भारत की महिला पहलवान विनेश फोगाट पेरिस ओलंपिक में अयोग्य करार दिए जाने के बाद पदक से चूक गई थीं। उन्होंने इसके खिलाफ खेल पंचाट में अपील की थी और संयुक्त रजत पदक देने की मांग की थी, लेकिन खेल पंचाट ने उनकी अपील खारिज कर दी थी जिससे उनका पदक लाने का सपना टूट गया था। विनेश ने अयोग्य करार दिए जाने के बाद संन्यास का एलान कर दिया था। अब उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल अपनी यात्रा को साझा किया और बताया कि किस तरह गांव की एक लड़की जो ओलंपिक के बारे में जानती भी नहीं थी, वहां तक पहुंची।
अपने पिता की बातों को किया याद
विनेश ने एक्स अकाउंट पर पोस्ट कर लिखा, एक छोटे से गांव से आने वाली बच्ची होने के कारण मुझे ओलंपिक या इसके रिंग का मतलब नहीं पता था। जब मैं छोटी बच्ची थी तो मेरा सपना लंबे बाल रखना, हाथ में मोबाइल फोन रखना और हर वो काम करने का था जो आमतौर पर एक युवा लड़की का सपना होता है। मेरे पिता एक आम बस चालक थे और कहते थे कि एक दिन वह अपनी बेटी को प्लेन में उड़ते देखेंगे। उनका कहना था कि भले ही वह सड़क तक सीमित रहेस लेकिन मैं ही हूं जो अपने पिता के सपने को हकीकत में बदलूंगी। मैं यह कहना नहीं चाहती, लेकिन मुझे लगता है कि मैं उनकी पसंदीदा बच्ची थी क्योंकि मैं तीन बच्चों में सबसे छोटी थी। जब वह मुझसे यह सब कहते थे तो मैं हंसती थी।
— Vinesh Phogat (@Phogat_Vinesh) August 16, 2024
उन्होंने कहा, मेरी मां जो अपने जीवन की कठिनाइयों पर एक पूरी कहानी लिख सकती थीं, उन्होंने केवल यह सपना देखा था कि उनके सभी बच्चे एक दिन उनसे बेहतर जीवन जिएंगे। स्वतंत्र होना और उनके बच्चों का अपने पैरों पर खड़ा होना उनके लिए एक सपना था। उनकी इच्छाएं और सपने मेरे पिता से कहीं अधिक सरल थे। लेकिन मेरे पिता हमें छोड़कर चले गए और मैं बस उनके विचार और प्लेन में उड़ान भरने की यादों के साथ रही। मैं तब उनके अर्थ को लेकर असमंजस में थी, लेकिन फिर भी उस सपने को अपने पास रखा। मेरी मां का सपना अब और दूर हो गया था क्योंकि मेरे पिता की मृत्यु के कुछ महीने बाद उन्हें स्टेज तीन कैंसर का पता चला था। यहां तीन बच्चों की यात्रा शुरू हुई जो अपनी अकेली मां का समर्थन करने के लिए अपना बचपन खो देते हैं। जल्द ही मेरे लंबे बाल, मोबाइल फोन के सपने धूमिल हो गए क्योंकि मैंने जीवन की वास्तविकता का सामना किया और अस्तित्व की दौड़ में शामिल हो गई। लेकिन संघर्ष ने मुझे काफी कुछ सिखाया। मेरी मां का संघर्ष, कभी हार ना मानने का व्यवहार और लड़ने की क्षमता, जैसी मैं आज हूं। उन्होंने मुझे उस चीज के लिए लड़ना सिखाया जो मेरा हक है। जब मैं साहस के बारे में सोचती हूं तो उनके बारे में सोचती हूं और यही साहस है जो मुझे परिणाम के बारे में सोचे बिना हर लड़ाई लड़ने में मदद करता है।
‘पति सोमवीर ने हर कदम पर दिया साथ’
विनेश ने कहा, आगे की राह कठिन होने के बावजूद हमने एक परिवार के रूप में भगवान में अपना विश्वास कभी नहीं खोया और हमेशा भरोसा किया कि उन्होंने हमारे लिए सही चीजों की योजना बनाई है। मां हमेशा कहती थीं कि भगवान अच्छे लोगों के साथ कभी बुरा नहीं होने देंगे। मुझे इस पर तब और भी अधिक विश्वास हुआ जब मेरी मुलाकात सोमवीर से हुई, जो कि मेरे पति, जीवनसाथी और जीवन भर के लिए सबसे अच्छा दोस्त है। यह कहना कि जब हमने किसी चुनौती का सामना किया तो हम बराबर के भागीदार थे, गलत होगा, क्योंकि उन्होंने हर कदम पर बलिदान दिया और मेरी कठिनाइयों को उठाया, हमेशा मेरी रक्षा की। उन्होंने मेरी यात्रा को अपने सफर से ऊपर रखा और अत्यंत निष्ठा, समर्पण और ईमानदारी के साथ अपना सहयोग प्रदान किया। यदि वह नहीं होता, तो मैं यहां रहने, अपनी लड़ाई जारी रखने और प्रत्येक दिन का सामना करने की कल्पना नहीं कर सकती थी। यह केवल इसलिए संभव है क्योंकि मैं जानती हूं कि वह मेरे साथ खड़ा है, मेरे पीछे है और जरूरत पड़ने पर मेरे सामने खड़ा है और हमेशा मेरी रक्षा कर रहा है।
‘पिछले दो साल में मेरे साथ काफी कुछ हुआ’
उन्होंने कहा, मेरी यात्रा ने मुझे बहुत सारे लोगों से मिलने का मौका दिया है, जिनमें से ज्यादातर अच्छे और कुछ बुरे हैं। पिछले डेढ़-दो साल में, मैट के अंदर और बाहर बहुत कुछ हुआ है। मेरी जिंदगी ने कई मोड़ लिए और ऐसा लगा जैसे उससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है। लेकिन मेरे आस-पास के जो लोग थे उनमें ईमानदारी थी, मेरे प्रति सद्भावना थी और व्यापक समर्थन था। ये लोग और उनके मुझ पर विश्वास इतना मजबूत था कि यह उन्हीं की वजह से है कि मैं आगे बढ़ी और पिछले दो वर्षों से इन चुनौतियां निपट सकी।