बड़े भूमि घोटाले ने राजनीतिक हलकों में भूचाल ला दिया है। जमीन जिसकी बाजार कीमत लाखों में थी, उसे सरकारी अधिकारियों ने 54 करोड़ रुपये में खरीद डाला। अब जब जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी गई है, तो सवाल ये उठ रहे हैं – क्या केवल अधिकारी ही दोषी हैं या पर्दे के पीछे कोई और भी है?
📌 मुख्य बिंदु (Key Highlights):
- 33 बीघा जमीन को लाखों की जगह करोड़ों में खरीदा गया
- जमीन की सरकारी खरीद 2024 में आचार संहिता के दौरान हुई
- बीजेपी सांसद त्रिवेंद्र रावत और कांग्रेस दोनों ने उठाए सवाल
- जांच पूरी, रिपोर्ट शासन को सौंपी गई लेकिन सार्वजनिक नहीं की गई
- विपक्ष सरकार से कार्रवाई और पारदर्शिता की मांग कर रहा है
🏛️ क्या बोले पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत?
हरिद्वार सांसद और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस घोटाले पर बड़ा बयान देते हुए कहा:
“सिर्फ अधिकारियों पर कार्रवाई से काम नहीं चलेगा, पर्दे के पीछे छिपे लोगों को भी सामने लाना होगा।”
उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई कि इतने सीनियर अधिकारी इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकते हैं। उनका कहना है कि सरकार को सख्त एक्शन लेना चाहिए ताकि आगे कोई ऐसी हिम्मत न कर सके।
🧾 हरिद्वार जमीन घोटाला: पूरा मामला क्या है?
- घटना वर्ष: 2024 (चुनाव आचार संहिता के दौरान)
- स्थान: हरिद्वार नगर निगम क्षेत्र
- जमीन की प्रकृति: कृषि भूमि, जिसे खाता 143 में बदला गया
- कुल भूमि: 33 बीघा
- मूल्यांकन: कुछ लाख रुपये प्रति बीघा
- खरीदी गई राशि: 58 करोड़ रुपये
इस जमीन को बिना उचित मूल्यांकन के उच्च दाम पर खरीदा गया, जिससे सरकारी धन की भारी बर्बादी हुई।
🕵️♂️ जांच में क्या निकला सामने?
- मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मामले की जांच के आदेश दिए
- जांच अधिकारी IAS रणवीर सिंह चौहान ने रिपोर्ट शासन को सौंपी
- कई अधिकारियों के खिलाफ लापरवाही और मिलीभगत के प्रमाण मिले
- रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई, जिससे सरकार की मंशा पर सवाल उठे
🗣️ कांग्रेस का सरकार पर हमला
कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा:
“जब जांच पूरी हो गई है तो सरकार रिपोर्ट क्यों नहीं सार्वजनिक कर रही? ये दर्शाता है कि अफसरों और नेताओं की मिलीभगत से घोटाले हो रहे हैं।”
कांग्रेस ने यह भी कहा कि अगर कोई कार्रवाई नहीं होती तो इस जांच का कोई औचित्य नहीं बचता।
⚠️ पहले भी सामने आ चुके हैं ज़मीन से जुड़े मामले
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह भी बताया कि हरिद्वार में ज़मीनों को लेकर पहले भी घपले हो चुके हैं:
- ऋषिकुल क्षेत्र की भूमि
- मेला क्षेत्र की जमीन
इन मामलों में भी सरकारी अधिकारियों पर बंदरबांट के आरोप लगे हैं।
📉 इस घोटाले का असर राज्य की छवि पर
हरिद्वार सिर्फ धार्मिक महत्व का नहीं बल्कि पर्यटन और निवेश के लिहाज़ से भी अहम स्थान है। इस तरह के घोटाले राज्य की पारदर्शिता और प्रशासनिक ईमानदारी पर सवाल उठाते हैं।
🧩 यूज़र्स के लिए प्रासंगिक सवाल और जवाब
❓ हरिद्वार जमीन घोटाले में अब तक क्या कार्रवाई हुई है?
👉 जांच पूरी हो चुकी है, रिपोर्ट शासन को सौंप दी गई है लेकिन अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है और कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई है।
❓ क्या इसमें सिर्फ अधिकारी दोषी हैं?
👉 पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत और कांग्रेस दोनों का मानना है कि अधिकारियों के पीछे कुछ प्रभावशाली लोग हो सकते हैं जिनकी भूमिका भी उजागर होनी चाहिए।
❓ इस जमीन की असली कीमत क्या थी?
👉 स्थानीय रिपोर्ट्स के अनुसार, इस जमीन की कीमत कुछ लाख प्रति बीघा थी लेकिन इसे करोड़ों में खरीदा गया।
📢 निष्कर्ष: क्या होगी अगली कार्रवाई?
हरिद्वार भूमि घोटाला एक ऐसी घटना है जो सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि राजनीतिक सांठगांठ की ओर भी इशारा करती है। जब तक सरकार रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करती और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं करती, तब तक जनता का विश्वास डगमगाता रहेगा।





