नई दिल्ली: क्या पृथ्वी के बाहर भी जीवन संभव है? इस सवाल को एक नई दिशा दी है भारतीय मूल के खगोल वैज्ञानिक निकु मधुसूदन ने, जिन्होंने 120 प्रकाश वर्ष दूर स्थित ग्रह K2-18b पर जीवन के संकेत खोजे हैं। यह खोज अब तक के सबसे मजबूत संकेतों में से एक मानी जा रही है, और इसके पीछे नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिक हैं IIT-BHU, वाराणसी के पूर्व छात्र निकु मधुसूदन।
1980 में भारत में जन्मे निकु ने विज्ञान की अपनी यात्रा IIT-BHU से शुरू की। इसके बाद उन्होंने MIT (मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी), अमेरिका से मास्टर्स और पीएचडी की डिग्री हासिल की। आज वे कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं और दुनिया के अग्रणी खगोल वैज्ञानिकों में गिने जाते हैं।
उनकी टीम ने James Webb Space Telescope (JWST) की मदद से यह ऐतिहासिक खोज की। उन्होंने जिस ग्रह पर जीवन के संकेत खोजे हैं, वह एक एक्सोप्लैनेट है — यानी ऐसा ग्रह जो हमारे सौरमंडल का हिस्सा नहीं है, बल्कि किसी दूर के तारे की परिक्रमा करता है।
K2-18b पर जैविक गतिविधि के प्रमाणों ने वैज्ञानिक समुदाय में हलचल मचा दी है। यह ग्रह अपने वातावरण में ऐसे तत्व दर्शा रहा है जो जीवन की उपस्थिति का संकेत हो सकते हैं, जैसे कुछ विशेष गैसें और रासायनिक संरचनाएं।
यह खोज न केवल अंतरिक्ष विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि मानवता के लिए एक नई उम्मीद की तरह भी देखी जा रही है। निकु मधुसूदन की यह उपलब्धि भारत के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है कि सीमाओं के परे जाकर भी विज्ञान में उत्कृष्टता हासिल की जा सकती है।