Mohit Jain
भारतीय विज्ञापन जगत के दिग्गज और पद्मश्री सम्मानित क्रिएटिव डायरेक्टर पीयूष पांडे का 70 साल की उम्र में मुंबई में निधन हो गया। उन्होंने ऐसे विज्ञापन बनाए, जिन्होंने न सिर्फ ब्रांड को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, बल्कि लोगों के दिलों में भावनाओं की गूंज भी छोड़ी।
सादगी और भारतीयता की पहचान बने पीयूष पांडे

जयपुर में जन्मे पीयूष पांडे भारतीय विज्ञापन की सादगी और मौलिकता के प्रतीक माने जाते हैं। उनके बनाए विज्ञापनों में भारत की मिट्टी की खुशबू, लोगों की बोली और भावनाएं झलकती थीं। उन्होंने ‘फेविकॉल का ट्रक वाला विज्ञापन’, ‘कैडबरी डेयरी मिल्क – कुछ खास है जिंदगी में’, ‘एशियन पेंट्स – हर घर कुछ कहता है’ और ‘हच का पग वाला विज्ञापन’ जैसे कैंपेन तैयार किए, जो आज भी लोगों की यादों में बसे हैं।
राजनीतिक और सामाजिक अभियानों में भी छोड़ी गहरी छाप
विज्ञापन की दुनिया में ही नहीं, राजनीति और समाज से जुड़े अभियानों में भी पीयूष पांडे का प्रभाव देखा गया। उन्होंने 2014 में भाजपा का ऐतिहासिक स्लोगन ‘अब की बार, मोदी सरकार’ लिखा, जो एक जनआंदोलन बन गया।
इसी तरह, स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनका ‘दो बूंदें जिंदगी की’ अभियान पोलियो उन्मूलन की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ।

क्रिएटिविटी के पर्याय और नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा
पीयूष पांडे को उनके सहयोगी एक ऐसे गुरु के रूप में याद करते हैं, जिन्होंने कहा था “विज्ञापन केवल मार्केट से नहीं, दिल से बनाओ।” उन्होंने भारतीय विज्ञापन को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई और युवा क्रिएटिव्स के लिए एक नई राह खोली।
उनके बनाए स्लोगन और जिंगल्स भारतीय संस्कृति का हिस्सा बन चुके हैं। भले ही अब पीयूष पांडे इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानियाँ और क्रिएटिविटी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।





