खालापुर तहसील में पुराने मुंबई-पुणे राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे नए खुले सीएनजी गैस पंप के सामने पहाडी पर आग लग गई। कुछ ही देर में आग तेजी से फैल गई और कुछ ही पलों में भयावह रूप धारण कर लिया। आग का प्रचंड रूप देखकर शरीर कांपने लगा और पैरों तले की जमीन खिसकने लगी। इस आग से पहाड़ी पेड़ों, जंगली झाड़ियों, औषधीय वन संसाधनों के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण पौधों, सूक्ष्मजीवों आदि को भी व्यापक नुकसान पहुंचा।
इस बात पर अफसोस है कि वनों की कटाई और आग ने सुंदर पहाड़ों पर काली चादर फैला दी है, जिससे वे काले नजर आ रहे है। इस आग ने भारी मात्रा में वन संसाधनों को नष्ट कर दिया है और माना जा रहा है कि इससे वन्यजीवों का जीवन भी खतरे में पड गया है। दूर से पूरा पहाड जलता हुआ दिखाई दे रहा था। साथ ही नागरिकों की मांग है कि वन विभाग आग के कारणों की जांच करे तथा आग लगाने वाले समाजकंटकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ निजी मालिक पिछले कुछ दिनों से जेसीबी मशीनों का उपयोग करके पहाड में सक्रिय रूप से गड्ढे खोद रहे है। ऐसी भी चर्चा है कि पर्वतीय क्षेत्र की प्राकृतिक जलधाराओं को अवरुद्ध किया जा रहा है। क्या इन पहाड़ों को काटने और प्राकृतिक नालों को अवरुद्ध करने के लिए कोई नियम नहीं हैं? यह सवाल ग्रामीणों ने उठाया है।
सर्दियों में हर साल आग लगने की घटनाएं होती है। हालांकि वन्यजीव प्रेमी, पर्यावरणविद और मीडिया वर्षों से सरकार से जंगलों को आग से बचाने की गुहार लगा रहे है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार स्थिति की गंभीरता को नहीं समझ रही है। हर साल जंगलों को जंगली आग के कारण भारी नुकसान होता है। क्या जंगल में आग हर साल लगती है या लगाई जाती है, यह शोध का विषय नही है। लेकिन यह सच है कि इसके कारण बहुत सारी जैव विविधता नष्ट हो रही है। ये आग वन्यजीव और जैव विविधता जैसे पक्षी, जानवर, सरीसृप, पेड, झाड़ियाँ और औषधीय पौधे नष्ट कर देती है। खालापुर तहसील में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन है। हरे-भरे पहाड़ों और घाटियों से घिरा यह क्षेत्र मानसून के मौसम में हमेशा पर्यटकों को आकर्षित करता है।
हालाँकि, जब जनवरी-फरवरी का महीना आता है, तो तहसील के पहाड़ों पर कई जगहों पर जंगल की आग भड़कती दिखाई देती है। इससे वन संसाधनों को भारी नुकसान हो रहा है। नागरिक मांग कर रहे हैं कि वन विभाग बिना कोई कारण बताए ठोस कदम उठाए और जंगल में लगने वाली आग को रोकने के लिए आवश्यक उपाय करे। पहाड पर अचानक आग लग गई। पहाड पर सूखी घास और बहती हवा के कारण आग तेजी से फैल गई। आग सडक से भी दिखाई दे रही थी। यद्यापि रात के अंधेरे में दूर से जलता हुआ पहाड सुंदर लग रहा था, लेकिन पहाड पर लगे पेड़ों और झाड़ियों के साथ-साथ अन्य छोटे सरीसृपों का जलना पर्यावरणविदों को परेशान कर रहा था। तहसील में आग लगने के विभिन्न कारण बताए जाते है। जंगल में आग बड़े पेड़ों के गिरने से उत्पन्न घर्षण, आकाश से बिजली गिरने, अत्यधिक गर्मी के कारण सूखी घास या पत्तियों के जलने, तथा घास या पत्तियों के सड़ने के दौरान मीथेन जैसी ज्वलनशील गैसों के उत्पादन के कारण लग सकती है। ऐसा कहा जाता है कि घने जंगलों में पेड़ों की शाखाएं आपस में रगड़ने से भी चिंगारी निकलती है और आग लग जाती है। लेकिन वास्तव में आग कौन लगाता है और क्यों ? प्रकृति प्रेमियों की मांग है कि आग लगाने वालों का पता लगाया जाए और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
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