BY: Yoganand Shrivastava
ग्वालियर | प्रदेश की सीएम हेल्पलाइन 181 पर एक व्यक्ति की 215 शिकायतों ने प्रशासन का ध्यान खींचा है। ग्वालियर के राजेश जाटव ने अब तक 215 शिकायतें दर्ज की हैं, जिससे वे जिले में शिकायतों की संख्या के लिहाज से शीर्ष पर हैं। शासन के निर्देश पर कलेक्टर ने 42 विभागों से आदतन और झूठी शिकायत करने वालों की सूची मांगी थी, जिनमें से अब तक 10 विभागों ने अपनी रिपोर्ट भेज दी है। 7 विभागों ने बताया कि उनके यहां ऐसे कोई शिकायतकर्ता नहीं मिले, जबकि 3 विभागों ने 5 लोगों के नाम चिन्हित किए हैं। बाकी 32 विभागों की रिपोर्ट का अभी इंतजार है।
कौन हैं आदतन शिकायतकर्ता?
नगर निगम, राजस्व और पुलिस विभाग में इस श्रेणी के शिकायतकर्ताओं की संख्या अपेक्षाकृत अधिक बताई जा रही है। वहीं डबरा के वृंदा सहाय कॉलेज से रामू साहू, डबरा मंडी से आनंद राठौर (गुना) और जनजाति विभाग से जबर सिंह, राम कृपाल सिंह व जुबेर शाक्य के नाम सूची में शामिल किए गए हैं।
कई विभागों में नहीं मिला एक भी आदतन शिकायतकर्ता
जन अभियान परिषद, सड़क विकास विभाग, कमांड एरिया, मंडी के भितरवार दफ्तर, माधव कॉलेज और माधव संगीत विश्वविद्यालय जैसे विभागों में ऐसे लोगों का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला।
‘भ्रष्टाचार हो रहा है, तो शिकायत करना गलत नहीं’
सूची में शामिल जबर सिंह, जो जनजाति विभाग से दो साल पहले सेवानिवृत्त हुए हैं, ने कहा कि उन्हें अब तक सेवानिवृत्ति लाभ नहीं मिला है। उन्होंने कहा—
“अधिकारियों की नियुक्तियों में अनियमितता और छात्रावास की जमीन पर अतिक्रमण के खिलाफ मैंने शिकायतें कीं। अगर भ्रष्टाचार की शिकायत करना अपराध है, तो वे मेरा नाम सूची में डालते रहें।”
77 वर्षीय आनंद राठौर ने बताया कि उन्होंने मंडी से जुड़ी करीब 150 शिकायतें दर्ज की हैं। उनका उद्देश्य था कि हम्मालों को मजदूरी सीधे मंडी से मिले, ताकि किसानों के साथ धोखाधड़ी रोकी जा सके।
“मैं 60 साल से जनहित में लड़ाई लड़ रहा हूं। ये शिकायतें व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि व्यवस्था सुधारने के लिए हैं।”
वहीं रामू साहू ने कहा कि उन्होंने पिछले कई महीनों से कोई शिकायत नहीं की है।
आगे क्या होगा?
सभी विभागों की अंतिम रिपोर्ट तैयार होने के बाद सूचियां भोपाल मुख्यालय को भेजी जाएंगी। इसके आधार पर शासन यह तय करेगा कि कौन-सी शिकायतें वास्तविक हैं और किन्हें “आदतन या झूठी” श्रेणी में रखा जाए।यह मामला इस ओर भी इशारा करता है कि शिकायतों की अधिकता के पीछे कई बार जनहित की गंभीर समस्याएं भी छिपी हो सकती हैं, जिन्हें केवल आंकड़ों के आधार पर नजरअंदाज करना उचित नहीं होगा।