रिपोर्टर: विष्णु गौतम
दुर्ग: शासकीयकरण की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे प्रदेश पंचायत सचिव संघ के सदस्यों ने सरकार के आदेश का कड़ा विरोध किया। सरकार द्वारा काम पर वापस लौटने का निर्देश जारी किए जाने के बाद पंचायत सचिवों में आक्रोश फैल गया। उन्होंने आदेश की प्रति को जलाकर प्रदर्शन किया और स्पष्ट कर दिया कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होती, वे काम पर नहीं लौटेंगे।
शासकीयकरण की मांग को लेकर चल रही हड़ताल
प्रदेशभर के पंचायत सचिव अपनी एक सूत्रीय मांग को लेकर 17 मार्च से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे हैं। उनकी मुख्य मांग शासकीयकरण है, जिसे लेकर उन्होंने राज्य सरकार से कई बार अनुरोध किया है। उनका कहना है कि मोदी सरकार की गारंटी के तहत पंचायत सचिवों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलना चाहिए। लेकिन, सरकार इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है।
सरकार का आदेश और सचिवों का गुस्सा
21 मार्च को शासन की ओर से एक आदेश जारी किया गया, जिसमें 24 घंटे के भीतर पंचायत सचिवों को काम पर लौटने के निर्देश दिए गए। इस आदेश से नाराज सचिवों ने प्रतिक्रिया स्वरूप आदेश की प्रति जला दी और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। उन्होंने कहा कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होती, तब तक वे हड़ताल जारी रखेंगे।
सचिवों की नाराजगी और सवाल
प्रदर्शन के दौरान निमेष भोयर ने कहा,
“हम 5 दिन से हड़ताल पर बैठे हैं और सरकार ने इतनी जल्दी हमें काम पर लौटने का आदेश दे दिया। अगर सरकार इतनी तेजी से यह आदेश जारी कर सकती है, तो हमारी शासकीयकरण की मांग पर महीनों से विचार क्यों नहीं किया जा रहा?”
सरकार के खिलाफ कड़ा रुख
पंचायत सचिवों का कहना है कि अगर उनकी मांग जल्द पूरी नहीं की गई तो वे आंदोलन को और उग्र करेंगे। उन्होंने सरकार को चेतावनी दी है कि जब तक उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता, तब तक वे हड़ताल खत्म नहीं करेंगे और किसी भी हाल में काम पर वापस नहीं लौटेंगे।
क्या होगा आगे?
सरकार और पंचायत सचिवों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। अब यह देखना होगा कि प्रशासन इस स्थिति को कैसे संभालता है और पंचायत सचिवों की मांग पर क्या फैसला लेता है।
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