दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित सीमा शुल्क और जीएसटी कानूनों के तहत अधिकारियों को गिरफ्तारी की शक्ति को वैध ठहराया है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि गिरफ्तारी की स्पष्ट आशंका हो, तो व्यक्ति एफआईआर दर्ज होने से पहले भी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है। करीब 280 याचिकाओं में जीएसटी और सीमा शुल्क अधिनियम के तहत गिरफ्तारी के प्रावधानों को चुनौती दी गई थी, जिन्हें अदालत ने खारिज कर दिया। अदालत ने यह भी कहा कि अधिकारियों को गिरफ्तारी के आधारों की जानकारी तुरंत देनी होगी और पूछताछ के दौरान कानूनी सहायता की अनुमति दी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में ओम प्रकाश बनाम भारत संघ मामले का उल्लेख करते हुए बताया कि उसके बाद सीमा शुल्क अधिनियम में कई संशोधन किए गए हैं। 2012, 2013 और 2019 में किए गए इन संशोधनों में कुछ अपराधों को संज्ञेय और गैर-जमानती घोषित किया गया है, जिससे अधिकारियों को मजिस्ट्रेट के वारंट के बिना भी गिरफ्तारी की अनुमति मिलती है। अदालत ने कहा कि अब पुराने फैसलों पर निर्भरता की आवश्यकता नहीं है।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने 2017 के जीएसटी अधिनियम के तहत सरकार को दी गई गिरफ्तारी की शक्ति को भी बरकरार रखा है। अदालत ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 246A केंद्र और राज्यों को जीएसटी से जुड़े कानून बनाने का अधिकार देता है, जिसमें कर चोरी के खिलाफ कार्रवाई भी शामिल है। अदालत ने स्पष्ट किया कि समन, गिरफ्तारी और अभियोजन जैसी शक्तियां जीएसटी कानून को लागू करने के लिए आवश्यक हैं।
हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि जीएसटी के हर मामले में गिरफ्तारी आवश्यक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि वह सीमा शुल्क अधिनियम और जीएसटी अधिनियम के तहत ‘विश्वास करने के कारण’ और ‘गिरफ्तारी के आधार’ के सवाल की जांच करेगी। अदालत ने कहा कि जहां जीएसटी अधिकारियों की मनमानी के कई मामले सामने आए हैं, वहीं करदाताओं की ओर से गलत काम करने के भी मामले हैं। पीठ ने कहा कि वह अपना फैसला देते समय इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखेगी।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी के मामलों में उचित सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं। अधिकारियों को गिरफ्तारी के आधारों की जानकारी तुरंत देनी होगी और व्यक्ति को पूछताछ के दौरान कानूनी सहायता लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसके अलावा, अदालत ने कहा कि जीएसटी अधिनियम की धारा 134 के तहत किसी अपराध का संज्ञान लेने के लिए ‘आयुक्त’ से ‘पूर्व मंजूरी’ की आवश्यकता होती है और केवल प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट ही अपराध की सुनवाई कर सकता है।
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने जीएसटी और सीमा शुल्क अधिकारियों की गिरफ्तारी की शक्तियों को वैध ठहराया है, साथ ही गिरफ्तारी के मामलों में उचित सुरक्षा उपायों की आवश्यकता पर भी जोर दिया है।
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