अमेरिका की गिरती अर्थव्यवस्था पर दुनियाभर की नजर
डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने के बाद से अमेरिका की अर्थव्यवस्था लगातार सुर्खियों में है। जहां एक ओर ट्रंप खुद को विश्व राजनीति का ‘संकट मोचक’ बताने से नहीं चूकते, वहीं हकीकत में अमेरिकी डॉलर और जीडीपी के आंकड़े लगातार गिरावट की ओर इशारा कर रहे हैं।
ट्रंप का दावा है कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान, इजराइल-ईरान जैसे युद्धों को रोकवाया, लेकिन आर्थिक मोर्चे पर उनकी नीतियां अमेरिका के लिए बड़ी चिंता का कारण बनती दिख रही हैं।
अमेरिकी जीडीपी में आई बड़ी गिरावट
जनवरी से मार्च 2025 के तिमाही आंकड़े सामने आ चुके हैं। फाइनल रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 0.5% की गिरावट दर्ज हुई है। इसका सीधा मतलब है कि अमेरिकी जीडीपी सिकुड़ रही है, जो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है।
पिछले कुछ वर्षों के आंकड़े:
- दिसंबर 2024 में जो बाइडेन सरकार ने 2.4% की विकास दर के साथ ट्रंप को सत्ता सौंपी थी।
- ट्रंप के कार्यकाल में अनिश्चितता, ट्रेड वॉर और गलत नीतियों के चलते लगातार आर्थिक गिरावट देखी गई।
- अमेरिकी डॉलर इंडेक्स तीन साल के निचले स्तर पर पहुंच चुका है।
जीडीपी में गिरावट की मुख्य वजहें
अमेरिकी जीडीपी में गिरावट के पीछे कई बड़े कारण हैं:
1. आयात में जबरदस्त उछाल
ट्रंप सरकार की टैरिफ नीतियों के डर से कंपनियों ने भारी मात्रा में आयात कर लिया, जिससे अगले कुछ महीनों के लिए आयात की जरूरत कम हो गई। इसका सीधा असर जीडीपी पर पड़ा।
2. सरकारी खर्च में कटौती
सरकार ने कुछ जरूरी सब्सिडी और योजनाओं पर खर्च घटाया, जिससे बाजार में पैसे का प्रवाह कम हुआ।
3. उपभोक्ता और कंपनियों में डर
महंगाई और टैरिफ के कारण आम उपभोक्ता और कंपनियां निवेश करने से बच रही हैं।
अमेरिकी डॉलर की हालत भी नाजुक
ट्रंप ने दावा किया था कि उनके रहते डॉलर की साख बनी रहेगी, लेकिन डॉलर इंडेक्स 110 से गिरकर 98 पर आ गया है। इसका मतलब है कि दुनिया की अन्य बड़ी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर कमजोर हुआ है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का फेडरल रिजर्व (अमेरिका का केंद्रीय बैंक) पर दबाव और संभावित बदलाव निवेशकों का भरोसा हिला रहे हैं। यही वजह है कि:
- डॉलर से निवेशक दूरी बना रहे हैं।
- लॉन्ग टर्म बॉन्ड्स से पैसा निकाल रहे हैं।
- बाजार में अनिश्चितता का माहौल है।
भारत ने भी अमेरिका को दिखाया कड़ा रुख
ट्रंप प्रशासन के दबाव में अमेरिका, भारत पर व्यापार समझौते को लेकर लगातार दबाव बना रहा है। लेकिन भारत ने साफ कर दिया है कि:
✅ भारत विन-विन सिचुएशन वाला ट्रेड डील ही करेगा।
✅ भारत किसी भी कीमत पर अपने किसानों, डेयरी और लोकल सेक्टर के हितों से समझौता नहीं करेगा।
✅ अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस में कमी को भारत तैयार है, बशर्ते अमेरिका भी बराबरी का व्यवहार करे।
भारत की मांगें:
- अमेरिका नॉन टैरिफ बैरियर्स हटाए।
- डेयरी प्रोडक्ट्स में ब्लड मील आधारित उत्पादन पर रोक लगे।
- जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फूड्स पर भारत की नीतियों का सम्मान किया जाए।
- अमेरिका भारतीय स्टील और अन्य उत्पादों पर टैक्स न बढ़ाए।
भारत-अमेरिका ट्रेड डील पर क्या है ताजा स्थिति
हाल ही में अमेरिका का प्रतिनिधिमंडल भारत दौरे पर आया, लेकिन किसी ठोस समझौते के बिना खाली हाथ लौट गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक:
- भारत ने अमेरिका से कहा है, “बॉल अब आपके पाले में है।”
- 9 जुलाई तक कोई डील संभव नहीं दिख रही।
- पीएम मोदी और ट्रंप के बीच अक्टूबर 2025 तक ट्रेड डील पर आम सहमति बनी थी।
भारत का संदेश साफ:
“हमें ट्रेड डील की जल्दबाजी नहीं है। फेयर डील मिलेगी तो करेंगे, अन्यथा कोई दबाव नहीं।”
निष्कर्ष: ट्रंप की नीतियों से अमेरिका वैश्विक मंच पर कमजोर?
डोनाल्ड ट्रंप की विवादित नीतियों ने अमेरिका की अर्थव्यवस्था और वैश्विक छवि दोनों को झटका दिया है। अमेरिका के भीतर आर्थिक अनिश्चितता और बाहर ट्रेड डील में गतिरोध इस बात का संकेत है कि केवल बड़ी-बड़ी बातें करके आर्थिक मजबूती नहीं लाई जा सकती।
भारत जैसे देश अब अमेरिका के सामने मजबूती से खड़े हैं और बराबरी की बात कर रहे हैं। आने वाले दिनों में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या ट्रंप अपने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मोर्चों पर हालात संभाल पाएंगे या फिर अमेरिका की गिरती अर्थव्यवस्था और डॉलर का कमजोर पड़ना जारी रहेगा।