भोपाल ने एक बार फिर चिकित्सा के क्षेत्र में इतिहास रच दिया है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) भोपाल ने मध्य भारत का पहला कृत्रिम टाइटेनियम जबड़ा ट्रांसप्लांट कर न सिर्फ एक महिला को दर्द से राहत दी, बल्कि उसे दोबारा सामान्य जीवन जीने का मौका भी दिया। यह सर्जरी पूरी तरह से कंप्यूटर प्लानिंग के साथ की गई, जिससे नतीजे बेहद सटीक और सफल रहे।
कौन हैं महिला और क्या थी उनकी समस्या?
- उम्र: 62 वर्ष
- निवास: मंदसौर जिला, मध्यप्रदेश
- समस्या:
- लंबे समय से जबड़े में असहनीय दर्द
- चेहरे की बनावट में बदलाव
- खाने और बोलने में परेशानी
- पहले दो बार टाइटेनियम प्लेट्स से सर्जरी करवाई थी, लेकिन दोनों बार फेल रही
जब उनकी स्थिति बिगड़ने लगी, तब उन्होंने AIIMS भोपाल के ट्रॉमा और आपातकालीन विभाग में संपर्क किया।
कैसे हुआ सफल टाइटेनियम जबड़ा ट्रांसप्लांट?
डिजिटल सर्जरी प्लानिंग से बढ़ी सफलता
AIIMS भोपाल के डॉक्टरों ने महिला की हालत का गहन विश्लेषण कर वर्चुअल सर्जरी प्लानिंग की। इसमें कंप्यूटर के जरिए सर्जरी की संपूर्ण योजना बनाई गई।
- इम्प्लांट:
- ठोस टाइटेनियम ब्लॉक से बना
- पारंपरिक 3D प्रिंटेड इम्प्लांट्स से मजबूत और अधिक टिकाऊ
- प्लानिंग प्रक्रिया:
- 3D प्रिंटेड मॉडल पर इम्प्लांट फिटनेस की जांच
- वास्तविक सर्जरी से पहले हर पहलू का आकलन
प्रमुख डॉक्टरों की टीम
- डॉ. बी.एल. सोनी (सर्जन, मुख्य ऑपरेशन टीम)
- प्रो. मोहम्मद यूनुस (प्रमुख, ट्रॉमा एवं आपातकालीन चिकित्सा)
- डॉ. सौरभ (सहायक विशेषज्ञ)
इनकी टीम ने मिलकर इस जटिल सर्जरी को पूरी सफलता के साथ अंजाम दिया।
सर्जरी के बाद महिला की स्थिति
- अब महिला बिना किसी परेशानी के खाना खा पा रही हैं
- सामान्य रूप से बोल भी पा रही हैं
- चेहरे की बनावट में भी काफी सुधार आया है
- दर्द से पूरी तरह राहत मिल चुकी है
क्यों है यह सर्जरी खास?
- मध्य भारत में पहली बार हुआ ऐसा ट्रांसप्लांट
- तकनीकी रूप से उन्नत वर्चुअल सर्जरी प्लानिंग
- मजबूत और टिकाऊ टाइटेनियम इम्प्लांट का सफल उपयोग
- AIIMS भोपाल की टीम ने नई ऊंचाई को छुआ
AIIMS भोपाल की यह उपलब्धि न केवल मेडिकल साइंस के लिए मील का पत्थर है, बल्कि भविष्य में ऐसे सैकड़ों मरीजों के लिए आशा की नई किरण भी है। अत्याधुनिक तकनीक और अनुभवी डॉक्टरों की मदद से अब गंभीर जबड़ा समस्याओं का हल संभव हो गया है।