PL-480 योजना’ की ये है कहानी
भारत को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर माना जाता है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब देश को भीषण अकाल और खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ा। 1960 के दशक में भारत को अपनी जनता का पेट भरने के लिए अमेरिका से ‘लाल गेहूं’ (Red Wheat) आयात करना पड़ा। यह आयात PL-480 योजना (Public Law 480) के तहत हुआ, जिसे भारत के खाद्यान्न संकट से जुड़ी एक अहम घटना के रूप में देखा जाता है।
भारत में खाद्यान्न संकट की पृष्ठभूमि
आजादी के बाद भारत की कृषि व्यवस्था बहुत कमजोर थी। किसानों के पास पारंपरिक खेती के अलावा कोई नई तकनीक नहीं थी, सिंचाई के साधन सीमित थे और खाद्य उत्पादन बहुत कम था। 1947 से 1960 के बीच देश को कई बार सूखा और अकाल झेलना पड़ा। इस दौरान खाद्यान्न उत्पादन मांग के मुकाबले बहुत कम था, जिससे देश में भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई।
1950 के दशक में भारत में प्रति व्यक्ति अनाज उपलब्धता बेहद कम थी, और देश की जनसंख्या लगातार बढ़ रही थी। इस संकट से निपटने के लिए भारत को विदेशी मदद की जरूरत पड़ी।
PL-480: जब अमेरिका ने भारत को गेहूं दिया
1954 में अमेरिका ने Public Law 480 (PL-480) नामक एक योजना शुरू की, जिसके तहत वह विकासशील देशों को खाद्यान्न और अन्य वस्तुएं उधार या रियायती दरों पर देता था। भारत ने 1956 में इस योजना के तहत अमेरिका से ‘लाल गेहूं’ का आयात करना शुरू किया। यह गेहूं अमेरिकी खेतों में उगाया जाता था और इसकी गुणवत्ता भारतीय गेहूं से काफी अलग थी।
क्यों लाल गेहूं?
- अमेरिका में उगाए जाने वाले गेहूं का रंग लाल होता था, इसलिए इसे ‘लाल गेहूं’ कहा गया।
- यह भारतीय गेहूं की तुलना में सख्त था और स्वाद में भी अलग था।
- भारतीय जनता को इसका स्वाद पसंद नहीं आया, लेकिन भूख के समय लोगों के पास इसे खाने के अलावा कोई चारा नहीं था।

1965-66: सबसे भीषण खाद्यान्न संकट
1965 और 1966 में भारत को भीषण सूखे का सामना करना पड़ा। अनाज उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ, जिससे देश में भुखमरी की नौबत आ गई। इस संकट से निपटने के लिए भारत को अमेरिका से और अधिक गेहूं मंगवाना पड़ा।
- इस दौरान भारत को 1 करोड़ टन से अधिक गेहूं अमेरिका से आयात करना पड़ा।
- यह भारत के कुल वार्षिक उत्पादन के लगभग आधे के बराबर था।
- भारतीय बंदरगाहों पर गेहूं से भरे अमेरिकी जहाजों की लंबी कतारें लग गई थीं।
PL-480 पर भारत की निर्भरता और अमेरिका की राजनीति
भारत की इस खाद्यान्न निर्भरता ने अमेरिका को एक राजनीतिक दबाव बनाने का हथियार दे दिया। अमेरिका चाहता था कि भारत उसकी नीतियों का समर्थन करे, खासकर वियतनाम युद्ध के दौरान।
- 1966 में जब भारत ने वियतनाम युद्ध में अमेरिका की नीति की आलोचना की, तो तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन ने गेहूं भेजने में देरी कर दी।
- इस घटना ने भारत को एहसास कराया कि खाद्यान्न आत्मनिर्भरता बेहद जरूरी है।
हरित क्रांति: लाल गेहूं पर निर्भरता खत्म करने का प्रयास
भारत को एहसास हुआ कि अगर वह खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं हुआ, तो उसे हमेशा दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ेगा। इसी संकट के बाद 1966-67 में भारत ने ‘हरित क्रांति’ (Green Revolution) की शुरुआत की।
- वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन और नॉर्मन बोरलॉग की मदद से भारत में उच्च उत्पादकता वाली गेहूं और धान की किस्मों को विकसित किया गया।
- पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गेहूं और धान की खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया गया।
- 1970 तक भारत का गेहूं उत्पादन दोगुना हो गया और जल्द ही भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बन गया।
भारत में खाद्यान्न संकट और अमेरिका से ‘लाल गेहूं’ का आयात इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह संकट न केवल भारत के लिए एक चुनौती था, बल्कि इससे देश को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा भी मिली। हरित क्रांति के कारण आज भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बन चुका है और कई देशों को अनाज निर्यात भी करता है।
अब भारत वही देश है जो कभी अमेरिका से गेहूं मांगता था, लेकिन आज दुनिया को अनाज सप्लाई करता है!
टॉप 5 गेहूं उत्पादक देश (2023-24 के अनुमानित आंकड़ों के आधार पर)
- चीन – लगभग 13.7 करोड़ टन
- भारत – लगभग 10.8 करोड़ टन
- रूस – लगभग 9.1 करोड़ टन
- अमेरिका – लगभग 4.8 करोड़ टन
- फ्रांस – लगभग 3.5 करोड़ टन
भारत में गेहूं उत्पादन की स्थिति
- भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान गेहूं उत्पादन के प्रमुख राज्य हैं।
- भारत गेहूं उत्पादन में आत्मनिर्भर है और बांग्लादेश, नेपाल, अफ्रीका और खाड़ी देशों को निर्यात भी करता है।
- भारत की हरित क्रांति (1960 के दशक में) के बाद गेहूं उत्पादन में भारी वृद्धि हुई, जिससे देश खाद्य सुरक्षा के मामले में मजबूत बना।
भारत गेहूं उत्पादन में चीन से क्यों पीछे है?
- चीन में खेती के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का अधिक उपयोग किया जाता है।
- चीन में बेहतर सिंचाई और अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग किया जाता है।
- चीन की कृषि नीति और अनाज भंडारण प्रणाली भारत से अधिक विकसित है।
भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है और आने वाले वर्षों में नई तकनीकों और खेती के उन्नत तरीकों को अपनाकर उत्पादन को और बढ़ा सकता है।
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