दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पब्लिक स्कूल (DPS), द्वारका को फीस न चुकाने वाले छात्रों के साथ किए जा रहे भेदभाव पर कड़ी फटकार लगाई है। जस्टिस सचिन दत्ता ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि स्कूल ने ऐसे छात्रों को लाइब्रेरी में बैठने को मजबूर किया, कैंटीन जाने से रोका और उन्हें अपने सहपाठियों से बात करने तक नहीं दिया।
कोर्ट ने इसे “बेहद परेशान करने वाला” बताते हुए स्कूल को ऐसी किसी भी हरकत से तुरंत रोकने का आदेश दिया।
क्या हुआ था?
- छात्रों के साथ भेदभाव: DPS द्वारका ने फीस न भर पाने वाले छात्रों को अलग-थलग कर दिया। उन्हें क्लासरूम की बजाय लाइब्रेरी में बैठाया गया।
- सामाजिक प्रतिबंध: इन छात्रों को दूसरे बच्चों से बात करने, कैंटीन जाने या सामान्य गतिविधियों में शामिल होने से रोका गया।
- डीएम की रिपोर्ट: दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट की एक टीम ने स्कूल का निरीक्षण किया और इस भेदभाव की पुष्टि की।
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस सचिन दत्ता ने स्पष्ट किया कि “फीस न चुकाने को लेकर स्कूल का यह व्यवहार बिल्कुल गलत है। अगर फीस का मामला है, तो उसे कानूनी तरीके से सुलझाया जाना चाहिए, न कि बच्चों को प्रताड़ित करके।”
कोर्ट ने स्कूल को निर्देश दिया कि:
- छात्रों को अलग न किया जाए।
- सभी बच्चों को कक्षाओं में बैठने और एक-दूसरे से बात करने की पूरी आजादी हो।
- प्रमोट हुए छात्रों को नई कक्षाओं में बैठाया जाए, भले ही फीस का विवाद चल रहा हो।
आगे क्या होगा?
- दिल्ली सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह स्कूल की नियमित जांच करे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोर्ट के आदेशों का पालन हो रहा है।
- अगली सुनवाई 5 मई को होगी।
कौन-कौन था कोर्ट में?
- DPS की तरफ से: सीनियर एडवोकेट पुनीत मित्तल
- छात्रों की तरफ से: एडवोकेट मनीष गुप्ता, मनोज शर्मा
- एनसीपीसीआर की तरफ से: एडवोकेट अभैद परिख
- दिल्ली सरकार की तरफ से: स्टैंडिंग काउंसिल समीर वशिष्ठ
यह मामला एक बार फिर याद दिलाता है कि शिक्षा का अधिकार हर बच्चे का मूलभूत अधिकार है, और स्कूलों को फीस के नाम पर उनके साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए।
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