BY: VIJAY NANDAN
भारत और पाकिस्तान के बीच 7 मई से शुरू हुआ संघर्ष शनिवार को अचानक थम गया, जिससे कई सवाल उठने लगे हैं। इस दौरान भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत आक्रामक कार्रवाई की, जबकि पाकिस्तान ने भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश की, लेकिन भारत की मजबूत सुरक्षा प्रणाली ने उसकी हर कोशिश को विफल कर दिया।
शनिवार शाम घोषित युद्धविराम के पीछे अमेरिका की भूमिका को लेकर भी चर्चा तेज हो गई है। अमेरिकी मीडिया नेटवर्क सीएनएन ने इस मुद्दे पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें दावा किया गया है कि वॉशिंगटन ने इस युद्ध को रोकने में अहम भूमिका निभाई।
पहले पल्ला झाड़ा, फिर किया हस्तक्षेप
शुरुआत में अमेरिका ने दोनों देशों के टकराव पर यह कहकर किनारा कर लिया था कि “यह हमारा मामला नहीं है”। लेकिन बाद में उसने दावा किया कि उसे खुफिया एजेंसियों से यह जानकारी मिली थी कि शनिवार रात भारत और पाकिस्तान के बीच गंभीर सैन्य टकराव हो सकता है। अमेरिका के अनुसार, दोनों देशों के बीच सीधा संवाद नहीं हो रहा था, जिससे हालात और भी खराब हो सकते थे।
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने अंदेशा जताया था कि सप्ताहांत पर युद्ध जैसे हालात बन सकते हैं। उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और विदेश मंत्री मार्को रुबियो इस स्थिति पर नजर रखे हुए थे। वेंस ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत कर दोनों पक्षों को तनाव कम करने और युद्धविराम की दिशा में आगे बढ़ने के लिए राजी किया।

रावलपिंडी पर ड्रोन हमला और परमाणु खतरा
खबरों के अनुसार, भारत द्वारा पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित नूर खान एयरबेस पर ड्रोन हमला किया गया था। यह इलाका पाकिस्तान की परमाणु कमान के करीब है और इसे बेहद संवेदनशील माना जाता है। एक पूर्व अमेरिकी अधिकारी के अनुसार, यह हमला पाकिस्तान की परमाणु नीति को चुनौती देने जैसा था, जिससे परमाणु युद्ध का खतरा मंडराने लगा था।
अमेरिका की कूटनीति और मोदी से संवाद
शुक्रवार दोपहर (अमेरिकी समयानुसार) उपराष्ट्रपति वेंस ने प्रधानमंत्री मोदी से सीधे बातचीत की और पाकिस्तान से वार्ता की संभावनाओं पर चर्चा की। उन्होंने तनाव को कम करने के लिए “ऑफ-रैंप” यानी एक समाधान प्रस्तुत किया, जिसे अमेरिका के अनुसार पाकिस्तान मानने को तैयार था। वेंस और रुबियो ने दोनों देशों के उच्च अधिकारियों से पूरी रात बातचीत की, ताकि कोई बड़ा टकराव न हो। ट्रंप प्रशासन ने वार्ता के प्रारूप में भले भाग न लिया हो, लेकिन दोनों पक्षों को बातचीत की टेबल पर लाने में उनकी बड़ी भूमिका रही।
युद्धविराम की घोषणा और अमेरिका की क्रेडिट लेने की कोशिश
शनिवार को भारत और पाकिस्तान ने तत्काल प्रभाव से संघर्षविराम की घोषणा कर दी। इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस पहल का श्रेय अपने प्रशासन को देने की कोशिश की। हालांकि भारत ने स्पष्ट रूप से तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उसने यह संकेत जरूर दिया कि यह युद्धविराम दोनों देशों के बीच आपसी समझौते का परिणाम था। दूसरी ओर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने अमेरिका की भूमिका के लिए उसका सार्वजनिक रूप से धन्यवाद किया।
युद्धविराम के बाद भी पाकिस्तान की हरकत
सीजफायर की घोषणा के महज तीन घंटे बाद ही पाकिस्तान ने फिर से नापाक हरकत करते हुए जम्मू-कश्मीर में वैष्णो देवी के पास ड्रोन हमला किया। हालांकि भारतीय सुरक्षा बलों ने तुरंत और सख्त जवाब देकर इस प्रयास को नाकाम कर दिया।
अमेरिका का बदला रुख
गुरुवार को फॉक्स न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में वेंस ने कहा था कि यह भारत-पाकिस्तान का आंतरिक मामला है और अमेरिका इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा। लेकिन जैसे ही परमाणु युद्ध की संभावना सामने आई, अमेरिका की नीति में बदलाव आया और उसने सक्रिय भूमिका निभाई। वेंस ने हाल ही में भारत दौरे के दौरान मोदी से व्यक्तिगत मुलाकात भी की थी, और अमेरिकी प्रशासन को भरोसा था कि यह व्यक्तिगत रिश्ता इस संकट को सुलझाने में मददगार साबित होगा।
भारत और पाकिस्तान के बीच अचानक हुआ युद्धविराम सिर्फ दोनों देशों की रणनीतिक समझदारी का परिणाम नहीं था, बल्कि अमेरिका की खुफिया रिपोर्ट, कूटनीतिक बातचीत और मध्यस्थता ने भी अहम भूमिका निभाई। हालांकि, सीजफायर के बाद पाकिस्तान की एक और कायराना हरकत ने यह जता दिया कि भरोसे से ज्यादा सतर्कता जरूरी है।