भारत में एलोपैथी का आगमन: आयुर्वेद के देश में आधुनिक चिकित्सा की कहानी

- Advertisement -
Swadesh NewsAd image

Concept & Writer: Yoganand Shrivastva

भारत — वह भूमि जहाँ हजारों वर्षों पहले ही “चरक”, “सुश्रुत” और “धन्वंतरि” जैसे महर्षियों ने चिकित्सा विज्ञान की अद्भुत परंपरा स्थापित की थी। आयुर्वेद, जिसका अर्थ ही है “जीवन का ज्ञान”, केवल रोगों के उपचार की विधा नहीं थी, बल्कि यह एक समग्र जीवन-दर्शन था। इसमें शरीर, मन और आत्मा — तीनों के संतुलन को स्वास्थ्य का आधार माना गया। यह पद्धति न केवल औषधीय उपचार सिखाती थी, बल्कि भोजन, व्यवहार और प्रकृति के साथ सामंजस्य की शिक्षा भी देती थी। लेकिन समय के साथ भारत के इस गौरवशाली चिकित्सा ज्ञान को विदेशी प्रभावों, सामाजिक परिवर्तनों और औपनिवेशिक नीतियों ने हाशिए पर धकेल दिया। इसी दौर में भारत में “एलोपैथी” यानी आधुनिक पश्चिमी चिकित्सा प्रणाली का प्रवेश हुआ — एक ऐसी चिकित्सा, जो अनुभव से नहीं, बल्कि प्रयोग और विज्ञान के ठोस आधार पर विकसित हुई थी। यह कहानी है उस परिवर्तन की, जिसने भारत के स्वास्थ्य तंत्र को हमेशा के लिए बदल दिया।

एलोपैथी का जन्म यूरोप में हुआ। इसका जनक माना जाता है हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) को, जो 460 ईसा पूर्व के यूनानी चिकित्सक थे। उन्होंने पहली बार यह विचार दिया कि रोग दैवी दंड नहीं, बल्कि प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न होते हैं। यही विचार बाद में आधुनिक चिकित्सा की नींव बना। परंतु “एलोपैथी” शब्द स्वयं बहुत बाद में — 19वीं सदी में — डॉ. सैमुअल हैनीमैन (जो होम्योपैथी के जनक भी थे) ने प्रयोग किया। उन्होंने उस समय की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को “एलोपैथी” कहा, क्योंकि यह रोग के “विपरीत प्रभाव” से उपचार करती थी — यानी अगर किसी रोगी को बुखार है, तो उसे ताप कम करने वाली दवा दी जाएगी; अगर दर्द है, तो दर्दनिवारक दी जाएगी। इस प्रकार “एलोपैथी” का अर्थ बना — “विपरीत से उपचार।”

मध्य युग और पुनर्जागरण के दौरान यूरोप में विज्ञान का पुनर्जन्म हुआ। वेसालियस, पारासेल्सस, हार्वे जैसे वैज्ञानिकों ने शरीर की रचना, रक्त संचार, और औषध विज्ञान को समझकर चिकित्सा को धर्म और जादू से अलग किया। 18वीं और 19वीं सदी तक पहुँचते-पहुँचते चिकित्सा विज्ञान प्रयोगशालाओं, सूक्ष्मदर्शियों और वैज्ञानिक सिद्धांतों का विज्ञान बन गया। रोगाणुओं की खोज लुई पाश्चर और रॉबर्ट कॉख ने की, एंटीसेप्टिक का सिद्धांत लिस्टर ने दिया, और शल्य चिकित्सा का विकास हुआ। इसी वैज्ञानिक युग की चिकित्सा पद्धति को ही आगे चलकर “मॉडर्न मेडिसिन” या “एलोपैथी” कहा गया।

अब प्रश्न यह उठता है — जब भारत में पहले से आयुर्वेद जैसी गहन चिकित्सा परंपरा मौजूद थी, तो एलोपैथी ने यहाँ जगह कैसे बनाई? इसका उत्तर भारत के औपनिवेशिक इतिहास में छिपा है। 1600 के दशक में जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आई, तब यहाँ चिकित्सा पूरी तरह आयुर्वेद और यूनानी पद्धति पर आधारित थी। भारतीय वैद्य जड़ी-बूटियों, पंचकर्म और रसशास्त्र के माध्यम से रोगों का उपचार करते थे। परंतु अंग्रेज़ चिकित्सक अपने साथ पश्चिमी चिकित्सा की प्रयोगात्मक परंपरा लेकर आए थे। पहले तो वे केवल अपने सैनिकों और अधिकारियों का इलाज करते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने भारतीयों के इलाज में भी अपनी प्रणाली लागू करनी शुरू कर दी।

