BY: MOHIT JAIN
अक्षय कुमार और अरशद वारसी की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘जॉली एलएलबी 3’ आखिरकार थिएटर में रिलीज हो चुकी है। लंबे इंतज़ार के बाद आई इस फिल्म ने दर्शकों को हंसाने के साथ-साथ सोचने पर मजबूर भी किया है। अगर आप वीकेंड पर ये फिल्म देखने का प्लान बना रहे हैं, तो पहले ये रिव्यू पढ़ लीजिए।
कहानी: किसानों की जंग और अदालत का रंग

फिल्म की कहानी हमें 2011 के राजस्थान के बीकानेर जिले के एक छोटे से गांव में ले जाती है। यहां एक बड़े उद्योगपति हरिभाई खेतान (गजराज राव) अपना प्रोजेक्ट शुरू करना चाहता है, जिसके लिए उसे किसानों की जमीन चाहिए।
- कुछ किसान अपनी पुश्तैनी जमीन छोड़ने से इनकार करते हैं।
- इसी संघर्ष के बीच एक किसान आत्महत्या कर लेता है।
- उसकी विधवा जानकी न्याय की लड़ाई लड़ने का फैसला करती है।
अब इस जंग में कौन-सा जॉली (अक्षय या अरशद) उसके साथ खड़ा होता है और कौन खिलाफ – यही फिल्म का असली ट्विस्ट है।
कॉमेडी और इमोशन का परफेक्ट मिक्स
डायरेक्टर सुभाष कपूर ने गंभीर मुद्दे को कॉमेडी और इमोशन के तड़के के साथ पेश किया है। फिल्म में कई ऐसे डायलॉग हैं जो दिल छू जाते हैं, जैसे –
“आज किसानों के लिए कानून वो लोग बना रहे हैं जिन्हें पालक और सरसो में फर्क नहीं पता।”
फिल्म हंसाती भी है, रुलाती भी है और आखिर में एक गहरी सोच छोड़ जाती है।
निर्देशन: सुभाष कपूर का कमाल
सुभाष कपूर ने एक बार फिर साबित किया कि वो समाजिक मुद्दों पर असरदार सिनेमा बनाने में माहिर हैं।
- फिल्म सिर्फ अक्षय कुमार तक सीमित नहीं है, बल्कि हर किरदार को बराबर मौका दिया गया है।
- कोर्टरूम ड्रामा और इमोशनल सीन दोनों ही दमदार हैं।
- डायलॉग और स्क्रीनप्ले फिल्म की जान हैं।
एक्टिंग: हर कलाकार ने निभाई खास भूमिका

- अक्षय कुमार: अपनी पुरानी मुस्कान और अंदाज़ के साथ कोर्टरूम में हंसी भी लाते हैं और गंभीरता भी बनाए रखते हैं।
- अरशद वारसी: सहज और नेचुरल परफॉर्मेंस, उनके वन-लाइनर्स और सटायर कमाल कर जाते हैं।
- सीमा बिस्वास: विधवा किसान के दर्द को आंखों से बखूबी दिखाया।
- गजराज राव: पहली बार खलनायक के रूप में और बेहद प्रभावशाली।
- सौरभ शुक्ला (जस्टिस त्रिपाठी): अपनी टाइमिंग और हाजिरजवाबी से पूरी फिल्म में चमकते हैं।
फिल्म का संदेश: आईना दिखाता सिनेमा
‘जॉली एलएलबी 3’ सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज की सच्चाई का आईना है।
- फिल्म दिखाती है कि विकास के नाम पर कैसे किसानों की जमीनें छीनी जाती हैं।
- ये याद दिलाती है कि गांव खाली होते जा रहे हैं और किसान संघर्ष कर रहे हैं।
- कहानी एक सच्ची घटना से प्रेरित है, इसलिए असर और भी गहरा होता है।
देखें या न देखें?
अगर आप सिर्फ हल्की-फुल्की कॉमेडी देखना चाहते हैं, तो ये फिल्म उससे कहीं ज्यादा है। हां, कोर्टरूम ड्रामा थोड़ा और होता और महिला किरदारों को ज्यादा स्पेस मिलता तो और बेहतर होता। लेकिन इन छोटी कमियों को नजरअंदाज़ किया जा सकता है।
कुल मिलाकर, ‘जॉली एलएलबी 3’ एक ऐसी फिल्म है जिसे मिस नहीं करना चाहिए। ये फिल्म हंसाती भी है, सोचने पर मजबूर भी करती है और हमें बताती है कि आम आदमी की आवाज़ की भी कीमत होती है।#
‘जॉली एलएलबी 3’ सिर्फ एक फिल्म नहीं बल्कि एक अनुभव है। ये हमें हंसाते-हंसाते हमारी आंखें खोलती है और याद दिलाती है कि असली विकास तभी है जब किसानों की जमीन और हक सुरक्षित रहें।





