झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान की 167वीं वर्षगांठ पर आयोजित वीरांगना बलिदान मेला 2025 का शुभारंभ शहीद ज्योति यात्रा के साथ हुआ। यह यात्रा सोमवार को झांसी से निकली और मंगलवार शाम को ग्वालियर पहुंची, जहां हजारों लोगों ने इस ऐतिहासिक यात्रा का भव्य स्वागत किया।
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फूलबाग से समाधि स्थल तक यात्रा
- यात्रा की शुरुआत फूलबाग चौराहे से हुई और वीरांगना लक्ष्मीबाई की समाधि तक पहुंची।
- शहीद ज्योति को पूर्व मंत्री व बलिदान मेला के संस्थापक जयभान सिंह पवैया ने अपने हाथों में लेकर यात्रा का नेतृत्व किया।
- बालिकाएं वीरांगना के रूप में तलवार व घोड़े के साथ यात्रा में शामिल रहीं।
पहली बार महिला बाइक रैली बनी आकर्षण
- इस वर्ष पहली बार वीरांगना बाइक रैली का आयोजन किया गया, जिसमें महिलाएं आगे-आगे बाइक चलाते हुए शामिल हुईं।
- अल्टीमेट वॉरियर राइडर्स क्लब की साहसी महिलाओं ने नेतृत्व किया।
शहीद ज्योति की स्थापना व श्रद्धांजलि
- यात्रा के अंत में शहीद ज्योति को लक्ष्मीबाई की समाधि पर स्थापित किया गया।
- सामाजिक संस्थाओं ने 1008 दीप जलाकर वीरांगना को श्रद्धांजलि दी।
- समाधि स्थल पर रानी लक्ष्मीबाई व तात्या टोपे के शस्त्रों की प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया।
18 जून को होगा मुख्य समारोह
- बलिदान मेला का मुख्य आयोजन 18 जून की शाम 7 बजे होगा।
- मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे।
- इस अवसर पर महानाट्य “खूब लड़ी मर्दानी” का मंचन होगा जिसमें 200 पात्र और सजीव घुड़सवार युद्ध प्रदर्शित करेंगे।
- अखिल भारतीय कवि सम्मेलन भी आयोजित किया जाएगा जिसमें पद्मश्री सुरेंद्र दुबे, अरुण जेमिनी और अन्य कवि काव्यपाठ करेंगे।
विशेष सम्मान व पुरस्कृत अतिथि
- शहीद दुर्गासिंह (प्रथम) के प्रपोत्र को क्रांतिकारी वंशज सम्मान दिया जाएगा।
- शहीद विवेक तोमर की पत्नी को शहीद परिजन सम्मान प्रदान किया जाएगा।
- भारत की प्रख्यात शिक्षाविद् इंदुमति ताई काटदरे को लक्ष्मीबाई सम्मान दिया जाएगा।
- कार्यक्रम में प्रदेश के संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र लोधी व महामंडलेश्वर रामदास महाराज मौजूद रहेंगे।
आकर्षण का केंद्र बनीं वीरांगना झांकियां
- बालिकाओं ने वीरांगना के रूप में हाथ में तलवार लिए हुए अश्वों पर सवार होकर यात्रा की शोभा बढ़ाई।
- झांकियों में रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी, बलिदान और संघर्ष के दृश्य जीवंत रूप में दर्शाए गए।
वीरांगना बलिदान मेला केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि रानी लक्ष्मीबाई के साहस, बलिदान और नारी सशक्तिकरण का प्रतीक बन चुका है। इस ऐतिहासिक आयोजन में हर वर्ष बढ़ता जनसमर्थन यह साबित करता है कि आज भी वीरांगना की विरासत लोगों के दिलों में जिंदा है।