दिल्ली की राजनीति में बदलाव का दौर शुरू हो चुका है। आम आदमी पार्टी के एक दशक लंबे कार्यकाल के बाद, अब राष्ट्रीय राजधानी में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार काबिज है। ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार के शुरुआती 100 दिनों में दिल्लीवासियों की जिंदगी में क्या बदलाव आया? क्या वादे जमीन पर नजर आ रहे हैं या फिर ये भी सिर्फ जुमले बनकर रह जाएंगे?
यमुना की सफाई पर पहली बार गंभीरता?
यमुना नदी की सफाई वर्षों से राजनीति का हिस्सा रही है। पिछली सरकारों ने बड़े-बड़े वादे किए, लेकिन हालात जस के तस रहे। अब बीजेपी सरकार ने यमुना सफाई के लिए 500 करोड़ रुपये का ‘यमुना कोष’ बनाया है। इसके अलावा:
- 500 करोड़ रुपये एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) की मरम्मत पर खर्च किए जा रहे हैं।
- 250 करोड़ रुपये पुरानी सीवर लाइनों को बदलने पर।
- कुल 9000 करोड़ रुपये जल और सीवर इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए आवंटित किए गए हैं।
कुछ बड़े एसटीपी अपग्रेड भी पूरे हो चुके हैं। उदाहरण के लिए:
✅ रिठाला एसटीपी – 100% पूरा
✅ सोनिया विहार – 99% पूरा
✅ नजफगढ़-केशवपुर – 90% पूरा
हालांकि यमुना पूरी तरह साफ नहीं हुई है, लेकिन पहली बार बदलाव नजर आ रहा है।
पॉल्युशन कंट्रोल: प्लान अच्छा, लागू करना चुनौतीपूर्ण
दिल्ली की सबसे बड़ी समस्या वायु प्रदूषण रही है। सरकार ने 2030 तक प्रदूषण 50% कम करने का लक्ष्य रखा है। इसके तहत:
- 25-प्वाइंट ब्लूप्रिंट जारी किया गया।
- 1000 वाटर स्प्रिंकलर, 1140 एंटी-स्मोक गन लगाई जाएंगी।
- 200 मेकेनिकल रोड स्वीपर, 70 इलेक्ट्रिक लिटर पिकर तैनात होंगे।
लेकिन विवाद कहाँ?
सरकार ने 10 साल से पुरानी डीजल और 15 साल से पुरानी पेट्रोल गाड़ियों पर फ्यूलिंग बैन लगा दिया है। इससे लाखों वाहन एक झटके में ‘अवैध’ हो गए। आलोचकों के मुताबिक:
- फिट और मेंटेन गाड़ियों को भी जबरन कबाड़ घोषित कर दिया गया।
- आम आदमी, खासकर मिडिल क्लास, को सीधा नुकसान।
- सोशल मीडिया पर सरकार को जमकर ट्रोल किया जा रहा है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रदूषण रोकने के लिए कड़े कदम जरूरी हैं, लेकिन बेतरतीब फैसलों से अव्यवस्था फैलती है।
झुग्गी-झोपड़ी और अवैध अतिक्रमण पर कार्रवाई
दिल्ली में अवैध बस्तियों और बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा पुराना है। सरकार ने:
- यमुना फ्लडप्लेन पर 27,000 अवैध घरों को हटाया।
- सैनिक फार्म्स, तैमूर नगर, अशोक विहार, वजीरपुर आदि में डेमोलिशन ड्राइव चलाई।
हालांकि इन कार्रवाइयों पर सवाल भी उठे:
- लोगों को बसाने की तैयारी अधूरी।
- 3 दिन के शॉर्ट नोटिस पर बेदखली।
- जहां पुनर्वास किया गया, वहां भी अव्यवस्था।
उदाहरण के तौर पर, अशोक विहार में नए बनाए गए 1645 फ्लैट्स में:
- सफाई व्यवस्था चरमराई।
- प्लंबिंग टूटी-फूटी।
- 1BHK में 6-6 लोग ठुंसे हुए।
योजना में जनता को शामिल न करना, सबसे बड़ी खामी मानी जा रही है।
दिल्ली में कचरे के पहाड़: सफाई की नई उम्मीद
ओखला, गाजीपुर और भलस्वा के कचरे के पहाड़ दिल्ली की बदनामी का कारण हैं। सरकार का दावा है:
- 15 लाख मीट्रिक टन कचरा निकाला जा चुका है।
- 30 एकड़ जमीन साफ हुई है।
- बायोमाइनिंग के जरिए वेस्ट प्रोसेसिंग हो रही है।
- लक्ष्य: 2028 तक दिल्ली को कचरा-मुक्त बनाना।
हालांकि अभी लंबा सफर तय करना बाकी है।
शिक्षा में सुधार: हकीकत या सिर्फ आंकड़े?
