रिपोर्ट- विकास गुप्ता, एडिटेड- विजय नंदन
लखीमपुर खीरी, 15 मार्च 2025: उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के ईसानगर थाना क्षेत्र के नरगड़ा गांव में शुक्रवार को एक अनोखी परंपरा का पालन किया गया, जिसमें 42 वर्षीय विश्वम्भर दयाल मिश्रा 42वीं बार दूल्हा बने। हर बार की तरह इस बार भी बारात का धूमधाम से स्वागत हुआ, लेकिन दुर्भाग्यवश इस बार भी बारात बिना दुल्हन के ही वापस लौट गई।
परंपरा का पालन करते हुए बारात का स्वागत
होली के दिन, रंगों और अबीर-गुलाल से सराबोर गांववासियों के साथ, विश्वम्भर दयाल मिश्रा अपनी बारात लेकर दुल्हन के घर पहुंचे। बारात में लगभग पूरा गांव शामिल था और धूमधाम से बारात का स्वागत किया गया। घर में मंगल गीत गाए गए और विवाह की सभी रस्में पूरी की गईं। हालांकि, रस्मों के बावजूद बारात को बिना दुल्हन के ही लौटना पड़ा।
वर्षों पुरानी परंपरा
यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि होली के दिन पूरे गांव के लोग दूल्हे के साथ नाचते-गाते हुए बारात लेकर जाते हैं और सभी विवाह की रस्में निभाई जाती हैं, लेकिन परंपरा के अनुसार बारात को बिना दुल्हन के ही वापस भेजा जाता है।

विश्वम्भर दयाल मिश्रा की 42वीं बार शादी
इस साल 42वीं बार दूल्हा बने विश्वम्भर दयाल मिश्रा की ससुराल गांव के ही पास है। हर साल उनकी पत्नी मोहिनी को होली से पहले मायके बुला लिया जाता है और शादी के स्वांग के बाद बारात विदा होती है। इस बार भी वैसा ही हुआ, और होलाष्टक के बाद मोहिनी को ससुराल भेज दिया जाएगा।
श्यामबिहारी की परंपरा
विश्वम्भर से पहले उनके बड़े भाई श्यामबिहारी भी इस परंपरा का हिस्सा रहे हैं। श्यामबिहारी ने 35 वर्षों तक होली के दिन दूल्हा बनकर भैंसा पर सवार होकर बारात निकाली थी।
इस बार यात्रा का साधन बदला
इस बार, विश्वम्भर मिश्रा बारात में शामिल होने के लिए पीलीभीत से आए गांववाले राकेश मिश्र की क्रेटा कार पर सवार होकर निकले थे। हालांकि, 42वीं बार भी बारात बिना दुल्हन के ही वापस लौटनी पड़ी।
आकर्षण और सांस्कृतिक धरोहर
नरगड़ा गांव की यह परंपरा दूर-दूर से लोगों को आकर्षित करती है। सैकड़ों सालों से चली आ रही यह परंपरा आज भी जीवित है, जिसमें बारात के स्वागत, मंगल गीतों, सोहर, गारी और ज्योनार की परंपराएं पूरी धूमधाम से निभाई जाती हैं। लोग इस अनोखी शादी को देखने और इसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से आते हैं।
यह अनोखी परंपरा लोक संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है, और आज भी यह पुराने समय की यादों को जीवित रखे हुए है, भले ही आज की शादियों में बहुत बदलाव आ चुका हो।