नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मसौदा दिशा-निर्देशों के विरोध में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और डीएमके के सांसदों सहित कई विपक्षी नेता दिल्ली में हो रहे प्रदर्शन में शामिल हुए। यह विरोध प्रदर्शन डीएमके की छात्र शाखा द्वारा जंतर-मंतर पर सुबह 10 बजे आयोजित किया गया, जिसमें इंडिया ब्लॉक के अन्य दलों के नेताओं ने भी भाग लिया।
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राहुल गांधी ने ये कहा.. “मैं कुछ समय से कह रहा हूं कि आरएसएस का उद्देश्य इस देश में अन्य सभी इतिहास, अन्य सभी संस्कृतियों, अन्य सभी परंपराओं का उन्मूलन है। यही उनका शुरुआती बिंदु है, और यही वे हासिल करना चाहते हैं। उन्होंने संविधान पर हमला किया क्योंकि वे इस देश पर एक विचार, जो कि उनका विचार, एक इतिहास, एक परंपरा और एक भाषा है, थोपना चाहते थे। विभिन्न राज्यों की शिक्षा प्रणाली के साथ वे जो प्रयास कर रहे हैं, वह उनके एजेंडे को आगे बढ़ाने का एक और प्रयास है… मैं चाहता हूं कि इस तरह के कई विरोध प्रदर्शन हों क्योंकि आरएसएस को यह समझाने की जरूरत है कि वे हमारे राज्यों पर हमला नहीं कर सकते, वे हमारी संस्कृतियों, हमारी परंपराओं और हमारे इतिहास पर हमला नहीं कर सकते।
#WATCH | Delhi | While addressing the protest by the DMK students wing against the University Grants Commission (UGC) draft rules, Lok Sabha LoP & Congress MP Rahul Gandhi says, "I have been saying now for some time that the aim of the RSS is the eradication of all other… pic.twitter.com/BuMKrGbJLU
— ANI (@ANI) February 6, 2025
उधर इस मसले पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा …”मैं नई शिक्षा नीति के खिलाफ डीएमके और उसकी छात्र इकाई के विरोध का समर्थन करता हूं। राज्यों की शक्तियां नहीं छीनी जानी चाहिए…”
अखिलेश यादव का यह भी कहना है, ”अगर भारतीय नागरिकों को हथकड़ी लगाकर भारत भेजा जा रहा है तो विश्वगुरु बनने का क्या रास्ता है.”
#WATCH | Delhi | Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav says, "I support DMK and its student wing's protest against the New Education Policy. Powers of the states shouldn't be taken away…"
— ANI (@ANI) February 6, 2025
Akhilesh Yadav also says, "What is the way of becoming Vishwaguru if Indian citizens are… pic.twitter.com/FSdhUb4wIe
क्या है पूरे विवाद की वजह समझिए
नए मसौदा नियमों में निजी क्षेत्र के साथ-साथ गैर-शैक्षणिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को भी शैक्षणिक पदों के लिए पात्र बनाने का प्रस्ताव है। इससे राज्यों को आशंका है कि केंद्र की भाजपा सरकार अपनी विचारधारा के समर्थकों को ऐसे पदों पर नियुक्त कर सकती है, जिनके पास आवश्यक शैक्षणिक और प्रशासनिक अनुभव नहीं होगा। इससे पहले, 10 जनवरी को डीएमके की छात्र शाखा ने चेन्नई के वल्लुवर कोट्टम में इन मसौदा नियमों के खिलाफ प्रदर्शन किया था, जिसमें इन नियमों को संघीय ढांचे के खिलाफ बताया गया।
यूजीसी के नए मसौदा दिशा-निर्देशों के अनुसार, अभ्यर्थी यूजीसी-नेट पास करके अपनी पसंद के विषय में उच्च शिक्षण संस्थानों में फैकल्टी पदों के लिए पात्र हो सकते हैं, भले ही उनकी स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री अलग-अलग विषयों में हो। इसके अलावा, कुलपतियों की चयन प्रक्रिया में भी बदलाव का प्रस्ताव है, जिसमें शैक्षणिक जगत, अनुसंधान संस्थानों, सार्वजनिक नीति, लोक प्रशासन और उद्योग से जुड़े पेशेवरों को शामिल करने के लिए पात्रता मानदंडों का विस्तार किया गया है।
यूजीसी के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार ने 10 जनवरी को इन संशोधित नियमों का बचाव करते हुए कहा कि नई प्रक्रिया “अस्पष्टता को खत्म करती है और पारदर्शिता सुनिश्चित करती है।” उन्होंने बताया कि चयन समिति में तीन सदस्य होंगे—एक कुलाधिपति द्वारा नामित, एक यूजीसी अध्यक्ष द्वारा और एक विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद या सीनेट द्वारा नामित। शिक्षकों और राज्य सरकारों की आलोचना पर प्रतिक्रिया देते हुए कुमार ने दोहराया, “यह संरचना पारदर्शिता बढ़ाती है और चयन प्रक्रिया को अधिक स्पष्ट बनाती है।”
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