शिक्षा पर बीजेपी सरकार का फोकस नजर आता है:
- शिक्षा बजट 17% बढ़ा।
- ‘सीएम श्री स्कूल्स’ की संख्या 60 से बढ़ाकर 75 करने की योजना।
- स्मार्ट क्लासरूम, रोबोटिक लैब्स, एआई लाइब्रेरीज़ का वादा।
- डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम लैंग्वेज लैब्स की शुरुआत।
- 1175 नए कंप्यूटर लैब्स और 7000 डिजिटल क्लासरूम तैयार करने का लक्ष्य।
बहरहाल, असली फर्क तभी दिखेगा जब ये वादे धरातल पर उतरेंगे।
स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार के दावे
सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में:
- आयुष्मान भारत योजना लागू की।
- 10 लाख तक का हेल्थ इंश्योरेंस।
- 3.5 लाख लोग पहले ही योजना से जुड़े।
- ‘आयुष्मान आरोग्य मंदिर’ के 33 केंद्र चालू।
- 48% हेल्थ बजट में बढ़ोतरी।
हालांकि विपक्ष इसे ‘मोहल्ला क्लिनिक’ की नकल बता रहा है। देखना होगा कि ये योजना कितना कारगर साबित होती है।
बीजेपी की अपनी विवादित छवि
बीजेपी सरकार भले ही विकास की बात कर रही हो, लेकिन खुद विवादों में भी घिरी है। सबसे बड़ा उदाहरण:
- नेता रेखा गुप्ता के सरकारी आवास पर कथित 60 लाख रुपये खर्च।
- विपक्ष ने इसे ‘शीश महल पार्ट 2’ करार दिया।
ऐसे में आम जनता का भरोसा जीतना सरकार के लिए चुनौती है।
निष्कर्ष: शुरुआती कदम उम्मीद जगाते हैं, पर खामियां भी साफ हैं
बीजेपी सरकार के शुरुआती 100 दिन में:
✅ कुछ सकारात्मक पहल जैसे यमुना सफाई, कचरा प्रबंधन, शिक्षा-स्वास्थ्य सुधार नजर आए।
✅ अवैध अतिक्रमण पर कार्रवाई हुई।
✅ प्रदूषण को लेकर गंभीर प्लान बनाया गया।
लेकिन:
❌ अव्यवस्थित फैसले जैसे गाड़ियों पर बैन।
❌ पुनर्वास नीति में कमियां।
❌ खुद नेताओं पर खर्च को लेकर सवाल।
दिल्ली की जनता समझदार है। वादों की असलियत एक-दो साल में नजर आएगी। अभी सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि शुरुआत मिली-जुली रही है।
आपकी राय क्या है?
क्या आप दिल्ली में बीजेपी सरकार के 100 दिनों के काम से संतुष्ट हैं?
क्या आपको लगता है कि ये सरकार आम आदमी पार्टी के 10 साल के शासन से बेहतर साबित होगी?
कमेंट में जरूर बताएं।
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