बच्चों में स्कूल उम्र में बाल झड़ने और गंजेपन के कारण
भारत में पिछले कुछ सालों में एक चिंताजनक समस्या सामने आई है—स्कूल जाने वाली उम्र के बच्चे बालों के झड़ने और गंजेपन का शिकार हो रहे हैं। आमतौर पर बालों का झड़ना उम्र बढ़ने के साथ जुड़ा होता है, लेकिन जब यह समस्या छोटे बच्चों में दिखाई देती है, तो यह न सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्थिति पर भी असर डालती है। आइए, इसके कारणों को समझें और जानें कि भारत में यह समस्या क्यों बढ़ रही है।
1. पोषण की कमी
आजकल बच्चों के खान-पान में पोषक तत्वों की कमी एक बड़ा कारण बन रही है। फास्ट फूड, प्रोसेस्ड खाना, और असंतुलित आहार के चलते बच्चों को आयरन, जिंक, बायोटिन, प्रोटीन, और विटामिन डी जैसे जरूरी तत्व नहीं मिल पाते। ये पोषक तत्व बालों की मजबूती और विकास के लिए बेहद जरूरी हैं। कई बार माता-पिता को इस बात का अंदाजा नहीं होता कि उनके बच्चे की डाइट में ये कमियाँ बालों के झड़ने को बढ़ावा दे रही हैं।
2. हार्मोनल असंतुलन
किशोरावस्था की शुरुआत में बच्चों के शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं। टेस्टोस्टेरॉन से बनने वाला डायहाइड्रोटेस्टोस्टेरॉन (DHT) बालों के रोम को प्रभावित कर सकता है, जिससे बाल पतले होने लगते हैं या झड़ने शुरू हो जाते हैं। कुछ बच्चों में थायराइड या डायबिटीज जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ भी इस उम्र में शुरू हो सकती हैं, जो बालों के झड़ने का कारण बनती हैं।
3. तनाव और मानसिक दबाव
आधुनिक जीवनशैली में बच्चे भी तनाव से अछूते नहीं हैं। स्कूल में पढ़ाई का दबाव, परीक्षा की चिंता, और सोशल मीडिया का प्रभाव बच्चों में स्ट्रेस को बढ़ा रहा है। लंबे समय तक तनाव रहने से शरीर बालों के विकास पर ध्यान देना कम कर देता है, जिससे बाल झड़ने लगते हैं। टेलोजन एफ्लुवियम जैसी स्थिति में बाल अचानक बड़ी मात्रा में झड़ सकते हैं।
4. पर्यावरण और प्रदूषण
भारत के बड़े शहरों में बढ़ता प्रदूषण बच्चों के बालों पर बुरा असर डाल रहा है। हवा में मौजूद धूल, धुआँ, और केमिकल स्कैल्प को नुकसान पहुँचाते हैं। इसके अलावा, पानी की खराब गुणवत्ता—जैसे कि इसमें क्लोरीन या भारी धातुओं की मौजूदगी—बालों को कमजोर बना सकती है। ग्रामीण इलाकों में भी कई बार अशुद्ध पानी इस समस्या को बढ़ाता है।
5. आनुवंशिक कारण
कई मामलों में गंजापन या बालों का झड़ना आनुवंशिक होता है। अगर परिवार में माता-पिता या दादा-दादी को कम उम्र में यह समस्या थी, तो बच्चों में भी इसके होने की संभावना बढ़ जाती है। एंड्रोजेनिक एलोपेसिया जैसी स्थिति बच्चों में कम आम है, लेकिन इसे पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता।
6. स्वास्थ्य समस्याएँ और दवाएँ
कुछ बच्चों में एलोपेसिया एरियाटा जैसी ऑटोइम्यून बीमारी के कारण बाल पैच में झड़ते हैं। यह स्थिति तब होती है जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता गलती से बालों के रोम पर हमला करती है। इसके अलावा, बुखार, एनीमिया, या किसी बीमारी के इलाज के लिए ली जाने वाली दवाएँ (जैसे एंटीबायोटिक्स या कीमोथेरेपी) भी बालों को प्रभावित कर सकती हैं।
7. खराब बालों की देखभाल
बच्चों में हेयर स्टाइलिंग टूल्स का इस्तेमाल, टाइट चोटी बनाना, या केमिकल युक्त शैंपू का प्रयोग भी बालों को नुकसान पहुँचाता है। ट्रैक्शन एलोपेसिया तब होता है जब बालों पर लगातार दबाव पड़ता है, जिससे स्कैल्प कमजोर हो जाता है और बाल झड़ने लगते हैं।
8. हाल की घटनाएँ: सेलेनियम का मामला
हाल ही में महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले में बच्चों और युवाओं में अचानक बाल झड़ने के मामले सामने आए। विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी राशन से मिलने वाले गेहूं में सेलेनियम की अत्यधिक मात्रा इसके लिए जिम्मेदार हो सकती है। सेलेनियम एक जरूरी तत्व है, लेकिन इसकी अधिकता बालों के झड़ने और गंजेपन का कारण बन सकती है। यह घटना दर्शाती है कि खाद्य आपूर्ति में गुणवत्ता की कमी भी इस समस्या को बढ़ा सकती है।

क्या करें उपाय?
- संतुलित आहार: बच्चों को हरी सब्जियाँ, फल, दालें, अंडे, और नट्स दें ताकि पोषण की कमी पूरी हो।
- तनाव प्रबंधन: बच्चों को खेलने, योग करने, और खुलकर बात करने के लिए प्रोत्साहित करें।
- साफ-सफाई: स्वच्छ पानी और हल्के शैंपू से बाल धोएँ। हेयर स्टाइलिंग टूल्स से बचें।
- डॉक्टर की सलाह: अगर बाल बहुत ज्यादा झड़ रहे हों या पैच बन रहे हों, तो तुरंत त्वचा विशेषज्ञ से मिलें।
- जागरूकता: सरकारी योजनाओं से मिलने वाले खाद्य पदार्थों की जाँच करें और शिकायत होने पर अधिकारियों को सूचित करें।
बच्चों में बालों का झड़ना और गंजापन सिर्फ सौंदर्य की समस्या नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और जीवनशैली से जुड़ा मुद्दा है। माता-पिता और समाज को मिलकर इस पर ध्यान देना होगा। सही समय पर कारणों को पहचानकर इलाज शुरू करने से बच्चों के बालों को बचाया जा सकता है और उनके आत्मविश्वास को बनाए रखा जा सकता है। भारत जैसे देश में, जहाँ बच्चों का भविष्य देश का भविष्य है, इस समस्या को गंभीरता से लेना जरूरी है।