अनिरुद्ध पांडेय से प्रेमानंद जी महाराज तक: जन्मदिन पर एक प्रेरक यात्रा
प्रेमानंद जी महाराज, जिनका जन्म नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय था, एक ऐसे संत हैं जिनकी आध्यात्मिक यात्रा हर किसी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनका जन्म 30 मार्च 1972 को उत्तर प्रदेश के कानपुर के पास सरसौल ब्लॉक के अखरी गाँव में एक साधारण और धार्मिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। हर साल 30 मार्च को उनके जन्मदिन के अवसर पर वृंदावन में भव्य उत्सव का आयोजन होता है, जो उनके जीवन की इस असाधारण यात्रा को याद करने का एक मौका देता है। यह लेख उनके जीवन के उस सफर को उजागर करता है, जो एक छोटे से गाँव के बालक से शुरू होकर वृंदावन के प्रसिद्ध संत तक पहुँचा।

बचपन और आध्यात्मिक जागृति
अनिरुद्ध का बचपन बेहद सात्विक और भक्ति से भरे माहौल में बीता। उनके पिता शंभू पांडेय और माता रमा देवी दोनों ही संतों का सम्मान करने वाले और भक्ति में लीन रहने वाले व्यक्ति थे। उनके दादाजी भी संन्यासी थे, जिससे घर में आध्यात्मिकता की गहरी छाप थी। छोटी उम्र से ही अनिरुद्ध के मन में जीवन के गहरे सवाल उठने लगे। वह सोचते थे कि माता-पिता और सांसारिक रिश्ते स्थायी नहीं हैं, तो फिर सच्चा सुख कहाँ है? यह विचार उनके मन में एक आध्यात्मिक जिज्ञासा जगा गया, जिसने आगे चलकर उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी।
13 साल की उम्र में, जब लोग अपने भविष्य के सपने संजोते हैं, अनिरुद्ध ने एक साहसिक कदम उठाया। उन्होंने घर छोड़ दिया और सच्चाई की खोज में निकल पड़े। यह वह पल था जब एक साधारण बालक का सफर एक संन्यासी की ओर बढ़ने लगा।
संन्यास और वृंदावन की ओर कदम
घर छोड़ने के बाद अनिरुद्ध ने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य और संन्यास का मार्ग अपनाया। संन्यास लेने के बाद उन्हें आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी और फिर स्वामी आनंदाश्रम नाम मिला। शुरूआती दिनों में उन्होंने वाराणसी में गंगा के तट पर कठिन तपस्या की। वहाँ वे दिन में तीन बार गंगा स्नान करते थे और भिक्षा पर निर्भर रहते थे। कई बार उन्हें भोजन नहीं मिलता था, फिर भी उनका मन भक्ति और ध्यान में डूबा रहता था।
एक दिन वाराणसी में एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करते समय एक संत ने उन्हें वृंदावन में रासलीला देखने का आग्रह किया। पहले तो वे हिचकिचाए, लेकिन बाद में इसे ईश्वरीय संकेत मानकर वृंदावन की ओर रुख किया। यहाँ पहुँचकर उनकी जिंदगी में नया मोड़ आया। राधा-कृष्ण की भक्ति और रासलीला के दर्शन ने उनके हृदय को पूरी तरह बदल दिया।
राधावल्लभी संप्रदाय और गुरु की शरण
वृंदावन में प्रेमानंद जी महाराज ने राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षा ली। पहले उन्हें श्री हित मोहित माराल गोस्वामी जी ने शरणागति मंत्र दिया, और फिर उनके वर्तमान गुरु श्री हित गौरांगी शरण जी महाराज ने उन्हें निज मंत्र प्रदान किया। इस दीक्षा ने उन्हें सहचारी भाव और नित्य विहार रस में डुबो दिया, जिसके बाद वे रसिक संतों की श्रेणी में शामिल हो गए। अपने गुरु की सेवा में उन्होंने दस साल से अधिक समय बिताया, जिसने उनकी भक्ति को और गहरा किया।
जन्मदिन का उत्सव: 30 मार्च 2025
प्रेमानंद जी महाराज का जन्मदिन हर साल 30 मार्च को वृंदावन में उनके आश्रम, श्री हित राधा केली कुंज में धूमधाम से मनाया जाता है। 2025 में यह उत्सव 25 मार्च से शुरू होकर 30 मार्च तक चलेगा। इस दौरान भक्तों के लिए सत्संग, भजन-कीर्तन, और राधा-कृष्ण की लीला का मंचन होता है। उनके जन्मदिन पर लाखों भक्त वृंदावन पहुँचते हैं, ताकि उनकी एक झलक पा सकें और उनके प्रवचनों से जीवन को नई दिशा दे सकें।
उनका मानना है कि जन्मदिन को सांसारिक तरीके से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से मनाना चाहिए। वे भक्तों को सलाह देते हैं कि इस दिन वे राधा रानी का नाम जपें, गरीबों की सेवा करें और भक्ति में लीन रहें।
आज का प्रभाव
आज प्रेमानंद जी महाराज सिर्फ एक संत नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक क्रांति के प्रतीक हैं। उनकी शिक्षाएँ—गुरु का महत्व, ब्रह्मचर्य का पालन, और राधा-कृष्ण की भक्ति—लाखों लोगों के जीवन को बदल रही हैं। सोशल मीडिया पर उनके भजन मार्ग चैनल के जरिए करोड़ों लोग उनसे जुड़े हैं। 30 मार्च को उनका जन्मदिन न केवल उनके जीवन का उत्सव है, बल्कि उस यात्रा का सम्मान है जो एक साधारण अनिरुद्ध से शुरू होकर प्रेमानंद जी महाराज तक पहुँची।
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची खोज और समर्पण से कोई भी अपने जीवन को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर सकता है। प्रेमानंद जी महाराज का जन्मदिन हर साल हमें यह याद दिलाता है कि भक्ति ही जीवन का असली मोल है।
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