By: Vijay Nandan
बिहार की मतदाता सूची को लेकर उठे विवाद ने अब देश की संसद तक का रास्ता पकड़ लिया है। विपक्ष इस मुद्दे पर विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया को लेकर तीखा विरोध दर्ज करा रहा है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक, संसद में इस पर कोई चर्चा नहीं होगी क्योंकि यह कार्य चुनाव आयोग की पूर्णतः स्वतंत्र प्रक्रिया है। सरकार ने साफ तौर पर कहा है कि वह चुनाव आयोग की स्वायत्तता का सम्मान करती है और इसलिए SIR पर कोई टिप्पणी नहीं करेगी।

हंगामे के चलते संसद स्थगित
बुधवार को जैसे ही संसद की कार्यवाही शुरू हुई, विपक्षी सांसदों ने SIR को लेकर नारेबाज़ी शुरू कर दी। दोपहर 2 बजे कार्यवाही फिर शुरू हुई, लेकिन शोरगुल थमा नहीं। नतीजा ये हुआ कि लोकसभा और राज्यसभा दोनों को गुरुवार सुबह तक के लिए स्थगित कर दिया गया।
क्या विपक्ष को SIR प्रक्रिया पर आपत्ति है?
जी हाँ, विपक्ष इस प्रक्रिया को रद्द करने की मांग कर रहा है। सांसदों ने सदन के भीतर सीटों से उठकर विरोध दर्ज कराया और कहा कि यह अभ्यास पक्षपातपूर्ण है और लाखों मतदाताओं के नाम काटे जा रहे हैं।
बिहार विधानसभा में भी हंगामा, मंत्री ने विपक्ष को ठहराया जिम्मेदार
बिहार के मंत्री विजय चौधरी ने साफ कहा कि विधानसभा में हुए हंगामे के लिए विपक्ष ज़िम्मेदार है। उनका तर्क है कि जब सरकार का कामकाज पूरा हो चुका है, तो सत्ताधारी दल को हंगामे की जरूरत क्यों पड़ेगी?
उन्होंने विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा:
“हमें आज तक समझ नहीं आया कि वोटर लिस्ट के मुद्दे पर असल आपत्ति क्या है। चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि पात्र सभी नागरिकों को सूची में जोड़ा जाएगा।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि:
लाखों मतदाताओं के नाम अभी भी सूची में नहीं हैं।
राजनीतिक दलों से सहयोग मांगा गया है।
क्या विपक्ष इन नामों को ढूंढकर फॉर्म जमा करवा रहा है?
चुनाव आयोग की रिपोर्ट में क्या है?
बिहार में मतदाता सूची के SIR के पहले चरण में ये चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं:
- 56 लाख मतदाता लिस्ट में नहीं मिले, जिनमें –
- 20 लाख मृतक पाए गए
- 28 लाख स्थायी रूप से स्थानांतरित
- 7 लाख दो स्थानों पर दर्ज
- 1 लाख का कोई पता नहीं चला
- 15 लाख लोगों ने अब तक फॉर्म ही नहीं भरा।
क्या वाकई SIR निष्पक्ष है?
सरकार और चुनाव आयोग दोनों ही यह दावा कर रहे हैं कि SIR एक स्वतंत्र और पारदर्शी प्रक्रिया है। कोई बाहरी दबाव नहीं है और न ही दिल्ली से कोई हस्तक्षेप।
मंत्री विजय चौधरी का यह बयान विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा:
“पूरी प्रक्रिया पटना से ही संचालित हो रही है, ना कि दिल्ली से।”
लोकतंत्र का तकाजा है जवाबदेही, लेकिन शोर नहीं
बिहार की मतदाता सूची को लेकर चल रही समीक्षा निश्चित तौर पर संवेदनशील मामला है। लेकिन इसे लेकर संसद और विधानसभा दोनों में जिस तरह का हंगामा हुआ, उससे आमजन के मुद्दे पीछे छूट गए हैं। अगर विपक्ष के पास ठोस आपत्तियां हैं तो उन्हें तथ्यों के साथ सामने आना चाहिए, न कि सिर्फ नारेबाजी के जरिए। बिहार में SIR को लेकर मचा सियासी शोर भले ही संसद और विधानसभा में हंगामे का कारण बन रहा हो, लेकिन चुनाव आयोग का रुख स्पष्ट है। यह एक नियमित प्रक्रिया है, और इसका उद्देश्य मतदाता सूची को पारदर्शी बनाना है। हालांकि, विपक्ष इस प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहा है, जो आने वाले दिनों में और बड़ा सियासी मुद्दा बन सकता है। देखना यह होगा कि आयोग आगे कैसे संतुलन बनाता है और क्या विपक्ष संतुष्ट होता है या आंदोलन की दिशा तेज़ करता है।