BY: Yoganand Shrivastva
ग्वालियर – ग्वालियर पुलिस पर एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि पुलिस ने सर बी. एन. राव के समर्थक और अनुसूचित जाति (जाटव समाज) से आने वाले अधिवक्ता दिनेश सिंह के खिलाफ अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (SC/ST Act) के तहत बिना उचित जांच के एफआईआर दर्ज कर ली है।
यह मामला तब और अधिक संवेदनशील हो जाता है जब यह देखा जाए कि एफआईआर उसी अधिवक्ता पर दर्ज की गई है जो स्वयं अनुसूचित जाति से आते हैं और वर्षों से सामाजिक न्याय एवं वैचारिक स्वतंत्रता के पक्षधर माने जाते हैं। आरोप है कि यह कार्रवाई कथित तौर पर कुछ कट्टर ‘गैंग’ के दबाव में की गई है।

क्या पुलिस एक पक्षीय हो गई है?
सवाल उठता है कि क्या ग्वालियर पुलिस बिना प्राथमिक जांच के केवल आवेदन के आधार पर SC/ST एक्ट के तहत केस दर्ज कर रही है? वहीं दूसरी ओर आम नागरिकों को जब किसी अत्याचार की शिकायत करनी होती है, तो उनके आवेदन महीनों तक जांच की प्रतीक्षा में लटकाए जाते हैं।

सभी पक्षों से निष्पक्ष जांच की मांग
इस प्रकरण में निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की आवश्यकता है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि FIR कानूनी और तथ्यात्मक आधार पर दर्ज हुई या फिर किसी वैचारिक टकराव के चलते यह कार्यवाही की गई। यदि पुलिस ने नियमों का उल्लंघन किया है तो संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए, और यदि वाकई में अपराध हुआ है तो कानून सम्मत कार्रवाई होनी चाहिए – लेकिन न्याय का पलड़ा किसी एक विचारधारा की ओर झुकना खतरनाक संकेत हो सकता है।