BY: Yoganand Shrivastava
नई दिल्ली: भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच गृह मंत्रालय ने देशभर में युद्ध सायरन बजाने और इससे जुड़ी मॉक ड्रिल्स आयोजित करने का निर्णय लिया है। इसका उद्देश्य नागरिकों को न केवल युद्ध की चेतावनी देने वाले सायरन की पहचान कराना है, बल्कि आपदा की स्थिति में सही प्रतिक्रिया देना भी सिखाना है।
क्या होता है युद्ध सायरन बजाने का मकसद?
युद्ध सायरन का उपयोग कई महत्वपूर्ण स्थितियों में किया जाता है, जैसे:
- संभावित हवाई हमलों की चेतावनी देने के लिए।
- सिविल डिफेंस की तैयारियों की जांच करने हेतु।
- ब्लैकआउट ड्रिल्स के दौरान अभ्यास करने के लिए।
- रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए।
- कंट्रोल रूम और इमरजेंसी टीम्स की तैयारी सुनिश्चित करने के लिए।
इन सबका मकसद यही है कि संकट की स्थिति में आम नागरिकों और प्रशासन दोनों की प्रतिक्रिया बेहतर हो।
युद्ध सायरन की पहचान कैसे करें?
- युद्ध का सायरन सामान्य सायरन से कहीं अधिक तेज और तीव्र होता है।
- इसकी आवाज़ लगभग 120 से 140 डेसिबल तक हो सकती है।
- यह 2 से 5 किलोमीटर तक की दूरी पर भी साफ़-साफ़ सुनाई देता है।
- इसकी ध्वनि एंबुलेंस या पुलिस सायरन से अलग होती है और इसमें एक लंबा, ऊंचा और कंपकंपाने वाला साउंड होता है।
- इसका मकसद होता है संभावित एयर स्ट्राइक या युद्ध की चेतावनी समय रहते देना।
जब युद्ध सायरन बजे तो क्या करें?
- घबराएं नहीं – सबसे पहले खुद को शांत रखें।
- तुरंत खुले स्थानों से हटकर सुरक्षित जगह पर जाएं।
- कोशिश करें कि 5 से 10 मिनट में किसी सुरक्षित शरणस्थल या बंकर जैसी जगह पर पहुंच जाएं।
- अपने मोबाइल, रेडियो या टीवी पर सरकारी अलर्ट पर ध्यान दें।
- बच्चों, बुजुर्गों और ज़रूरतमंदों की मदद करें।
- जब तक अगला निर्देश न मिले, बाहर न निकलें।
देशभर में की जा रही मॉक ड्रिल्स
गृह मंत्रालय के निर्देश पर मुंबई, श्रीनगर और गुजरात जैसे शहरों में मॉक ड्रिल्स की जा रही हैं। मुंबई के दादर के एंटनी डिसिल्वा हाई स्कूल में सायरन बजाकर लोगों को प्रशिक्षित किया गया। वहीं, डल झील (श्रीनगर) में भी तैयारी की जा रही है। आने वाले दिनों में और भी राज्यों में 7 मई को मॉक ड्रिल के जरिए लोगों को प्रशिक्षित किया जाएगा।
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