वेदों की भाषा में क्रिकेट का रोमांच, खिलाड़ियों ने पहने धोती-कुर्ता
मध्यप्रदेश: क्रिकेट वैसे तो विदेशी खेल है, लेकिन अब भारत के तन-मन में रच बस गया है, वैसे ही जैसे भारतीय हर भाषा, कला-संस्कृति का दिल खोल कर स्वागत किया है। क्रिकेट (CRICKET) को संस्कृत भाषा में कंदुकक्रीड़ा कहते हैं, क्रिकेट को गेंद और बल्ले का खेल कहते हैं, क्रिकेट क्रीड़ा, चमगादड़ और गेंद का खेल, दस ग्यारह का मुकाबला, विकेट का खेल, गेंद-बल्ले की जंग भी कहते हैं। इसी खेल की राजधानी भोपाल में आयोजित एक अनोखी क्रिकेट प्रतियोगिता ने सभी का ध्यान खींचा है। इस प्रतियोगिता में खिलाड़ी धोती-कुर्ते पहनकर मैदान पर उतरे और संस्कृत में हो रही कमेंट्री ने इसे और भी दिलचस्प बना दिया। इस बार अंकुर क्रिकेट ग्राउंड पर हो रहे इस टूर्नामेंट में विजेता टीम को प्रयागराज महाकुंभ जाने का मौका मिलेगा, जो इस आयोजन को और भी खास बनाता है। प्रतियोगिता के आयोजकों ने पारंपरिक भारतीय पहनावे को बढ़ावा देने के लिए सभी खिलाड़ियों से धोती और कुर्ता पहनने की अपील की थी । प्रतियोगिता को लेकर खिलाड़ियों और दर्शकों में उत्साह देखा गया । क्रिकेट प्रेमी इस अनोखे आयोजन की सराहना करते हुए कहते है कि यह क्रिकेट के प्रति उनके प्रेम को एक नई दिशा दे रहा है। टूर्नामेंट के आयोजको का मानना है की उनकी इस कोशिश से नए खिलाड़ी सामने आ सकते हैं और यह संस्कृति को बढ़ावा देने का एक बेहतरीन तरीका है। इस अनोखे क्रिकेट टूर्नामेंट में खेलों की कमेंट्री संस्कृत भाषा में की जा रही है, जो दर्शकों के लिए एक नया और दिलचस्प अनुभव है। आयोजकों ने कहा कि इस तरह के आयोजनों से भारतीय संस्कृति और खेलों के बीच सामंजस्य स्थापित करते हुए सनातन धर्म का प्रचार प्रसार भी किया जा सकता है।
ये हैं, भारत के प्राचीन पारंपरिक खेल
भारत में खेलों की परंपरा प्राचीन और समृद्ध है। पारंपरिक खेलों ने न केवल बच्चों और युवाओं का मनोरंजन किया है, बल्कि उनकी मानसिक और शारीरिक फिटनेस को भी बढ़ावा दिया है। इन खेलों में भारतीय संस्कृति और सभ्यता की झलक मिलती है। आइए जानते हैं भारत के कुछ प्रमुख पारंपरिक खेलों के बारे में:
- कबड्डी-कबड्डी भारत का एक प्रमुख पारंपरिक खेल है, जो ताकत, फुर्ती और रणनीति का अद्भुत संगम है। इसमें दो टीमें होती हैं और प्रत्येक खिलाड़ी को विरोधी टीम के क्षेत्र में जाकर “कबड्डी-कबड्डी” बोलते हुए छूकर वापस आना होता है। यह खेल गांवों से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक लोकप्रिय है।
- गिल्ली-डंडा-गिल्ली-डंडा भारतीय गांवों में खेला जाने वाला एक प्राचीन खेल है। इसमें लकड़ी की दो छड़ियों (गिल्ली और डंडा) का उपयोग किया जाता है। खिलाड़ी गिल्ली को डंडे से मारकर दूर फेंकता है और उसे पकड़ने से बचने का प्रयास करता है।
- पिट्ठू (सात पत्थर)-पिट्ठू, जिसे सात पत्थर भी कहा जाता है, बच्चों का एक प्रसिद्ध खेल है। इसमें सात पत्थरों को पिरामिड की तरह सजाया जाता है और गेंद से उन्हें गिराकर फिर से बनाने की कोशिश की जाती है।
- कंचे (गोलियां)-कंचे छोटे कांच के गोले होते हैं, जिन्हें बच्चों के बीच खेला जाता है। इस खेल में निशानेबाजी और सटीकता की आवश्यकता होती है। यह खेल अब भी ग्रामीण इलाकों में अत्यंत लोकप्रिय है।
- लट्टू (भ्रमणीय)– लट्टू, या घूमने वाला शीर्ष, भारत का एक प्राचीन खेल है। इसमें लकड़ी के बने लट्टू को रस्सी से घुमाकर जमीन पर छोड़ते हैं और उसे घुमाते हैं। यह खेल बच्चों को मनोरंजन के साथ संतुलन और कौशल सिखाता है।
- खो-खो-खो-खो एक दौड़ने और पीछा करने का खेल है। इसमें दो टीमें होती हैं, और एक टीम के खिलाड़ी बैठकर दूसरी टीम के खिलाड़ियों को छूने का प्रयास करते हैं। यह खेल बच्चों में फुर्ती और सहनशक्ति बढ़ाने में मदद करता है।
- सांप-सीढ़ी– सांप-सीढ़ी एक बोर्ड गेम है, जो भारत में प्राचीन काल से खेला जाता है। इसमें अंकगणना, भाग्य और रणनीति का मिश्रण होता है। यह खेल बच्चों को सीखने और मनोरंजन का माध्यम प्रदान करता है।
- पुष्टि खेल (मल्लखंब)-मल्लखंब शारीरिक फिटनेस का पारंपरिक खेल है, जिसमें खिलाड़ी लकड़ी के खंभे या रस्सी पर योग और जिम्नास्टिक जैसे करतब दिखाते हैं। यह खेल भारत में प्राचीन काल से शारीरिक प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल होता आया है।
- अष्ट चंग (मुक्केबाजी)-यह खेल भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित था, जिसमें खिलाड़ियों को शारीरिक शक्ति और कौशल दिखाने का मौका मिलता है।
- कुश्ती– पहलवानी भारत के सबसे प्राचीन और पारंपरिक खेलों में से एक है। इसे अखाड़ों में खेला जाता है और यह ताकत, सहनशक्ति और मानसिक कौशल का परिचायक है।
भारत के प्राचीन खेलों का महत्व
- ये खेल बच्चों और युवाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
- पारंपरिक खेलों से सामाजिक एकता और मेलजोल बढ़ता है।
- ये खेल हमारी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखते हैं।
- इन खेलों को खेलने के लिए महंगे उपकरण या संसाधनों की आवश्यकता नहीं होती, जिससे ये हर वर्ग के लोगों के लिए सुलभ हैं।
भारत के पारंपरिक खेल केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि यह हमारी संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक भी हैं। आधुनिक खेलों की ओर झुकाव के बावजूद, हमें अपने पारंपरिक खेलों को संरक्षित और बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ी भी इनका आनंद उठा सके।
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