BY: VIJAY NANDAN
दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु नदी पर नई जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर तेज़ी से कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। इन परियोजनाओं से लगभग 12 गीगावाट (GW) अतिरिक्त बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए अब तकनीकी और आर्थिक व्यवहार्यता (फिजिबिलिटी स्टडी) की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। फिलहाल सिंधु नदी पर जो परियोजनाएं चल रही हैं, उनसे 2.5 GW बिजली मिल रही है, लेकिन सिंधु जल संधि की कुछ शर्तों के चलते इन परियोजनाओं की रफ्तार धीमी पड़ गई थी।
गृह मंत्रालय की बैठक के बाद तेज़ी से फैसले
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में 25 अप्रैल को हुई उच्च स्तरीय बैठक में इस दिशा में अहम निर्णय लिए गए। इसके बाद जल शक्ति मंत्रालय और नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन (NHPC) के अधिकारियों को निर्माणाधीन परियोजनाओं को शीघ्र पूरा करने के निर्देश दिए गए। भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 में हुई सिंधु जल संधि को फिलहाल निलंबित करने का निर्णय भी इसी बैठक के बाद लिया। यह कदम उन आतंकवादी हमलों के विरोध में उठाया गया है, जिनके पीछे भारत पाकिस्तान समर्थित संगठनों को ज़िम्मेदार मानता है।

चिनाब नदी पर सबसे बड़ी परियोजना की तैयारी
नई जलविद्युत योजनाओं में सावलकोट प्रोजेक्ट प्रमुख है, जो जम्मू और कश्मीर के रामबन और उधमपुर जिलों में चिनाब नदी पर प्रस्तावित है। यह सबसे बड़ी परियोजना मानी जा रही है, जिसकी तकनीकी जरूरतों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जा रहा है।
ये प्रमुख परियोजनाएं होंगी शामिल:
- सावलकोट – 1,856 मेगावाट
- पाकल दुल – 1,000 मेगावाट
- रतले – 850 मेगावाट
- बुरसर – 800 मेगावाट
- किरू – 624 मेगावाट
- किर्थई-1 और किर्थई-2 – कुल 1,320 मेगावाट
इन सभी परियोजनाओं को राष्ट्रीय बिजली ग्रिड से जोड़ा जाएगा, जिससे इनसे बनने वाली बिजली देश के अन्य हिस्सों में भी उपयोग की जा सकेगी।
सिंधु जल संधि पर रोक लगाने का उद्देश्य
सरकार का यह मानना है कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करता रहेगा, तब तक भारत को उससे अपने संबंधों की समीक्षा करते रहना होगा। सिंधु जल समझौते को रोकना इसी नीति का हिस्सा है। केंद्र सरकार ने साफ किया है कि पाकिस्तान को तब तक कोई रियायत नहीं दी जाएगी जब तक वह विश्वसनीय और स्थायी रूप से आतंकवाद से दूरी नहीं बनाता।
भारत अब सिंधु जल समझौते की शर्तों पर दोबारा विचार करने की मांग कर रहा है। भारत का कहना है कि कश्मीर में नदियों के जल स्तर में गिरावट आई है, जो पर्यावरणीय बदलावों और नदी बेसिन में आए प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण है। एक अमेरिकी थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार, सिंधु बेसिन में ताजे पानी का प्रवाह घटता जा रहा है, जिससे यह क्षेत्र प्रभावित हो रहा है।
पाकिस्तान की आपत्ति और भारत का जवाब
पाकिस्तान भारत की कई परियोजनाओं—विशेष रूप से रतले और किशनगंगा बांध—पर आपत्ति जताता रहा है। उसने अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की भी मांग की है और आरोप लगाया है कि ये परियोजनाएं सिंधु जल संधि का उल्लंघन करती हैं। पाकिस्तान ने इन मुद्दों को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में उठाया है, लेकिन भारत ने इन दावों को सिरे से खारिज कर दिया है।
भारत ने 2017 में किशनगंगा बांध का निर्माण पूरा किया था और 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन किया। पाकिस्तान की आपत्तियों के चलते इस परियोजना का काम कई बार रोका भी गया, जिनमें 2011 का समय भी शामिल है।
केंद्रीय मंत्रियों के बीच लगातार बैठकें
30 अप्रैल को जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने गृहमंत्री अमित शाह से सप्ताह में दूसरी बार मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने सिंधु नदी प्रणाली पर बन रहे बांधों की प्रगति और जलाशयों की स्थिति की जानकारी दी। साथ ही, जल-वितरण समझौते को निलंबित करने से जुड़े कानूनी पहलुओं पर भी चर्चा हुई।