23 फरवरी 2025 को दुबई इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाला चैंपियंस ट्रॉफी मुकाबला एक बार फिर इस ऐतिहासिक राइवलरी को सुर्खियों में लाएगा। यह सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि दो देशों के जुनून, भावनाओं और गर्व का प्रतीक है। जहाँ रोहित शर्मा और बाबर आज़म जैसे खिलाड़ी मैदान पर अपनी कला दिखाएँगे, वहीं इस राइवलरी ने सालों से कवियों और शायरों के दिलों को भी छुआ है। लेकिन मिर्ज़ा ग़ालिब, फैज़ अहमद फैज़ या गुलज़ार जैसे मशहूर नामों से परे, कुछ अनजाने रचनाकारों ने भी इस जंग को अपनी कविताओं और शायरी में उतारा है। ये वो आवाज़ें हैं, जो सुर्खियों से दूर रहीं, मगर इनकी रचनाओं में क्रिकेट का रोमांच और भारत-पाक राइवलरी का दर्द बखूबी झलकता है। आइए, इन अनसुने कवियों और शायरों की दुनिया में कदम रखें और उनकी रचनाओं को ताज़ा करें।
क्रिकेट और कविता का अनोखा रिश्ता
क्रिकेट सिर्फ बल्ले और गेंद का खेल नहीं, बल्कि एक ऐसा मंच है, जो भावनाओं को उड़ान देता है। भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले मुकाबले तो जैसे एक काव्यात्मक जंग हैं—हर चौका, हर छक्का, हर विकेट एक नया छंद बन जाता है। मशहूर शायरों ने इस खेल को अपने शब्दों में पिरोया है, लेकिन कुछ कम चर्चित कवि और शायर भी हैं, जिन्होंने इस राइवलरी को अपनी नज़र से देखा और उसे कागज़ पर उतारा। ये रचनाएँ न तो बड़े मंचों तक पहुँचीं और न ही इन्हें मुख्यधारा की पहचान मिली, मगर इनमें वही जज़्बा है, जो इस खेल को खास बनाता है।
रशीद अहमद: गेंद का गीत
लाहौर के एक स्कूल टीचर रशीद अहमद कभी बड़े शायर नहीं बने, लेकिन उनकी कलम में क्रिकेट का जादू भरपूर था। 1996 वर्ल्ड कप क्वार्टर फाइनल के बाद, जब भारत ने पाकिस्तान को हराया, रशीद ने एक शेर लिखा:
“गेंद ने आज फिर सीमा लाँघ दी,
दिलों में दर्द की लकीर खींच दी।”
यह शेर उस हार के दर्द को बयाँ करता है, जो पाकिस्तानी फैंस ने महसूस किया था। रशीद की शायरी में क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं, बल्कि दो देशों के बीच की भावनात्मक खाई का प्रतीक था। उनकी एक और रचना, जो उन्होंने 2003 वर्ल्ड कप से पहले लिखी, कुछ यूँ थी:
“बल्ला उठे या गेंद चमके,
दोनों तरफ दिल ही धड़के।”
रशीद की ये पंक्तियाँ उस रोमांच को पकड़ती हैं, जो भारत-पाक मैच से पहले हर फैन के दिल में बसता है। उनकी रचनाएँ स्थानीय अखबारों तक सीमित रहीं, और आज उनका नाम गुमनामी में खो गया है।
सुनीता मेहरा: नीले रंग का सपना
दिल्ली की एक गृहिणी और कवयित्री सुनीता मेहरा ने क्रिकेट को अपने काव्य का हिस्सा बनाया। 2011 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में भारत की जीत के बाद, सुनीता ने एक कविता लिखी, जो उनके परिवार के बीच मशहूर हुई, मगर कभी प्रकाशित नहीं हुई। उसका एक अंश:
“नीले रंग का सपना सजा,
हर गली में जीत का नशा।
पाक के गेंदबाज़ खामोश हुए,
हमारे शेरों ने मैदान लूट लिया।”
सुनीता की यह कविता उस खुशी को बयाँ करती है, जो भारत की जीत ने हर घर में भरी थी। उनकी रचनाओं में सादगी थी, जो आम फैन की भावनाओं को छूती थी। सुनीता ने अपने काव्य में अक्सर भारत-पाक राइवलरी को एक दोस्ताना जंग की तरह देखा, जैसा कि उनकी एक और पंक्ति में दिखता है:
“दुश्मनी नहीं, ये खेल है प्यारा,
दोस्तों सा है ये झगड़ा हमारा।”
