इंदौर: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शताब्दी वर्ष समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ के कार्यक्रमों से मनुष्य के सद्गुणों में वृद्धि होती है। संघ लाठी चलाना प्रदर्शन के लिए नहीं सिखाता है। यह एक कला है और लाठी चलाने से व्यक्ति में वीरता आती है। डर का भाव खत्म हो जाता है। समारोह की रुआत स्वर शतकम् आयोजन से हुई। एक हजार से ज्यादा स्वयंसेवकों ने जयघोष की प्रस्तुति दी। स्वयंसेवकों ने 100 के अंक की मानव आकृति भी बनाई।
संघ के कार्यक्रमों से जुड़कर मनुष्य में संस्कार आते हैं
संघ प्रमुख ने आरएसएस में घोष दलों के महत्व को बताते हुए कहा कि संगीत के सब अनुरागी हैं, लेकिन साधक सब नहीं होते। भारतीय संगीत में घोष दलों की परंपरा नहीं थी। शुरुआत में संघ के स्वयंसेवकों ने नागपुर के कामठी केंटोनमेंट बोर्ड में सेना के वादकों की धुनें सुनकर अभ्यास किया। संगीत वादन भी देशभक्ति से जुड़ा है। दूसरे देशों में देशभक्ति संगीत से भी प्रदर्शित होती है। हम दुनिया में किसी से पीछे न रहें, हमने भी घोष की उपयोगिता को समझा, इसलिए संघ ने भी घोष दल बनाए हैं। मोहन भागवत ने कहा कि संघ के कार्यक्रम प्रदर्शन के लिए नहीं आयोजित किए जाते हैं। इन कार्यक्रमों से जुड़कर मनुष्य की संस्कृति, स्वभाव और संस्कार बनते हैं। राष्ट्र निर्माण के लिए लोग संघ से जुड़े। लोगों में राष्ट्र निर्माण का भाव जागृत होगा तो एक दिन सारी दुनिया सुख और शांति का युग देखेगी। मालवा प्रांत के 28 जिलों के स्वयंसेवकों ने बैंड,बांसुरी पर अलग-अलग धुनें बजाकर प्रस्तुति दी। बांसुरी पर भजन मेरी झोपडी के भाग खुल जाएंगे,राम आएंगे। नमःशिवाय भजन की धुन भी बजाई गई। 40 मिनिट तक संगीतमय धुनों की प्रस्तुति के बाद वक्ताओं ने अपना संबोधन दिया।