BY: Yoganand Shrivastva
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1 जून को ‘सेक्स वर्कर्स डे’ के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य दुनिया भर में यौनकर्मियों के अधिकारों और उनके प्रति समाज की सोच में बदलाव लाना है। इस दिन को मनाने की शुरुआत 1975 में फ्रांस से हुई थी, जब वहां के सेक्स वर्कर्स ने अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। यह दिन सिर्फ संवेदना का प्रतीक नहीं, बल्कि सामाजिक और कानूनी बहस का केंद्र भी है — खासकर जब यह सवाल उठता है कि क्या वेश्यावृत्ति एक अपराध है या अधिकार?
भारत में वेश्यावृत्ति का कानूनी दर्जा
भारत में वेश्यावृत्ति पूरी तरह गैरकानूनी नहीं है, लेकिन इससे जुड़ी कई गतिविधियाँ जैसे दलाली करना, कोठा चलाना, सार्वजनिक स्थानों पर ग्राहक ढूँढना आदि प्रतिबंधित हैं। यानी यदि कोई महिला या पुरुष अपनी मर्जी से यौन सेवा देता है, तो उसे कानून के तहत अपराध नहीं माना जाता। मगर जैसे ही इसमें दलाल या तस्करी का एंगल जुड़ता है, वह आपराधिक श्रेणी में आ जाता है।
अमेरिका में क्यों मानी जाती है यह आपराधिक गतिविधि
दूसरी ओर, अमेरिका के ज्यादातर राज्यों में प्रॉस्टिट्यूशन को पूरी तरह से अपराध माना जाता है। हालांकि नेवादा जैसे कुछ राज्यों में इसे लाइसेंस और नियंत्रण के साथ सीमित रूप से वैध किया गया है। अमेरिकी कानून इसे यौन शोषण, मानव तस्करी और अनैतिकता से जोड़कर देखता है।
दुनिया का सबसे पुराना पेशा — क्यों कहा जाता है?
ऐतिहासिक दस्तावेजों और पुरातात्विक प्रमाणों के अनुसार, वेश्यावृत्ति की मौजूदगी प्राचीन सभ्यताओं में भी देखी गई है — चाहे वह सुमेरियन सभ्यता हो, रोमन साम्राज्य हो या भारत का मौर्यकाल। उस समय इसे एक सेवा के रूप में देखा जाता था, और कई बार धार्मिक अनुष्ठानों से भी जोड़ा जाता था।
इस पेशे को “दुनिया का सबसे पुराना व्यवसाय” कहे जाने का कारण यही है कि यह सभ्यता के आरंभ से ही अस्तित्व में रहा है, और सामाजिक ढांचे में इसकी भूमिका, चाहे वह नकारात्मक हो या सकारात्मक, हमेशा बनी रही है।
सेक्स वर्कर्स के अधिकारों पर बहस ज़ारी
आज जब दुनिया मानवाधिकारों की बात कर रही है, तब सेक्स वर्कर्स के सम्मान, सुरक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे भी केंद्र में आने लगे हैं। भारत में भी सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यह स्पष्ट किया है कि यौनकर्मियों को भी संविधान द्वारा प्रदत्त समान अधिकार प्राप्त हैं।
निष्कर्ष: अपराध नहीं, सामाजिक यथार्थ
वेश्यावृत्ति को केवल अपराध या अनैतिकता के नजरिये से देखना एक संकीर्ण सोच है। यह पेशा आज भी लाखों महिलाओं, ट्रांसजेंडर और पुरुषों के लिए जीविका का स्रोत है। ऐसे में आवश्यकता है कि समाज इनके प्रति करुणा और समझ का दृष्टिकोण अपनाए, न कि पूर्वाग्रह और तिरस्कार का।





