रिपोर्टर – दिनेश गुप्ता
सरगुजा, छत्तीसगढ़: भारत विविधताओं से भरा देश है, जहां हर क्षेत्र की अपनी अलग परंपराएं और रीति-रिवाज हैं। छत्तीसगढ़ का सरगुजा जिला, जो आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है, अपनी सांस्कृतिक विरासत और अनोखी परंपराओं के लिए जाना जाता है। यहां की मांझी जनजाति में शादियों के दौरान एक अनोखी रस्म निभाई जाती है, जिसमें लड़की के भाई कीचड़ में लोटकर बारातियों का स्वागत करते हैं।
कैसी होती है यह अनोखी परंपरा?
सरगुजा के मैनपाट क्षेत्र में रहने वाले मांझी समाज के लोग बारातियों का स्वागत पारंपरिक तरीके से नहीं, बल्कि कीचड़ में लोटकर करते हैं। शादी के दौरान लड़की के भाई बारातियों को कीचड़ में नहाकर नाचते-गाते हुए घर लेकर आते हैं। इसके बाद दूल्हे को हल्दी और तेल लगाकर विवाह मंडप में प्रवेश कराया जाता है।
क्यों निभाई जाती है यह परंपरा?
मांझी समाज के लोग अपने गोत्र का नाम पशु-पक्षियों के नाम पर रखते हैं। जैसे – भैंस, मछली, नाग आदि। इस परंपरा के अनुसार, लड़की का परिवार जिस गोत्र से आता है, उसी के अनुसार बारातियों का स्वागत करता है।
अगर परिवार नाग गोत्र से है, तो वे नाग की तरह प्रतिक्रिया करते हैं।
भैंस गोत्र वाले बारात के स्वागत के लिए कीचड़ में लोटकर भैंस का रूप धारण करते हैं।
कैसे की जाती है इसकी तैयारी?
लड़की वाले शादी से पहले ही एक ट्राली मिट्टी मंगाकर उसे पानी में मिलाकर कीचड़ तैयार करते हैं। जैसे ही बारात गांव के बाहर पहुंचती है, लड़की के सभी भाई इस कीचड़ में लोटकर नृत्य करते हैं। वे गाजे-बाजे के साथ बारातियों के पास जाते हैं और दूल्हे को हल्दी और तेल लगाकर विवाह मंडप की ओर ले जाते हैं।
महाभारत काल से चली आ रही है यह परंपरा
मांझी समाज के बुजुर्गों का मानना है कि यह अनोखी परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है। उनका विश्वास है कि ऐसा करने से नवविवाहित जोड़े का वैवाहिक जीवन सुखमय और समृद्ध होता है।
संस्कृति और परंपराओं को जीवंत रखता है मांझी समाज
मांझी जनजाति के लोग अपने तीज-त्योहारों और उत्सवों में अपने गोत्र से जुड़े जानवरों की नकल करते हैं। इस परंपरा का उद्देश्य अपनी संस्कृति को जीवंत रखना और अपने गोत्र की परंपराओं को आगे बढ़ाना है।