Dhaka News: बांग्लादेश की राजनीति में 17 साल बाद एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के पुत्र और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के वरिष्ठ नेता तारिक रहमान की स्वदेश वापसी ने देश की सियासत में नई हलचल पैदा कर दी है। चुनाव से ठीक पहले उनकी वापसी को बीएनपी के लिए संजीवनी माना जा रहा है, वहीं इससे इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी की रणनीति पर असर पड़ने की संभावना जताई जा रही है।
Dhaka News: ढाका एयरपोर्ट पर शक्ति प्रदर्शन
गुरुवार सुबह तारिक रहमान के ढाका पहुंचते ही एयरपोर्ट और आसपास के इलाकों में बीएनपी समर्थकों का भारी हुजूम उमड़ पड़ा। पार्टी कार्यकर्ताओं ने इसे “नेतृत्व की वापसी” बताते हुए जोरदार नारेबाजी की। यह दृश्य साफ संकेत देता है कि बीएनपी अब पूरी तरह चुनावी मोड में आ चुकी है।

Dhaka News: 17 साल का निर्वासन और वापसी
तारिक रहमान वर्ष 2008 में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे मामलों के बीच लंदन चले गए थे। लंबे समय तक विदेश में रहने के बाद अब उनकी वापसी ऐसे वक्त में हुई है, जब देश में एक बार फिर अंतरिम सरकार सत्ता में है। मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने उनकी वापसी को लेकर सुरक्षा और व्यवस्थाओं को लेकर खास तैयारी की थी।

Dhaka News: बीएनपी को नेतृत्व का संबल
बीएनपी प्रमुख खालिदा जिया की बिगड़ती सेहत के कारण पार्टी लंबे समय से मजबूत चेहरे की तलाश में थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तारिक रहमान की वापसी ने पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर फैली असमंजस की स्थिति को काफी हद तक खत्म कर दिया है। इससे बीएनपी को एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरने का मौका मिला है।
Dhaka News: जमात-ए-इस्लामी की बढ़ती ताकत
शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद राजनीतिक समीकरण तेजी से बदले हैं। पहले प्रतिबंधित रही जमात-ए-इस्लामी पर लगी रोक हटने के बाद पार्टी ने खासतौर पर युवाओं और छात्रों के बीच अपनी पकड़ मजबूत की है। भारत विरोधी नैरेटिव और धार्मिक ध्रुवीकरण से जमात को फायदा मिला, जिससे उसका वोट बैंक बढ़ा है।

Dhaka News: क्या बिगड़ेगा जमात का गणित?
तारिक रहमान की वापसी के बाद बीएनपी एक बार फिर मुख्यधारा की मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरती दिख रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे जमात-ए-इस्लामी का प्रभाव सीमित हो सकता है, क्योंकि बीएनपी के पास व्यापक जनाधार और पारंपरिक समर्थन आधार मौजूद है।
Dhaka News: छात्र आंदोलन और बदला माहौल
हाल के वर्षों में बांग्लादेश की राजनीति में छात्रों और युवा संगठनों की भूमिका निर्णायक रही है। शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद छात्र संगठनों में और एकजुटता देखने को मिली है। इसी वर्ग का एक हिस्सा कट्टरपंथी संगठनों की ओर भी झुका है, जिससे राजनीतिक परिदृश्य और जटिल हो गया है।
भारत के संदर्भ में तारिक रहमान की वापसी: संपादकीय नजरिया
बांग्लादेश की राजनीति में 17 वर्षों बाद तारिक रहमान की वापसी भारत के लिए केवल पड़ोसी देश का आंतरिक घटनाक्रम नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण रणनीतिक संकेत है। बीएनपी शासन के दौरान भारत-विरोधी तत्वों और उग्रवादी संगठनों को कथित संरक्षण मिलने के आरोप रहे हैं, जिससे नई दिल्ली की चिंताएं स्वाभाविक हैं। शेख हसीना के कार्यकाल में भारत-बांग्लादेश संबंध सुरक्षा, व्यापार और कनेक्टिविटी के क्षेत्र में मजबूत हुए। यदि बीएनपी सत्ता के करीब आती है, तो इन उपलब्धियों की निरंतरता पर सवाल उठ सकते हैं। ऐसे में भारत को व्यक्तियों से अधिक संस्थागत और जनस्तरीय संबंधों पर भरोसा बढ़ाना होगा।