18वीं सदी में कोलकाता, मद्रास और बंबई (अब मुंबई) में ब्रिटिश शासन के दौरान पहले अस्पताल और मेडिकल कॉलेज स्थापित किए गए। 1835 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई — जो भारत में एलोपैथिक शिक्षा का पहला संस्थान था। इसका उद्देश्य था अंग्रेज़ी शासन के लिए भारतीय डॉक्टर तैयार करना, जो ब्रिटिश चिकित्सा प्रणाली को समझें और जनता तक पहुँचाएं। धीरे-धीरे भारत की नई शिक्षित मध्यमवर्गीय पीढ़ी ने एलोपैथी को अपनाना शुरू किया, क्योंकि यह “वैज्ञानिक” और “आधुनिक” कही जाती थी। ब्रिटिश सरकार ने भी आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा को “पिछड़ी” और “अवैज्ञानिक” बताकर सरकारी संस्थानों से बाहर कर दिया।

इस दौरान आयुर्वेद के विद्वानों ने विरोध किया। कई विद्वानों जैसे पंडित मधुसूदन गुप्त (जिन्होंने 1836 में मानव शरीर का पहला वैज्ञानिक विच्छेदन किया) ने एलोपैथी और आयुर्वेद के बीच सेतु बनाने की कोशिश की। लेकिन औपनिवेशिक नीति स्पष्ट थी — शिक्षा, प्रशासन और चिकित्सा सब कुछ अंग्रेज़ी ढांचे में ढालना। यही कारण था कि 19वीं सदी के अंत तक भारत के अधिकांश सरकारी अस्पतालों में एलोपैथिक पद्धति ही प्रमुख हो गई।

एलोपैथी की लोकप्रियता का एक कारण यह भी था कि यह तत्काल परिणाम देती थी। जहाँ आयुर्वेद धीरे-धीरे शरीर के संतुलन को साधता था, वहीं एलोपैथिक दवाएं जल्दी असर दिखाती थीं। इंजेक्शन, एंटीबायोटिक, एनस्थीसिया और सर्जरी ने जीवन रक्षक भूमिका निभाई। प्लेग, मलेरिया, हैजा जैसी महामारियों में एलोपैथिक चिकित्सा ने कई जिंदगियाँ बचाईं। इसी वैज्ञानिक सफलता ने इसे भारत में “आधुनिक चिकित्सा” के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया।

फिर भी, आयुर्वेद पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ। वह भारत की संस्कृति और जनजीवन में गहराई से रचा-बसा था। ग्रामीण भारत में आज भी औषधीय पौधों और घरेलू उपचारों का ज्ञान पीढ़ियों से चलता आ रहा है। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने दोनों पद्धतियों को समान महत्व देने का निर्णय लिया। 1947 के बाद आयुष मंत्रालय (AYUSH: Ayurveda, Yoga & Naturopathy, Unani, Siddha, Homeopathy) की स्थापना इसी संतुलन की दिशा में एक बड़ा कदम था। आज भारत में आयुर्वेद और एलोपैथी दोनों साथ-साथ चलते हैं — एक शरीर के गहरे संतुलन को साधता है, दूसरा त्वरित राहत देता है।

एलोपैथी का इतिहास केवल औषधियों का इतिहास नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण की विजय की कहानी है। इसने चिकित्सा को अंधविश्वास से बाहर निकालकर प्रयोगशाला में लाया। लेकिन इसके साथ यह भी सत्य है कि एलोपैथी ने कभी आत्मा और शरीर के संतुलन को उतनी गहराई से नहीं समझा, जितना आयुर्वेद ने किया था। आज की दुनिया में दोनों प्रणालियों का संगम ही स्वास्थ्य का भविष्य है — जहाँ एलोपैथी की सटीकता और आयुर्वेद की आत्मीयता एक साथ काम करें।

