BY: Yoganand Shrivastva
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में वैक्सीन अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिक आकाश यादव की सजा पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है। यादव को उनकी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दोषी ठहराते हुए निचली अदालत ने पांच साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। लेकिन अब हाईकोर्ट के निर्णय के बाद वह जेल में नहीं रहेंगे और अपना अनुसंधान कार्य जारी रख सकेंगे।
अदालत ने क्यों दी राहत?
न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की एकलपीठ ने यह स्पष्ट किया कि आकाश यादव देशहित में अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। वह वैक्सीन रिसर्च और डेवलपमेंट से सीधे तौर पर जुड़े हैं, और ऐसे में सजा के प्रभाव से उनका शोध बाधित हो रहा था। कोर्ट ने इसे “जनहित का मामला” मानते हुए उनकी दोषसिद्धि और सजा दोनों पर अस्थायी रोक लगा दी।
कौन हैं आकाश यादव?
आकाश यादव आईआईटी खड़गपुर से पीएचडी (बायोटेक्नोलॉजी) कर चुके हैं और वर्तमान में इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड में वरिष्ठ प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं। पिछले तीन वर्षों से वे वैक्सीन निर्माण से जुड़े अत्यावश्यक शोध कार्यों में सक्रिय हैं, जो देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।
मामला क्या है?
यह मामला उधमसिंह नगर जिले के रुद्रपुर का है, जहां स्थानीय अदालत ने उन्हें दहेज के आरोपों से मुक्त कर दिया, लेकिन पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी पाया। इसके चलते उन्हें पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई थी।
हाईकोर्ट में अपील और कानूनी प्रक्रिया
आकाश यादव ने इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। पहले उन्हें जमानत दी गई, और फिर उन्होंने सजा के अमल पर स्थगन की मांग करते हुए तर्क दिया कि उनका शोध कार्य समाज के लिए अत्यंत जरूरी है। इस दलील को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि अपील का अंतिम निपटारा होने तक उनकी दोषसिद्धि और सजा पर रोक बनी रहेगी।