मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि- शाही ईदगाह विवाद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शाही ईदगाह मस्जिद की याचिका को खारिज कर दिया। जिसमें हिंदू पक्षों द्वारा दायर 18 मुकदमों की स्वीकार्यता को चुनौती दी गई थी। इस निर्णय के साथ, सभी 18 मुकदमों की योग्यता के आधार पर उनकी सुनवाई का रास्ता साफ हो गया। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन के फैसले से हिंदू पक्ष को बड़ी राहत मिली है। ये मुकदमे शाही ईदगाह मस्जिद का ढांचा हटाकर जमीन का कब्जा देने और मंदिर का पुनर्निर्माण कराने की मांग को लेकर दायर किए गए थे।
क्या था आज का फैसला?
पूरा विवाद मुगल सम्राट औरंगजेब के समय की शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है। इसका निर्माण भगवान कृष्ण की जन्मस्थली पर बने मंदिर को कथित तौर पर ध्वस्त करने के बाद किया गया।शाही ईदगाह मस्जिद मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है। इस जमीन में से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से मथुरा के संतों में खुशी है। श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप सिंह ने हाईकोर्ट के निर्णय का स्वागत किया। वहीं शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी की ओर से भी अपनी बात रखी गई है। तो वहीं हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद एक बार फिर से श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मुद्दा गर्म हो गया है। आइए जानते हैं कि आखिर श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद का विवाद क्या है? कब और कैसे विवाद शुरू हुआ?
कितना पुराना विवाद?
मथुरा शहर में शाही ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से सटी हुई है। 12 अक्तूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ एक समझौता किया। समझौते में 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों के बने रहने की बात है। पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन को लेकर है। इस जमीन में से 10.9 एकड़ जमीन श्रीकृष्ण जन्मस्थान और 2.5 एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। इस समझौते में मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी जिसके बदले में उन्हें पास में ही कुछ जगह दी गई थी। लेकिन अब हिन्दू पक्ष पूरी 13.37 एकड़ जमीन की मांग कर रहा है।
इतिहास क्या कहता है?
इतिहास कारों का मानना है कि मुगल शासक औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट करके उसी जगह पर 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई। इसमें मराठा जीते। जीत के बाद मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया। 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13.37 एकड़ की भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को आवंटित कर दी। 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ये भूमि अधिग्रहीत कर ली।