इस प्रकार, भारत में एलोपैथी का आगमन केवल एक विदेशी चिकित्सा का विस्तार नहीं था, बल्कि यह उस परिवर्तन का प्रतीक था जिसमें भारत ने आधुनिक विज्ञान को अपनाया, परंतु अपनी परंपरा को पूरी तरह छोड़ा नहीं। आयुर्वेद और एलोपैथी — दोनों आज भी भारत के चिकित्सा परिदृश्य के दो पंख हैं, जो अलग-अलग दिशाओं में नहीं, बल्कि एक ही उद्देश्य की ओर उड़ते हैं — “मनुष्य के जीवन को दीर्घ, स्वस्थ और संतुलित बनाना।”

सदैव अटल समाधि पर भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित

भारत रत्न, परम श्रद्धेय पं. अटल बिहारी वाजपेयी जी की जन्म शताब्दी

Indore: देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में अटल स्मृति पर स्वास्थ्य, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण का संदेश

Indore: भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि

हजारों युवाओं की मौजूदगी में संपन्न हुआ युवा शक्ति संगठन का प्रथम अधिवेशन

हजारों युवाओं की ऐतिहासिक मौजूदगी के बीच सागर में युवा शक्ति संगठन

UP news: बुलन्दशहर में सांसद खेल महोत्सव 2025 के समापन समारोह में उमड़ा जनसैलाब

संवाददाता :सुरेश भाटी UP news: जनपद बुलंदशहर के जहांगीराबाद क्षेत्र स्थित खालौर

Unnao: तुलसी पूजन यात्रा, 51 हजार पौधे वितरित, पर्यावरण संरक्षण का संदेश

Report- Anmol Kumar Unnao: उन्नाव में गुरुवार को “नर सेवा नारायण सेवा”

Bemetara news: धान के अवैध परिवहन का खुलासा, मेटाडोर वाहन जब्त

Report: Sanju jain Bemetara news: प्रशासन ने धान के अवैध परिवहन के

Unnao: दोस्त को शराब पिलाकर गला दबाकर की हत्या, शव नहर किनारे फेंका

Unnao: दोस्त को शराब पिलाकर गला दबाकर की हत्या, शव नहर किनारे

UP news: सशक्त, स्वाभिमानी व स्वावलंबी भारत बनाने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं पीएम मोदीः रक्षा मंत्री

लखनऊ में शानदार प्रेरणा स्थल स्थापित कराने पर राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री

UP news: जब मंच से पीएम मोदी ने की सीएम योगी के कार्यों की प्रशंसा

रक्षा मंत्री व लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह ने भी राष्ट्र प्रेरणा

BAHRAICH: आदमखोर तेंदुए का आतंक, दो ग्रामीण गंभीर घायल

REPORT- ANUJ JAISWAL BAHRAICH: आदमखोर तेंदुए का आतंक, दो ग्रामीण गंभीर घायलजनपद

MP News: सबसे तेज गति से विकसित हो रहा है मध्यप्रदेश: गृह मंत्री अमित शाह

MP News: केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने कहा

Bulandshehar: सांसद खेल महोत्सव 2025 का भव्य समापन

By- Isa ahmad संवाददाता: सुरेश भाटी Bulandshehar: जनपद बुलंदशहर के जहांगीराबाद क्षेत्र

Kanker News: धर्मांतरण पर मचे बवाल के बीच बड़े तेवड़ा में 13 लोगों ने की हिंदू धर्म में घर वापसी

रिपोर्ट - प्रशांत जोशी Kanker News: छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण के विवाद के

Christmas 2025: क्रिसमस पर कैथेड्रल चर्च पहुंचे पीएम मोदी, विशेष प्रार्थना में हुए शामिल

by: vijay nandan Christmas 2025: क्रिसमस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

Pratapgarh: आधी रात से पहले ही छाईं खुशियां

By- Isa ahmad Pratapgarh: प्रतापगढ़ में क्रिसमस पर्व को लेकर आधी रात

Bhopal news:भोपाल में दिनदहाड़े गुंडागर्दी, लिंक रोड-3 पर मचा हंगामा

Bhopal news: राजधानी भोपाल में एक बार फिर खुलेआम गुंडागर्दी का मामला