BY: Yoganand Shrivastva
भोपाल की गलियों में आज ‘या हुसैन’ की सदाएं गूंज उठीं। मोहर्रम के अवसर पर शहर भर में मातमी जुलूस निकाला गया, जिसमें समुदाय के हजारों लोग शामिल हुए। इमामबाड़ों से लेकर करबला मैदान तक हर रास्ता शोक, श्रद्धा और करबला के वीरों की याद में डूबा रहा।
मोहर्रम का महत्व और आशूरा की परंपरा
इस्लामी वर्ष का पहला महीना मोहर्रम शहादत और बलिदान की याद दिलाता है। खासतौर पर 10वीं तारीख को ‘यौमे आशूरा’ कहा जाता है। इसी दिन हजरत इमाम हुसैन ने कर्बला के मैदान में अपने 72 साथियों के साथ अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करते हुए शहादत दी थी। यह दिन इस बलिदान की याद में मातम, तकरीरें और जुलूस के ज़रिए मनाया जाता है।
भोपाल में जुलूस की भव्यता
राजधानी भोपाल में मोहर्रम के अवसर पर बड़े स्तर पर मातमी जुलूस निकाले गए। मुख्य जुलूस की शुरुआत फतेहगढ़ से हुई, जिसमें ताजिए, बुर्राक, परचम, सवारियां, अखाड़े, और ढोल-ताशों की गूंज ने माहौल को गमगीन लेकिन अनुशासित बना दिया।
इस जुलूस का रुख वीआईपी रोड के करबला मैदान की ओर था, जहाँ इसका समापन हुआ। इस दौरान मार्ग पर श्रद्धालु मातम करते दिखे, ‘या हुसैन’ की सदाएं गूंजती रहीं।
भोपाल के अन्य इलाकों से भी उठे जुलूस
शहर के विभिन्न हिस्सों — इमामबाड़ा, रेलवे स्टेशन, काजी कैंप, भानपुर, गांधी नगर, आरिफ नगर, छोला, नारियल खेड़ा, जेपी नगर और करोड़ क्षेत्र से चार प्रमुख जुलूस निकले। ये सभी सैफिया कॉलेज चौराहे पर आकर एकत्रित हुए।
वहां से पूरा कारवां मोहम्मदी चौक, पीरगेट, रॉयल मार्केट, ताजुल मसाजिद होते हुए शहीद नगर के करबला मैदान तक पहुँचा, जहाँ देर शाम तक जुलूस का समापन किया गया।
अंतिम पड़ाव: करबला मैदान
करबला मैदान में पहुँचा जुलूस हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की याद में समर्पित रहा। वहाँ तकरीरें हुईं, श्रद्धालुओं ने ताजिए सुपुर्दे खाक किए और करबला की कहानी सुनते हुए शांति और भाईचारे का संदेश दिया।
प्रशासन की सतर्कता
पूरे आयोजन के दौरान सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम रहे। पुलिस बल ने ट्रैफिक और भीड़ नियंत्रण में अहम भूमिका निभाई, ताकि श्रद्धालु बिना किसी व्यवधान के जुलूस में भाग ले सकें।