उनकी कविताएँ सिर्फ उनके निजी डायरी तक सीमित रहीं, और आज उन्हें बहुत कम लोग जानते हैं।
हामिद खान: हार का मातम
कराची के एक दुकानदार हामिद खान शायरी के शौकीन थे। 1992 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान की जीत के बाद उन्होंने कई नज़्में लिखीं, लेकिन 2007 टी20 वर्ल्ड कप फाइनल में भारत की जीत ने उन्हें एक अलग रंग में रंग दिया। उनकी एक नज़्म का हिस्सा:
“हर गेंद पर थी उम्मीद जगी,
मगर किस्मत ने फिर आँख फेरी।
बल्ले की चुप्पी, दिल का मातम,
जीत का सपना फिर टूटा यहाँ।”
हामिद की यह नज़्म उस हार के गम को बयाँ करती है, जो मिस्बाह-उल-हक के आउट होने के बाद हर पाकिस्तानी फैन ने महसूस किया था। उनकी शायरी में क्रिकेट एक जंग थी, जिसमें हार और जीत सिर्फ मैदान तक नहीं, बल्कि दिलों तक पहुँचती थी। हामिद की रचनाएँ उनके दोस्तों और स्थानीय मुशायरों तक सीमित रहीं, और उनका नाम बड़े शायरों की फेहरिस्त में कभी नहीं आया।
अनिल जोशी: सीमा पार का संदेश
जयपुर के एक रिटायर्ड पोस्टमैन अनिल जोशी ने अपनी कविताओं में भारत-पाक राइवलरी को एक अलग नज़रिए से देखा। 2004 में जब भारत ने पाकिस्तान में टेस्ट सीरीज़ जीती, तो अनिल ने एक कविता लिखी:
“सीमा पार गए थे हम,
खेल में बाँधा प्यार का धागा।
हर चौके में थी दोस्ती,
हर विकेट में थी अपनी आग।”
अनिल की यह कविता उस दोस्ती और टक्कर के मिश्रण को दर्शाती है, जो इस राइवलरी की खासियत है। उनकी रचनाएँ उनके गाँव के छोटे-छोटे जलसों में पढ़ी गईं, लेकिन कभी बड़े मंच तक नहीं पहुँचीं। अनिल का मानना था कि क्रिकेट सिर्फ जंग नहीं, बल्कि दो देशों को जोड़ने का ज़रिया भी है।
इन रचनाओं की अनदेखी क्यों?
ये कवि और शायर सुर्खियों से दूर क्यों रहे? इसकी कई वजहें हैं। पहली, ये लोग पेशेवर लेखक नहीं थे—कोई शिक्षक था, कोई गृहिणी, कोई दुकानदार। इनके पास न तो प्रकाशन का संसाधन था और न ही बड़ा मंच। दूसरी, भारत-पाक राइवलरी की चर्चा में मशहूर खिलाड़ियों और बड़े क्षणों ने इन छोटी रचनाओं को पीछे छोड़ दिया। तीसरी, सोशल मीडिया के इस दौर से पहले इनकी रचनाएँ सिर्फ निजी डायरियों या स्थानीय सभाओं तक सीमित रहीं। फिर भी, इनकी कविताओं और शायरी में वही जज़्बा है, जो इस राइवलरी को खास बनाता है।
क्रिकेट की कविता का मोल
ये अनसुने रचनाकार भले ही मशहूर न हुए हों, लेकिन इनकी रचनाएँ भारत-पाक क्रिकेट की आत्मा को बयाँ करती हैं। रशीद की शायरी में हार का दर्द है, सुनीता की कविता में जीत की खुशी, हामिद की नज़्म में उम्मीद का टूटना, और अनिल की पंक्तियों में दोस्ती की पुकार। ये रचनाएँ बताती हैं कि क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं, बल्कि एक भावनात्मक यात्रा है, जो हर दिल तक पहुँचती है।
जब 23 फरवरी को भारत और पाकिस्तान मैदान पर उतरेंगे, तो स्टेडियम में नारे गूँजेंगे और स्क्रीन पर रोमांच छाएगा। लेकिन एक पल के लिए इन भूले हुए कवियों और शायरों को भी याद कर लें। रशीद अहमद, सुनीता मेहरा, हामिद खान, और अनिल जोशी जैसे रचनाकारों ने इस राइवलरी को अपने शब्दों में पिरोया, बिना किसी शोहरत की चाह के। उनकी कविताएँ और शायरी आज भी उन गलियों, उन घरों में गूँजती हैं, जहाँ क्रिकेट एक खेल से कहीं ज़्यादा है। ये हैं वो अनसुने गीत, जो भारत-पाक राइवलरी की सच्ची कहानी कहते हैं—सुर्खियों से दूर, मगर दिलों के करीब। तो अगली बार जब आप इस जंग को देखें, तो इन शब्दों को भी महसूस करें, जो कभी सुने नहीं गए।